कुछ कहानियां बिना कहे दफ़न हो जाती हैं। कुछ को खुलने में बरसों लग जाते हैं। कुछ के लिए ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ता। फरवरी में जेएनयू में लगे कथित राष्ट्रविरोधी नारों की जो कहानी मीडिया में गढ़ी गई, उसकी सच्चाई वैसे तो काफी पहले अलग-अलग स्रोतों से सामने आ चुकी है, लेकिन ज़मीर बड़ी चीज़ होती है। जब किसी का ज़मीर जगता है, तो सच्चाई परत दर परत उघड़ती चली आती है। इंडिया न्यूज़ में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके पत्रकार अमित कुमार ने परदे के पीछे घटी हक़ीकत को बताने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने अपने फेसबुक खाते पर एक श्रृंखला शुरू की है यह बताने के लिए कि कैसे इंडिया न्यूज़ में शीर्ष स्तर पर जेएनयू की ख़बर के साथ खिलवाड़ किया गया। उनकी परिचयात्मक टिप्पणी के साथ उन्हीं की सहमति से हम इस श्रृंखला की पहली कड़ी मीडियाविजिल के पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। न्यूज़रूम की आंतरिक कार्यशैली का साहसिक उद्घाटन करने के लिए अमित कुमार का अभिवादन। (संपादक)
इंडिया न्यूज़ के एडिटर इन चीफ (निवर्तमान!) दीपक चौरसिया के ‘न्यूज़सेंस’ को देश को जानना चाहिए, उनके करोड़ों प्रशंसक और लाखों आलोचक हैं, ये आंखोंदेखी उन सबके लिए है। जिनके लिए आज भी दीपक चौरसिया की बड़ी अहमियत है…500 और 1000 के पुराने नोट की तरह जो अभी आउटडेटेड नहीं हुए हैं। परदे के पीछे के सच की पहली कड़ी आपके सामने है।
तारीख – 17 फरवरी 2016…रात करीब 8 बजकर 22 मिनट।
इंडिया न्यूज़ पर जेएनयू और कन्हैया विवाद पर टुनाइट विद दीपक चौरसिया में बहस हो रही थी। पहला ब्रेक लेने का वक्त हो चला था तभी दीपक चौरसिया ने सबको चौंका दिया। उन्होंने ब्रेक से लौटने पर एक ऐसा वीडियो दिखाने की बात कही, जिसमें कन्हैया देशविरोधी नारेबाजी करता नजर आ रहा है।
एडिटर इन चीफ के इस एलान पर आउटपुट डेस्क पर मौजूद लोग हैरान रह गए। दरअसल तब तक ऐसा कोई वीडियो डेस्क के किसी सदस्य की जानकारी में नहीं था जिसमें कन्हैया खुद देशविरोधी नारेबाजी लगाता दिख रहा हो। इसलिए चौंकना लाजिमी था।
अगर वाकई ऐसा वीडियो होता तो ये बहुत बड़ी खबर थी। न्यूज़रूम में मौजूद लोगों ने एक-दूसरे की आंखों में देखा… एक दूसरे से पूछा – ऐसा कुछ है क्या?
मैंने टुनाइट विद दीपक चौरसिया का इंट्रो पैकेज लिखने वाले अपने मित्र प्रोड्यूसर से पूछा- आखिर ऐसा कौन सा वीडियो आया है? उन्होंने कहा- मुझे कुछ नहीं पता दीपकजी ने ये बात क्यों कही? ये वही जानें।
अब फिर चौंकने की बारी थी।
उस वक्त आउटपुट और शिफ्ट की कमान संभाल रहे अजय आज़ाद भौचक्के थे। उन्होंने असाइनमेंट से पूछा- क्या आपकी तरफ से ऐसा कोई वीडियो जारी किया गया है जिसमें कन्हैया खुद देशविरोधी नारेबाजी कर रहा है? जवाब ना में था।
अब सवाल ये था कि ब्रेक के बाद जिस वीडियो को दिखाने की बात दीपकजी कह गए, वो है कहां? किसने दिया, दीपकजी ने उसे कहां देखा? उनसे ये किसने कहा कि इसमें कन्हैया देशविरोधी नारेबाजी करता नजर आ रहा है? वक्त कम था और उलझन बढ़ती जा रही थी। इसी बीच अजय आज़ाद तेजी से पीसीआर पहुंचे।
उन्होंने वहां मौजूद टुनाइट विद दीपक के मुख्य प्रोड्यूसर गिरिजेश मिश्रा से पूछा कि ऐसा कोई वीडियो है क्या? गिरिजेश मिश्रा का जवाब था कि सर ने खुद अनाउंस किया है… जो वीडियो अभी विजुअल के रूप में चल रहा है उसे ही चलाने को कहा है। इसी में वो कंटेट है, इसी पर बहस को आगे बढ़ाना है।
अजयजी ने पूछा- क्या उसमें कन्हैया देशविरोधी नारेबाजी लगाता दिख रहा है? गिरिजेश मिश्रा ने कहा- सर ने खुद ही तय किया है तो सोच समझकर ही किया होगा। अजय आज़ाद निरूत्तर थे। फैसला एडिटर इन चीफ ने खुद किया है तो कोई क्या बोले? लेकिन आशंका कायम थी… वे वहां से मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत के केबिन में पहुंचे। पता नहीं वहां क्या बात हुई… अजय आज़ाद न्यूज़रूम में वापस अपनी सीट पर आ गए।
कुछ मिनट के लिए शांति छा गई। सभी भ्रम में थे कि आखिर दीपक चौरसिया ने इतनी बड़ी बात किस आधार पर कह दी? वो लौटकर ऐसा क्या दिखाने वाले हैं जो उनके सिवाय किसी और को नहीं पता?
तभी टुनाइट विद दीपक चौरसिया का ब्रेक खत्म हुआ। दीपक लौटे… इस बार उनके तेवर पहले से जुदा थे। आवाज़ ऊंची थी, तल्खी बढ़़ी हुई थी, ऐसा लग रहा था जैसे देश के सबसे बड़े गद्दार को उन्होंने रंगे हाथों पकड़ लिया है और अब उसका पर्दाफाश किए बिना दम नहीं लेंगे। पूरे डेस्क की नज़र टीवी स्क्रीन पर थी… एडिटर इन चीफ के कद को देखते हुए भरोसा था कि दीपक चौरसिया के ‘क्रांतिकारी न्यूज़सेंस’ ने कुछ ऐसी खबर पकड़ी है जैसा देश में कोई नहीं कर पाया।
लेकिन ये क्या… यहां तो खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाली हालत हो गई।
दरअसल ब्रेक से पहले की बहस के दौरान जो वीडियो डिस्कशन के दौरान विजुअल के रूप में चल रहा था… और जिसका इस्तेमाल इंट्रो पैकेज में भी हुआ था, उसे ही दीपक चौरसिया ने पूरे एंबिएंस के साथ सुनाने को कहा था।
इसमें कन्हैया नारेबाजी करता दिख रहा था, लेकिन आवाज बस इतनी सुनाई दे रही थी कि – ‘हमें चाहिए आज़ादी, हम लेके रहेंगे आज़ादी’। लेकिन दीपक चौरसिया ने दावा किया कि देश में पहली बार हम वो वीडियो दिखा रहे हैं जिसमें कन्हैया देशविरोधी नारेबाजी करता दिख रहा है और उसके साथ उमर खालिद भी खड़ा है।
तस्वीरों में वाकई कन्हैया और उमर खालिद नारेबाजी करते दिख रहे थे लेकिन इसमें कहीं भी देशविरोधी नारेबाजी नहीं थी। उस वीडियो में ऐसा कुछ नहीं था, लेकिन दीपक चौरसिया ने जैसे तय कर लिया था कि आज कन्हैया को गद्दार ठहराकर ही दम लेना है।
कहते हैं एक झूठ को सौ बार दोहराया जाए तो वो सच लगने लगता है। शायद दीपक चौरसिया के दिमाग में यही फॉर्मूला रहा हो। अगर ऐसा नहीं होता तो एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल के एडिटर इन चीफ की जिम्मेदारी संभाल रहा ये शख्स ऐसी हरकत कतई नहीं करता।
दीपक तथ्य से सत्य की तरफ जाते लेकिन उनका इससे कोई वास्ता नहीं दिख रहा था।
तभी एक खास बात हुई। दीपक जी के साथ डिस्कशन में चैनल के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत भी शामिल हो गए। दीपक चौरसिया अपने अंदाज में चीख-चीखकर कन्हैया और उमर खालिद को देशद्रोही नारेबाजी का आरोपी साबित करने में जुटे थे। वीडियो को इसका पक्का सबूत बता रहे थे।
राणा यशवंत के शब्दों में थोड़ा सा अंतर था। दृष्टिकोण कुछ अलग था। उन्होंने बीच का रास्ता अख्तियार करते हुए कहा कि दोनों का एक साथ मिलकर आजादी के नारे लगाने का मतलब देश का विरोध ही लगता है। इसका संदर्भ इसी तरफ इशारा करता है।
दोनों की सोच में फर्क बहुत महीन था और इस शोरगुल में दर्शकों के लिए इसे समझना नामुमकिन था।
अब तक 8 बजकर 50 मिनट का वक्त हो चला था। अमूमन इसके आसपास टुनाइट विद दीपक चौरसिया को खत्म करने का वक्त होता है, लेकिन दीपक ने डिस्कशन को आगे बढ़ाने का एलान किया।
मैंने इस बीच अजय आज़ाद से कई बार कहा कि बॉस गलत रास्ते पर हैं। उन्हें रोकिए। ये सही नहीं। आखिर किसी पर भी देशविरोध से बड़ा इल्ज़ाम क्या हो सकता है? और ये आरोप बिना सबूत के लगाए जा रहे हैं, वो भी एक जिम्मेदार चैनल ऐसा कर रहा है, राष्ट्रीय चैनल ऐसा कर रहा है, खुद एडिटर इन चीफ फ्लोर पर मौजूद हैं और उनके जरिए ये आधारहीन बात दर्शकों तक पहुंच रही है।
मैंने बार-बार कहा कि जिस वीडियो के आधार पर ये कहा जा रहा है उसमें ऐसा कुछ सुनाई नहीं दे रहा। रोकिए प्लीज। अजय आज़ाद ने इसके बाद कुछ एसएमएस किया… ह्वाट्स एप किया। शायद अपनी बात दीपकजी तक पहुंचाई।
अब सामने जो कुछ हो रहा था उसे रोकने में हम जैसे लोग लाचार हो चुके थे। किसी चैनल का एडिटर इन चीफ ही जब अपुष्ट तथ्यों के आधार पर ऐसी बातें कर रहा हो तो क्या किया जा सकता था?
अब रात दस बजने में कुछ ही वक्त बचा था… मन बेहद क्षुब्ध था… बावजूद इसके मैंने अपने शो ‘अंदर की बात’ की तैयारी पूरी कर ली थी। मैने अजयजी से पूछा – क्या दीपकजी ‘अंदर की बात’ को एंकर करेंगे? उन्होंने थोड़ी देर में बताया- नहीं, यही शो आगे बढ़ेगा। दीपकजी का फैसला है।
इशारा साफ था कि एडिटर इन चीफ ने ये तय कर लिया था कि मैं जो कर रहा हूं… सही कर रहा हूं।
ये शो रात करीब 10 बजकर 20 मिनट तक चला और इस दौरान दीपक चौरसिया बार-बार दोहराते रहे कि हमने देश को आज वो सच दिखाया है जो अब तक किसी ने नहीं दिखाया था। इस बीच दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी का फोनो भी लिया गया जिसमें उसने कहा कि अगर वाकई इस वीडियो में कन्हैया और उमर खालिद खुलकर देशविरोधी नारे लगा रहे हैं तो ये वीडियो हमें दीजिए।
लेकिन सच तो कुछ और था। दीपक चौरसिया का देश के लाखों दर्शकों के सामने किया गया दावा, दावा नहीं छलावा था।
सच तो ये था कि इंडिया न्यू़ज़ 14 फरवरी 2013 को अपनी लॉंचिंग के बाद के 3 सालों में तब तक ऐसी आधारहीन, तथ्यहीन और चरित्रहीन पत्रकारिता पर कभी नहीं उतरा था जैसी पत्रकारिता उसने 17 फरवरी 2016 की रात 8-30 से 10-20 के बीच की। और दुर्भाग्य की बात ये कि ऐसा किसी और ने नहीं, चैनल के एडिटर इन चीफ ने किया।
डेस्क पर मौजूद इंटर्न और ट्रेनी पत्रकार तक कह रहे थे कि ये सही नहीं है… दीपकजी जो कह रहे हैं वैसा वीडियो में कुछ दिख नहीं रहा, सुनाई नहीं दे रहा। 20 से 25 साल के इन बच्चों को भी समझ में आ रहा था कि ये पत्रकारिता नहीं है। लेकिन पतवार थामने वाला मांझी ही जब नाव को मझधार में ले जाने पर आमादा हो, तो कोई कहकर भी क्या कर लेगा?
शो खत्म हो चुका था। जैसे ही दीपक चौरसिया न्यूजरूम में पहुंचे, कुछ सहयोगियों ने उनकी तारीफों के पुल बांध दिए। इसी बीच मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत मुझे सामने दिखे। मेरे उनसे स्नेह और अधिकार के संबंध रहे हैं, इसलिए मैंने आते ही कहा- सर प्लीज जरा यहां बैठिए। उन्होंने कहा- बोलो बेटा! मैंने कहा- ये क्या चला सर…?
राणा यशवंत ने कहा- ‘बताओ ऐसा क्या हुआ’ ?
मैंने कहा- सर, हमने जो वीडियो दिखाया और उसे आधार बनाकर दो घंटे की बहस के दौरान जो भी बातें कही गईंं, क्या उसका कोई मेल है? क्या कन्हैया कहीं भी देशविरोधी नारे लगाता दिख रहा है?
राणाजी ने कहा- नहीं, इसका संदर्भ समझो। देखो, कन्हैया पहली बार इस वीडियो में उमर खालिद के साथ नारेबाजी करता दिख रहा है, वही उमर खालिद जिसने खुलकर कश्मीर की आजादी के नारे लगाए थे। तो इसका मतलब और क्या हो सकता है?
इसी बीच दीपक चौरसिया हम दोनों के पास पहुंचे। राणाजी से पूछा- क्या बात हो रही है? राणाजी ने कहा- अमित कह रहा है कि जो हमने दिखाया वो पूरी तरह सही नहीं था।
दीपकजी थोड़े हैरान लेकिन संयत अंदाज में मेरी तरफ मुड़े, उन्होंने कहा- बताओ गलत क्या था? मैंने कहा कि वीडियो में कन्हैया कहीं भी देशविरोधी नारे लगाता नहीं दिख रहा। दीपकजी ने कहा- स्थितियों को देखो… वो उमर खालिद के साथ खड़ा होकर आजादी के नारे लगा रहा है… आखिर वो कौन सी आज़ादी की बात कर रहा था? अब इस पर और चर्चा की गुंजाइश नहीं थी।
लेकिन दीपकजी के इस सवाल का थोड़ी ही देर में जबर्दस्त जवाब मिलने वाला था जिसका तब तक किसी को अंदाजा नहीं था।
तभी न्यूज़रूम के दूसरे हिस्से से आवाज़ आई- सर-सर, एबीपी न्यूज़ देखिए।
दीपक चौरसिया वहां से चंद कदम की दूरी पर थे। वे टीवी के पास पहुंचे और एबीपी न्यूज़ देखने लगे। एबीपी न्यूज़ कन्हैया कुमार और उमर खालिद की नारेबाजी का वही वीडियो दिखा रहा था जिस पर दीपक चौरसिया ने थोड़ी देर पहले देश का सबसे बड़ा खुलासा करने का दावा किया था लेकिन एबीपी का वीडियो बिल्कुल अलग सच बयान कर रहा था। ये आधा-अधूरा, बिना किसी तैयारी और बिना किसी सोच-विचार के दर्शकों के सामने रखा गया वीडियो नहीं था।
इस एक वीडियो ने दीपक चौरसिया की पोल खोल दी। पत्रकारिता के लिए जरूरी गंभीरता और जिम्मेदारी के उनके दावे की बखिया उधेड़ दी।
दीपक चौरसिया ने ‘हमें चाहिए आज़ादी, हम लेके रहेंगे आज़ादी’ की नारेबाजी वाला हिस्सा दिखाकर दावा किया था कि ये देशविरोधी नारेबाजी है लेकिन एबीपी न्यूज़ कन्हैया की पूरी नारेबाजी को दिखा रहा था जिसमें वो ‘हमें चाहिए आज़ादी, जातिवाद से आज़ादी, सामंतवाद से आज़ादी, पूंजीवाद से आज़ादी’ जैसे नारे लगा रहा था।
तब रात 10 बजकर 35 मिनट हो रहे थे। अब दीपक चौरसिया के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं। काटो तो खून नहीं। नेशनल न्यूज़ चैनल का ये एडिटर इन चीफ जैसे रोने को था… गला भर्राया हुआ था, आंखों में आंसू थे। इसलिए नहीं कि गलती पर पछतावा था, इसलिए क्योंकि साहब रंगेहाथ पकड़े गए थे। एबीपी न्यूज़ अपने इस पूर्व पत्रकार की कलई खोलने पर उतारू था… तीन साल में 100 से भी ज्यादा लोगों की टीम ने दिन रात की मेहनत और ईमानदारी से जो साख बनाई थी, खुद एडिटर इऩ चीफ ने एक झटके में उसकी मिट्टी पलीद कर दी थी।
एबीपी न्यूज़ दीपक चौरसिया का बिना नाम लिए उनके हर शब्द को झूठा साबित कर रहा था, तस्वीरें दिखा रहा था, समझा रहा था कि एक नेशनल न्यूज़ चैनल आपको गलत खबर दिखा रहा है, झूठी बातें बता रहा है। गुमराह कर रहा है, सच देखना है तो यहां देखिए। इंडिया न्यूज़ के लिए ये चीरहरण से कम शर्मनाक बात नहीं थी। बेचैन दीपक कभी इधर जाते, कभी उधर, तभी उन्होंने बड़ा आदेश दिया- आदेश था कि ‘टुनाइट विद दीपक’ की आज की बहस को यूट्यूब से हटा दिया जाए।
कहते हैं सांच को आंच नहीं होती। अगर वाकई दीपकजी ने सही किया था तो सवाल ये है कि यूट्यूब पर डाले गए पूरे शो को हटा क्यों लिया गया? आखिर किस बात का डर था? जिस आधे-अधूरे वीडियो के दम पर दीपक ने दो घंटे तक बहस की, अब उन्होंने अपने करीबियों को उस शख्स की तलाश करने को कहा जिसने इस वीडियो को टुनाइट विद दीपक चौरसिया के इंट्रो पैकेज में इस्तेमाल किया था और जिसे देखकर उन्हें इतनी बड़ी बहस करने का महान आइडिया आया था।
इसी बीच चैनल के मालिक कार्तिकेय शर्मा का मैसेज आया। संदेश शायद सवाल की शक्ल में था- ‘ये क्या हो रहा है?
अगली कड़ी में आपको बताऊंगा कि कार्तिकेय शर्मा के सवाल का जवाब देने में दीपक चौरसिया के पसीने क्यों छूटने लगे। अपने गिरेबान बचाने के लिए उन्होंने बलि के बकरे की तलाश में क्या-क्या किया और इसमें आखिरकार कैसे नाकाम रहे?
उसी दिन रात 11 बजे ‘गर्दन बचानेवाले वीडियो का सच’ नाम से एक शो किया गया। इसका मकसद एबीपी न्यूज की तरफ से लगाए गए आरोपों पर सफाई देना था, लेकिन इस शो की दीपक ने खुद एंकरिंग क्यों नहीं की?
अगली कड़ी का इंतज़ार करें…