“भारत में मीडिया को काफ़ी दबाव में काम करना पड़ता है। तमाम पत्रकारों को धमकी और तरह-तरह की कार्रवाइयों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि भारत में पत्रकारिता की आज़ादी का झंडा बुलंद करने वालों के साथ कितना बुरा सलूक किया जा रहा है।”
यह निष्कर्ष है पेरिस स्थित फ्री प्रेस एडवोकेसी ग्रुप ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ का । इस ग्रुप ने नया विश्व प्रेस फ्रीडम इंडेक्स जारी करते हुए भारत को 180 देशों की सूची में 133वां स्थान दिया है। उसके मुताबिक़ भारत में मीडिया को लगातार दबाव में काम करना पड़ता है। ग्रुप का यह भी मानना है कि सरकारों, विचारधाराओं और निजी क्षेत्र के हितों को लेकर पड़ने वाले दबावों की वजह से पूरी दुनिया में प्रेस की आज़ादी को गहरा धक्का लगा है जो काफ़ी परेशान करने वाला है।
भारत में कट्टर दक्षिणपंथियों के उभार की ओर इशारा करते हुए ‘रिपोर्टर्स बिदाउट बॉर्डर्स’ की साल 2016 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तमाम पत्रकारो और ब्लॉगर्स को कई धार्मिक समूहों की ओर से हमला और विषवमन झेलना पड़ा है। ऐसी आक्रामक प्रतिक्रियाओं के बीच काम करना वाक़ई मुश्किल है। दूसरी तरफ़ कश्मीर जैसे इलाक़े को भी पत्रकारों के लिए कवर करना मुश्किल है जो सरकार की नज़र में संवेदनशील है।
ग्रुप ने हालात के लिए भारत सरकार को भी ज़िम्मेदार ठहराया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी, पत्रकारों की समस्याओं और उन पर मँडराते ख़तरों को लेकर बेज़ार दिखते हैं। पत्रकारों की सुरक्षा का कोई तंत्र भारत में नहीं है। उल्टा मीडिया को नियंत्रित करने की ख़्वाहिश में मोदी सरकार एक ऐसा पत्रकारिता विश्वविद्यालय खोलने जा रही है जो सरकारी प्रचारतंत्र से जुड़े पूर्व अफसरों के ज़रिये संचालित होगा। रिपोर्ट के मुताबिक़ पत्रकारिता को लेकर भारत में हालत दिनो-दिन खराब होती जा रही है।
ग्रुप ने विविधिता, आज़ादी, क़ानूनी प्रावधानों, और सुरक्षा की कसौटी पर 180 देशों में पत्रकारिता के हाल की समीक्षा की है। भारत में पत्रकारों की दुर्दशा का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि इस सूचकाँक में भारत का स्थान 133वाँ है। यानी 132 देशों में पत्रकारिता और पत्रकारों का हाल दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दम भरने वाले भारत से बेहतर है।
रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय अधिकारियों द्वारा पत्रकारों के ख़िलाफ़ लगातार की जाने वाली क़ानूनी कार्रवाइयों और मानहानि तथा ऑनलाइन प्रकाशन को लेकर मौजूदा कड़े क़ानूनों की वजह से मीडिया ‘सेल्फ़ सेंसरशिप’ के दबाव में था ही, हाल के वर्षों में पत्रकारों, ख़ासतौर पर खोजी पत्रकारों के ख़िलाफ हिंसा भी बढ़ी है। गाली-गलौज और मारपीट के अलावा कई राज्यों में पत्रकारों के ख़िलाफ़ हथियारबंद गिरोहों ने हमले किये और यह सिलसिला बढ़ता जा रहा है। प्रशासन ऐसे तत्वों को क़ाबू करने में पूरी तरह नाकाम है।
‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने भारत सरकार से माँग की है कि वह पत्रकारों को सुरक्षित और निर्भय वातावरण देने के लिए जल्द ही कोई राष्ट्रव्यापी कार्ययोजना शुरू करे।