अंग्रेज़ी की पत्रिका दि कारवां में छपी एक सीबीआइ जज की मौत की विस्फोटक स्टोरी को मुख्यधारा के किसी भी अंग्रेज़ी व हिंदी के मीडिया ने नहीं उठाया। इसके उलट स्थानीय और भाषायी अखबारों को इस ख़बर को पहले पन्ने पर तरजीह दी है। कुछ वेबसाइटों ने भी ख़बर को प्रमुखता से पकड़ा है। टीवी चैनलों में अकेले रवीश कुमार ने एडीटीवी पर इसे कवरेज दी है।
दि कारवां के कार्यकारी संपादक विनोद के. जोस इस बारे में लिखते हैं:
“जब अंग्रेज़ी प्रेस और शहराती बुद्धिजीवी मुंह छुपा लेते हैं, तब भाषायी प्रेस कहीं ज्यादा साहस का प्रदर्शन करता है, जैसा उसने ब्रिटिश राज में किया था। मातृभूमि, जिसका इतिहास आज़ादी के आंदोलन से एकमेक है और जो 15 लाख प्रतियां बेचता है, उसने पहले पन्ने पर ख़बर को लिया है। फिर देशभिमानी और माध्यमम के लिए यह वास्तव में सबसे बड़ी खबर रही। मनोरमा ने इसे कल और आज कवर किया। कन्नड़ और तमिल में भी छपा है। मैंने सुना कि गुजराती में भी किसी ने छापा। लेकिन अंग्रेज़ी और हिंदी प्रेस की चुप्पी हमें भारत के बारे में चिंतित करती है।”