यह बात दर्ज की जानी चाहिए कि जब पाँच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे थे तो इंडिया टुडे ग्रुप देश का मिज़ाज बताने का दावा करने वाला सर्वे लेकर आया । उसने इन पाँच राज्यों के बारे में कोई नतीजा ना देकर ऐलान किया कि देश में एनडीए की लहर है। क्या यह संयोग है या फिर सोची-समझी प्रचार योजना का हिस्सा। यह कैसे हो सकता है कि आज तक जैसा सबसे तेज़ चैनल विधानसभा चुनाव के समय राज्यों का नहीं देश का मूड बताने में दिलचस्पी रखे।
इंडिया टुडे और कारवी इनसाइट के इस सर्वे के नतीजे में मोदी ही मोदी हैं। सर्वे के मुताबिक अभी चुनाव हो तो एनडीए को लोकसभा में 360 सीटें मिलेंगी। मोदी जी की
लोकप्रियता में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है। 65 फ़ीसदी लोग उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए सर्वाधिक योग्य मानते हैं। यही नहीं सैकड़ों लोगों की जान लेने वाली और देश की आर्थिक रफ़्तार को धीमी करने वाली नोटबंदी के फ़ैसले के साथ भी 80 फ़ीसदी लोग हैं। सर्वे के मुताबिक अकेले बीजेपी की 305 सीटें आएँगी अगर अभी चुनाव हों। सर्वे में 19 राज्यों के 12,143 लोगों से बात की गई।
अब यह बात छिपी नहीं है कि बार-बार ग़लत साबित होने के बावजूद चैनलों में सर्वे करने को लेकर इतना उत्साह क्यों होता है। दरअसल, ऐसे सर्वे माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं और उहापोह में पड़े मतदाताओं को प्रभावित करते हैं। यह एक तरह प्रचार का ही रूप होता है। पहले हज़ार-दो हज़ार लोगों से बात करके, अपनी राजनीतिक रुचि के मुताबिक एक नतीजा रखा जाता है और फिर ऐसे नतीजों को आधार बनाकर रात-दिन चैनलों में बहस चलती है। चुनावी रैलियों में भी इनका हवाला दिया जाता है। अख़ाबारों में भी भरपूर प्रचार होता है। यानी अमेरिकी विचारक नॉम चाम्सकी जिस मैन्यूफैक्चरिंग कन्सेंट (सहमति विनिर्माण) की चर्चा करते हैं, यह उसी का एक रूप है। कॉरपोरेट मीडिया अपनी ताक़त का इस्तेमाल करके मुद्दों और नेताओं की छवियाँ गढ़ता है।
अगर इंडिया टुडे का सर्वे सही है तो फिर पाँचों राज्यों में बीजेपी की सरकार ही बननी चाहिए। राजनीति की ज़रा भी समझ रखने वाला व्यक्ति इसे चुटकुला मानेगा। ऐसा नहीं कि इंडिटा टुडे के सर्वेकार इसे समझते नहीं, इसलिए उन्होंने बड़ी चालाकी से इसे ‘देश का मूड का नाम दिया’ और विधानसभा चुनाव वाले राज्यों पर कुछ कहना गोल कर गए गोया देश का मूड, यूपी, पंजाब समेत पाँच राज्यों को अलग करके पता किया जा सकता है।
साफ़ है कि ऐसे सर्वे मतदाताओं पर असर डालने के औज़ार हैं। ख़ास बात यह है कि इसमें आप एक पैटर्न देख सकते हैं। आमतौर पर बीजेपी ही आगे रहती है। सर्वेकार ग़लत होने की संभावना ख़ारिज नहीं करते, लेकिन ऐसा ग़लत सर्वे कभी नहीं हुआ जिसमें कभी बीजेपी विरोधी या छोटे दल जीत गए हों। बीते बिहार चुनाव में भी इंडिया टुडे एनडीए की सरकार बनवा रहा था। दिल्ली के चुनाव में आज तक ने आम आदमी पार्टी को महज़ आठ-दस सीट दी थी।
यह केवल इंडिया टुडे का मसला नहीं है। ज़रा 2014 में दिल्ली के चुनाव को लेकर एबीपी न्यूज़ के सर्वे को याद कीजिए। जिस बीजेपी को 3 सीटें मिलीं, उसे सर्वे में 46 सीटें दी गई थीं। जिस आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें पाईं उसे 18 सीटें दी गई थीं। 2013 का सर्वे भी ऐसा ही था। ऐसी ग़लतियाँ संयोग नहीं नीयत का पता देती हैं। 3 सीट को 46 बताना सिर्फ़ ग़लती का मामला नहीं है।
ऐसी ग़लती होना और बार-बार होना संयोग नहीं है। यह बताता है कि देश की कॉरपोरेट लॉबी दरअस्ल किन राजनीतिक शक्तियों को शीर्ष पर देखना चाहती है। चैनल मालिकों का हित सीधे उनके सोच से संचालित होता है।
ऐसे में अगर आपको बीजेपी के स्टार प्रचारकों की लिस्ट कहीं दिखे तो उसमें एक नाम अपनी ओर से जोड़ लीजिएगा। वह नाम है अरुण पुरी,टीवी टुडे कंपनी के मालिक। इस मसले में संपादकों को दोष देना ग़लत है। वे तो हुक्म के ग़ुलाम हैं।
.बर्बरीक