अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ ही हफिंगटन पोस्ट ने उस संपादकीय टिप्पणी का अचानक घोषित रूप से कत्ल कर दिया है जिसे वह पिछले कुछ महीनों से ट्रंप से जुड़ी हर ख़बर के नीचे नियमित रूप से प्रकाशित करता आ रहा था, जिसमें ट्रंप को ”रेसिस्ट” (नस्लवादी) और ”ज़ेनोफोबिक” (अज्ञात से डरने वाला) कहा जाता था।
ध्यान रहे कि पिछले कई महीनों से ट्रंप के बारे में हफपोस्ट पर छप रही हर ख़बर के नीचे एक संपादकीय टिप्पणी नत्थी रहती थी जिसका तर्जुमा कुछ यूं है:
”डोनाल्ड ट्रंप राजनीतिक हिंसा को उकसाते हैं और वे लगातार झूठ बोलते हैं, अज्ञात से भय खाते हैं, नस्लवादी हैं, महिला-द्वेषी हैं और बर्थर (यह मानने वाले कि बराक ओबामा को अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं होना चाहिए क्योंकि वे वहां नहीं जन्मे हैं) हैं जिन्होंने लगातार सभी मुसलमानों को यानी एक समूचे धर्म के 1.6 अरब सदस्यों को अमेरिका में प्रवेश करने से प्रतिबंधित करने का संकल्प लिया है।”
हफपोस्ट के वॉशिंगटन ब्यूरो प्रमुख रायन ग्रिम द्वारा सभी स्टाफ को मंगलवार की शाम यह टिप्पणी आगे से न प्रकाशित करने के संबंध में एक नोट भेजा गया जिसमें कहा गया था कि यह फैसला इसलिए लिया जा रहा है ताकि ”स्लेट कोरी” की जा सके।
इस आदेश पर अटकलों के छपने के बाद बुधवार की दोपहर (भारतीय समयानुसार) हफिंगटन पोस्ट ने अपनी ओर से एक सफाई भी प्रकाशित की जिसका शीर्षक था- ”नोट टु रीडर्स: वाइ वी आर ड्रॉपिंग आवर डोनाल्ड ट्रंप एडिटर्स नोट”।
इस नोट में ”ईमानदारी” से कहा गया है कि ट्रंप की चुनावी जीत अख़बार को पसंद नहीं आई है और उसने माना है कि इसका आकलन करने में वह नाकाम रहा। नोट कहता है कि अब जबकि ट्रंप जीत गए हैं, तो उम्मीद की जाती है कि जिस शख्स को प्रचार के दौरान उसके सबसे खराब वक्त में देखा गया था, वाइट हाउस में प्रवेश करते वक्त वह शख्स वैसा न निकले।