ग़लतियां केवल हिंदी के समाचार माध्यमों में ही नहीं होती हैं। अंग्रेज़ी वाले भी कभी-कभी दुर्दान्त ग़लती कर बैठते हैं। मानवीय भूलों को एकबारगी माफ़ किया जा सकता है क्योंकि सुधी पाठक उसे पढ़ते ही पकड़ लेता है और बहकावे में नहीं आता, लेकिन क्या अख़बार की जिम्मेदारी उसे दुरुस्त करने की नहीं है?
चार दिन पहले यानी 20 अक्टूबर की दोपहर में फाइनेंशियल एक्सप्रेस की वेबसाइट पर मुलायम सिंह के परिवार में चल रहे संकट पर एक ख़बर प्रकाशित हुई थी। ख़बर राजीव कुमार की बाइलाइन से है। ख़बर में मुलायम के कुनबे के संकट की टाइमलाइन दी हुई है जिसकी शुरुआत जून 2016 से होती है जिसमें गैंगस्टर मुख्तार अंसारी की पार्टी कौमी एकता दल के साथ समाजवादी पार्टी के विलय से अखिलेश यादव के इनकार का जि़क्र है।
इसमें कहीं कोई दिक्कत नहीं, सिवाय इसके कि गैंगस्टर मुख्तार अंसारी की जगह ”गैंगस्टर मुख्तार अब्बास नक़वी” लिख दिया गया है। मुख्तार अब्बास नक़वी भारतीय जनता पार्टी के नेता हैं। अभी तक यह ग़लती ठीक नहीं की गई है। इस ख़बर की ओर पत्रकार प्रकाश के रे ने ध्यान दिलवाया है।
ऐसी ग़लतियां दिखाती हैं कि हिंदी हो या अंग्रेज़ी, ख़बर लिखने और छापने के बाद उसे खुद पढ़ने व फॉलो-अप या रिवाइज़ करने की परंपरा न केवल खत्म हो रही है बल्कि पाठक भी अब अख़बारों को ऐसी गलतियों पर फीडबैक देना छोड़ चुके हैं। या तो वे यह मान चुके हैं कि अख़बारों में ऐसी लापरवाहियां आम हैं या फिर वे समझ चुके हैं कि कहने-सुनने से कुछ होने वाला नहीं है।
ऐसे में कोई नेता गैंगस्टर बन जाए या गैंगस्टर नेता, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी, दोनों के बीच कोई खास अंतर रह गया है क्या?