अभिषेक श्रीवास्तव
दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का राज्यसभा टीवी के साथ प्रस्तावित ज़मीन का सौदा शनिवार को क्लब की आपात जनरल बॉडी मीटिंग (ईजीएम) में औंधे मुंह गिर गया। ईजीएम में उपस्थित सभी सदस्यों ने तकरीबन एक स्वर में इस सौदे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्था की स्वायत्तता को सरकार के हाथों गिरवी नहीं रखा जा सकता।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में लंबे समय से नए क्लब के निर्माण के लिए ज़मीन की खरीद-फ़रोख्त की कवायद चल रही है। हज़ारों पत्रकारों की सदस्यता वाला यह क्लब कंपनी कानून के तहत एक कंपनी के बतौर काम करता है जहां का हर एक सदस्य कंपनी का शेयरधारक माना जाता है। यहां हर साल लोकतांत्रिक चुनाव पद्धति से नई प्रबंधन कमेटी चुनी जाती है। पिछले कुछ वर्षों से यहां भले अलग-अलग कमेटियां चुनी गईं, लेकिन मोटे तौर पर उनकी कमान एक ही रहती आई है। देखा जाए तो क्लब में वास्तविक सत्ता परिवर्तन कुछ साल पहले महासचिव रहे पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ की मैनेजिंग कमेटी को हराकर हुआ था जिसका केंद्रीय मुद्दा भ्रष्टाचार के अलावा नए क्लब की ज़मीन भी थी। उस दौर में सदस्यों को बताया गया था कि नई ज़मीन पड़ोस में ही मिलने वाली है। जो जगह बतायी जाती थी आज वहां नेशनल मीडिया सेंटर खड़ा है।
ज़मीन के मसले पर हुए सत्ता परिवर्तन के बाद प्रबंधन कमेटी के महासचिव बने पत्रकार संदीप दीक्षित। उनके दौर में सरकार के साथ मिलकर सबसे बड़ा काम यह हुआ कि रक्षा मंत्रालय की तरफ़ से प्रेस क्लब का लॉन पक्का करवा दिया गया और ऊपर के सभागार का नवीनीकरण हुआ। तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी का नाम आज भी दीवारपट्ट पर देखा जा सकता है। इसके बदले रक्षा मंत्रालय ने लॉन में ब्रह्मोस मिसाइल की एक प्रतिकृति खड़ी कर दी जिसका उस वक्त काफी विरोध हुआ था। प्रेस क्लब के सदस्यों को उसी वक्त यह अहसास हो गया था कि क्लब के प्रबंधन और सरकार के बीच कुछ साठगांठ चल रही है और कई सदस्यों ने मिसाल की प्रतिकृति का विरोध किया, लेकिन अंतत: मिसाइल खड़ी हो गई। बाद में इस मिसाइल को दो बार उखाड़ फेंकने की कार्रवाई भी हुई जिस पर काफी बवाल मचा।
जहां मिसाइल हुआ करती थी, आज वहां शराब कंपनी रायल चैलेंज का छोटा सा ठीहा है जिसने पिछले दिनों आइपीएल मैच के दौरान लॉन में एक बड़ी सी स्क्रीन लगा दी थी जिस पर क्रिकेट मैच चलता था और कंपनी की लड़कियां 30 एमएल शराब के कूपन सदस्यों को निशुल्क बांटती थीं। सरकार से लेकर कॉरपोरेट के साथ प्रेस क्लब के याराने का यह सफ़र बिना दख़ल और ठोस विरोध के कुछ इस हद तक गया कि मानवाधिकार उल्लंघनों के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्लैकलिस्टेड कंपनी वेदांता से एक लाख रुपये प्रायोजक के बतौर पिछले दिनों एक संगीत कार्यक्रम में ले लिए गए। इतना ही नहीं, मनोज तिवारी जैसे सत्ताधारी नेताओं को प्रेस क्लब में निर्वाचित अध्यक्ष और महासचिव के साथ गलबहियां करते देखा गया। हमेशा की तरह उसका तर्क यह था कि क्लब को पैसे की ज़रूरत है। तर्क का आलम यह है कि जहां क्लब को पैसों की ज़रूरत है, वहीं क्लब में शराबखाने के नवीनीकरण का काम ब्लैक डॉग कंपनी कर रही है और सेंट्रल हॉल भी नया बनवाया जा रहा है।
इस सब के बीच पहले की तरह ज़मीन का रोना नई प्रबंधन कमेटी की पहली बैठक से ही जारी रहा। पहली बैठक से लेकर आखिरी बैठक तक केवल और केवल ज़मीन की ही बात हुई। दिलचस्प यह है कि कमेटी में नवनिर्वाचित सदस्यों को इस सौदे के वर्तमान और अतीत की हवा तक नहीं लगने दी गई। उनसे केवल हां और ना में जवाब की अपेक्षा की जाती रही। ज़मीन का सौदा करने की बेचैनी इस हद तक पहुंच गई कि राज्यसभा टीवी की ओर से आए एक एक हवाई प्रस्ताव को लेकर प्रबंधन कमेटी की आपात बैठक बुला ली गई और जल्दी से फैसला लेने को कहा गया ताकि राज्यसभा टीवी को ‘जवाब’ दिया जा सके।
प्रबंधन कमेटी की पिछली बैठक में कुछ सदस्यों ने ज़मीन सौदे के प्रस्ताव का विरोध कर दिया जिसके चलते मामला खटाई में पड़ गया और कमेटी ने एक आपात जनरल बॉडी मीटिंग 5 मई को आहूत कर दी। जल्दबाज़ी और बेचैनी का आलम यह था कि इस बात का भी खयाल नहीं रखा गया कि संशोधित कंपनी कानून के तहत कम से कम 14 दिनों का नोटिस आपात बैठक बुलाने के लिए शेयरधारकों को दिया जाना चाहिए। शनिवार की आपात बैठक में इस बिंदु को जब वरिष्ठ पत्रकार और क्लब के सम्मानित सदस्य राजेश वर्मा ने उठाया, तो उसके जवाब में अध्यक्ष गौतम लाहिड़ी ने सबके सामने खुलकर कह दिया कि अगर हम कंपनी कानून का मुंह देखते रहेंगे तो ज़मीन कभी भी हमारे हाथ नहीं आ सकेगी।
आपात बैठक में वरिष्ठ सदस्यों से लेकर नए सदस्यों तक सभी एकमत थे कि क्लब को सरकार या उसकी एजेंसियों के साथ कोई गठजोड़ नहीं करना चाहिए। सभी सदस्यों को हालांकि एक बात का दुख था कि जैसे-जैसे सभागार में कमेटी का प्रस्ताव गिरता जाता वैसे-वैसे बैठक की अध्यक्षता कर रहे अध्यक्ष लाहिड़ी का स्वर तंज होता जाता था। एकाध मौकों पर उन्होंने कुछ वरिष्ठ पत्रकारों का मखौल भी उड़ाया। पत्रकार जितेंद्र कुमार को यह कह कर बोलने से रोका गया कि ”हमें पता है तुम क्या बोलोगे।” उन्होंने इसका प्रतिवाद करते हुए अपनी बात रखी और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के कार्यकाल में यह सौदा किए जाने के ख़तरे गिनवाए।
महिला सदस्यों ने विशेष रूप से इस बात पर ज़ोर दिया कि पत्रकारों की स्वतंत्रता और क्लब की स्वायत्तता सबसे प्राथमिक चीज़ है जिसे सरकार के पास गिरवी नहीं रखा जा सकता। एक वरिष्ठ पत्रकार ने यह सवाल उठाया कि कल को यदि राज्यसभा क्लब से यह कह दे कि ”राष्ट्रहित” में आप परिसर खाली करिए तो आप क्या करेंगे। एक सदस्य ने सवाल उठाया कि कल को यदि सरकार की ओर से यहां शराब या नॉन-वेज खाने पर पाबंदी लगा दी गई तब आप क्या करेंगे। कुल मिलाकर अलग-अलग नज़रियों से प्रेस क्लब और राज्यसभा टीवी के प्रस्तावित सौदे की मुखालफ़त ही हुई। इस क्रम में दिलचस्प यह रहा जब सौदे का विवरण मांगने पर महासचिव ने यह कह डाला कि हमारे पास इसका विवरण नहीं है। बैंक लोन से जुड़े एक सवाल के जवाब में अध्यक्ष की गलतबयानी की पोल खुल गई जब राजेश वर्मा ने उन्हें बताया कि क्लब मुनाफा तो कमा सकता है लेकिन लाभांश का वितरण नहीं कर सकता है।
बैठक के अंत में सारी बात इस सवाल पर अटक गई कि जमीन लेने के लिए बचे हुए पैसे कैसे जुटाए जाएं। इस पर कई सदस्यों ने सकारात्मक सुझाव दिए। अध्यक्ष ने इस संबंध में तत्काल दो कमेटियां बनाने का प्रस्ताव दिया और पंद्रह दिनों के भीतर उनसे पैसे का इंतज़ाम करने को कहा।
शनिवार की बैठक इस मायने में ऐतिहासिक रही कि मीडिया के पतन के इस गाढ़े दौर में भी तमाम सदस्यों ने प्रेस क्लब की स्वायत्तता और प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करने के खिलाफ अपना मत दिया तथा पिछले दरवाज़े से क्लब में सरकार की घुसपैठ की कोशिश को नाकाम कर दिया।
लेखक मीडियाविजिल के कार्यकारी संपादक हैं और प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया की प्रबंधन कमेटी के निर्वाचित सदस्य हैं