आजतक समाचार चैनल ने अपने प्रोग्राम ‘धर्म’ में 12 नवंबर को चरण स्पर्श के महत्व पर एपिसोड चलाया था। अव्वल तो इस किस्म के कार्यक्रमों पर आसानी से नज़र नहीं जाती, दूसरे एकबारगी देखने पर विषय इतना सहज लगता है कि उसमें छुपी हुई राजनीति को पकड़ पाना मुश्किल होता है। इस प्रोग्राम के साथ सहजता यह थी कि विषय चरण स्पर्श करने, प्रणाम करने, अभिवादन करने जैसी रोज़मर्रा की चीज़ पर केंद्रित था। बस दिक्कत यह हुई कि ऐंकर श्वेता झा के पीछे जो बैकग्राउंड बना था, उसमें पैर छूते दो लोगों की तस्वीर हूबहू सनातन संस्था द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका से मैच कर गई। न सिर्फ तस्वीर, बल्कि समूचा विषय ही उक्त पुस्तिका के विषय से मेल खाता है।
सनातन संस्था एक अतिदक्षिणपंथी संगठन है जिसका नाम पिछले तीन साल से लगातार हत्या के कुछ मामलों में उछलता रहा है। सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता गोविंद पानसारे, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के डॉ. नरेंद्र दाभोलकर ओर कन्नड़ लेखक एमएम कलबुर्गी की हत्याओं के बाद हाल ही में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के संदर्भ में इस संगठन का नाम उछला था। इंडियन एक्सप्रेस ने बाकायदे ख़बर चलायी थी कि लंकेश के हत्यारों का लेना-देना संस्था के साथ हो सकता है, हालांकि बाद में बंगलुरु पुलिस की एक कॉन्फ्रेंस में इसे मीडिया की थियरी बतला दिया गया जिसके बाद संस्था ने इंडियन एक्सप्रेस पर मानहानि का मुकदमा करने की बात कही।
पिछले कुछ वर्षों से सनातन संस्था विश्व पुस्तक मेले में अपने स्टॉल लगाती आ रही है जहां हिंदू राष्ट्र बनाने से लेकर वैदिक विधियों और हिंदुओं के आचार-व्यवहार से जुड़ी पुस्तकों की बिक्री की जाती है। दो साल पहले मेले से मैंने संस्था की कुछ पुस्तकें खरीदी थीं और वहां मौजूद एकाध लोगों से तफ़सील से बात की थी। इन लोगों की हिंदू राष्ट्र की अवधारणा में आस्था अक्षुण्ण है और ये मानते हैं कि 2023 तक देश में हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए जनता खुद आंदोलन करेगी। ऐसा वहां स्टॉल पर मौजूद एक आचार्य ने निजी बातचीत में बताया था।
कोई आधा दर्जन पुस्तकें जो मैंने खरीदीं, उनमें एक पुस्तक का नाम था ”नमस्कार की उचित पद्धतियां”। ”धार्मिक कृत्यों के अध्यात्मशास्त्रीय आधार संबंधी दिव्य ज्ञान” नामक श्रृंखला के अंतर्गत प्रकाशित इस पुस्तक के कवर पर जो तस्वीर है, हूबहू वही तस्वीर आजतक के 12 नवंबर को प्रसारित ‘धर्म’ नामक कार्यक्रम के बैकग्राउंड में है। यहां तक कि जो व्यक्ति साधु को प्रणाम कर रहा है उसके कुरते का रंग भी पुस्तक कवर की तरह गुलाबी है। कोई कलर करेक्शन नहीं।
बहुत संभव है कि गूगल पर तस्वीर खोजने के क्रम में यह तस्वीर ग्राफिक्स वाले के हाथ लगी हो, लेकिन प्रोग्राम का समूचा विषय ही सनातन संस्था की पुस्तिका के विषय से मेल खाता है। अगर इस पुस्तिका को पढ़ें, तो आप पाएंगे कि आजतक पर ”चरण स्पर्श के दिव्य प्रभाव” जो गिनाए गए हैं, सारे संस्था की पुस्तिका में वर्णित हैं। फिलहाल संस्था की वेबसाइट पर यह पुस्तिका ‘आउट ऑफ स्टॉक’ है, लेकिन इसके दो पन्ने वहां से डाउनलोड किए जा सकते हैं जिससे आजतक के प्रोग्राम और पुस्तिका की सामग्री के बीच समानता सीधे स्थापित होती है।
सवाल नमस्कार करने, अभिवादन करने या चरण स्पर्श करने को लेकर नहीं है। यह हमारी ही नहीं बल्कि वैश्विक परंपरा का एक अभिन्न अंग है। मुद्राओं का फर्क हो सकता है। अभिवादन करना मानवीय सभ्यता का तकाज़ा है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। सवाल आजतक के प्रोग्रामिंग विभाग पर है कि क्या उसे अपना प्रोग्राम बनाने के लिए सनातन संस्था की पुस्तिका ही रिसोर्स के रूप में हाथ लगी?
आजतक के इस प्रोग्राम के ग्राफिक्स प्लेटों को ध्यान से देखिए। एक जगह यह लिखता है कि ”हिंदू संस्कारों में अभिवादन की परंपरा है” लेकिन उससे ठीक पहले जो प्लेट चलती है, उसमें ईसाई धर्मावलंबियों की एक तस्वीर है जिसमें शायद ईसा मसीह दर्शाये गए हैं। यह तस्वीर प्रोग्राम में दो बार आती है। सहज सवाल है कि अगर यह परंपरा ईसाइयों में भी है तो इसे हिंदू संस्कारों तक ही सीमित क्यों रखा जा रहा है? ज़ाहिर है, सनातन संस्था की पुस्तिका की सामग्री इसे हिंदू संस्कारों में ही गिनती है, तो प्रोग्राम भी चरण स्पर्श को हिंदू संस्कार बता रहा है।
यह एक खतरनाक ट्रेंड है जिस पर निगाह रखी जानी चाहिए। आज सनातन संस्था के प्रकाशित साहित्य पर चरण स्पर्श का प्रोग्राम बन रहा है। कल को बात आगे जा सकती है।