राजेश कुमार
“मिस्टर स्पीकर सर यह अत्यंत गंभीर मामला है। यह गंभीर चिंता की बात है कि इस उपमहाद्वीप में परमाणु हथियारों की होड़ शुरू हो गयी है। अत्यंत चिंता की दूसरी बात यह है कि माननीय सूचना और प्रसारण मंत्री ने कहा कि परमाणु परीक्षण दोपहर बाद साढ़े तीन बजे किये गये। लेकिन साढ़े पांच बजे विपक्ष के सदस्यों में से एक को सरकार को यह जानकारी देनी पड़ी और आप यहाँ चुपचाप बैठे थे। इस देश का खुफिया तंत्र कहां है सर। इस देश की सुरक्षा और इसका मुस्तकबिल इन लोगों के हाथो में महफूज नहीं है। ये लोग सरकार चलाने के लिये निहायत ही नाकाबिल हैं…….।’’
पोखरण-2 पर लोकसभा में बहस का दूसरा दिन था। 28 मई, 1998 और शाम करीब 5:40 बजे यह बात सोमनाथ चटर्जी ने कही थी। वह तब सदन में पश्चिम बंगाल में बोलपुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद थे। पांचेक मिनट पहले चर्चा के बीच ही अचानक कांग्रेस के नटवर सिंह ने यह सवाल पूछ कर अफरा-तफरी मचा दी थी कि ‘क्या सरकार कन्फर्म करेगी कि पाकिस्तान ने आज दो परमाणु परीक्षण किये हैं या नहीं? सोमनाथ अपने भाषण में इसी का जिक्र कर रहे थे। चर्चा में पूरा विपक्ष हमलावर हो गया था। जयपाल रेड्डी,शकील अहमद आदि सदस्यों के सवालों की झड़ी के बीच प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी तुरत-फुरत सदन से बाहर चले गये थे। संसदीय कार्य और पर्यटन मंत्री मदनलाल खुराना ने कहा भी था कि ‘यह सूचना मिलते ही प्रधानमंत्री और गृहमंत्री इसकी पुष्टि करने चले गये हैं।’
तब डिजीटाइजेशन का दौर नहीं था। आज की तरह इसका दावा तो कतई नहीं था। फिर भी यह बडी चूक थी। ध्यान दीजिय,सोमनाथ चटर्जी ने इसे सरकार में बैठे लोगों की सरकारी तंत्र संचालन की उनकी नाकाबिलियत का, उनकी अक्षमता का नतीजा बताया था। इस पर लीपापोती भी चल रही थी और न्यूक्लियर टेस्ट की घोषणा को करीब दो घंटे बीत चुकने की शरद पवार की शिकायत पर खुराना ने कह दिया कि ‘घोषणा तो 4:00 बजे हुई थी।’ इससे पहले, चूक को लेकर विपक्ष के सवालों के सामने लगभग अकेली रह गयी सूचना,प्रसारण और संचार मंत्री सुषमा स्वराज खबर की पुष्टि करते हुये कह चुकी थीं कि ‘यह सूचना सही है और दूरदर्शन ने 3:30 p.m पर यह फ्लैश न्यूज प्रसारित किया है कि पाकिस्तान ने दो परीक्षण किये हैं।’
यह झेंप थी।एक बडे लैप्स से पैदा हुई झेंप। इसमें आप थोडी रियायत लेते हैं।साढे तीन को चार कर लेने की रियायत। तथ्यों को सिर के बल खडा कर देने की जिद नहीं करते। तथ्यों को उलट देने की जिद से झूठ पैदा होता है और फिर एक झूठ पर पर्दा डालने के लिये झूठ-दर-झूठ। संकट यह है कि आप खूब तयशुदा और नियोजित तरीके से झूठ बोल लें। झोल बचा रह जायेगा।सूचना क्रांति के डिजीटाइजेशन के तमाम बडे-बडे दावों के बावजूद। आप कहने लगेंगे कि मौसम इतना खराब था और संचार व्यवस्था इतनी बाधित कि प्रधान सेवक को पुलवामा की सूचना देने तक में देरी हुई। आप कहने लगेंगे कि मौसम इतना प्रतिकूल था कि तमाम कोशिशों के बावजूद प्रधान जी सूचना मिलने पर भी ढाई घंटे तक खिनलौली में ही फंसे रहे।अलबत्ता चमत्कार यह कि इस बीच वह रूद्रपुर रैली में भाषण दे सके,वह भी मोबाइल फोन के जरिये। एन.डी.टी.वी. के पत्रकार को सरकार के सूत्रों ने 21 फरवरी को बताया कि प्रधान सेवक को खबर 25 मिनट देरी से मिली। खराब मौसम और डिजीटाइजेशन के दावे और जिओ की महान संचार क्रांति के बावजूद पुअर नेटवर्क कवरेज के कारण। सूत्रों ने चैनल को यह भी बताया कि खराब मौसम के कारण ही खबर मिलने के बाद दिल्ली लौटने की उनकी तमाम कोशिशें देर रात तक परवान नहीं चढ सकीं। दरअसल पुलवामा फिदायीन हमले में बडी संख्या में जवानों की शहादत के बाद भी डिस्कवरी का शूट जारी रखने के आरोपों के बाद सरकारी तंत्र सक्रिय हुआ और शाम सवा पांच के करीब कुछ चैनल जानकारी देर से दिये जाने पर प्रधान जी की नाराजगी की खबरें चलाने लगे। और जब इन खबरों पर सोशल मीडिया सोमनाथ चटर्जी की ही तरह देश की सुरक्षा के लिये गंभीर खतरे की आशंकाओं में उभ-चूभ होने लगा तो चैनलों से यह खबर गायब भी कर दी गयी। यह नये तरह की लीपापोती थी, लेकिन चूक पकड़े जाने से विचलित सरकार के कारकूनों की नहीं जैसा 28 मई 1998 को लोकसभा में नजारा था। शायद यह चूक थी भी नहीं।
प्रधानमंत्री को खबर मिलने में केवल आधे घंटे की देरी और मौसम की खराबी और संचार व्यवस्था में व्यवधान का तर्क अविश्वसनीय है।
अमर उजाला और उत्तराखंड के कई अन्य अखबार 15 फरवरी को ही प्रधान सेवक के दौरे की मिनट-टू-मिनट रिपोर्ट दे चुके थे-आंखन देखी- कि चार घंटे की देरी से दोपहर 11:30 के आसपास हेलीकाप्टर से कार्बेट पार्क पहुंचने के बाद पी.एम. तीन घंटे यानि लगभग ढाई बजे तक वहां रहे। टाइगर सफारी,इको-टूरिज्म जोन और रेस्क्यू सेंटर का उद्घाटन किया। सप्ताह भर बाद सरकार के सूत्रों ने भी यह बात नहीं छिपायी। स्थानीय अखबारों ने यह भी बताया था कि पी.एम. कालागढ से रामगंगा नदी के रास्ते मोटरबोट से ढिकाला पहुंचे। डिस्कवरी की शूट आधे घंटे की इसी मोटरबोट राइड से शुरू हुई थी और डिस्कवरी इंडिया के चैनल हेड उनके साथ थे। ढिकाला में हाथियो के झुंड के साथ फिर एक घंटे, यानि शाम 4:00 बजे तक की शूटिंग। यानि पुलवामा में फिदायीन हमला दोपहर बाद 3:10 से 3:30 के बीच जब भी हुआ,तब शूटिंग चल रही थी। ओल्ड फारेस्ट रेस्टहाउस में भोजन के बाद सात-आठ गाडियों के काफिले में वह जंगल सफारी पर निकले। सांभर,चीतल,कांकर, हाथी देखे। बाघ नहीं दिखने पर निराश हुये। वहां से खिनलौली वी.आई.पी. गेस्टहाउस। शूटिंग वहां भी जारी रही। यहीं खिनलौली से उन्होंने मोबाइल फोन के जरिये रूद्रपुर की रैली को संबोधित किया। केवल 7 या 8 मिनट। सरकारी सूत्रों के हवाले से 21 और 22 फरवरी को प्रसारित-प्रकाशित और 14 फरवरी की आंखन देखी में आम-सहमति यह थी कि प्रधान जी ने खिनलौली से शाम 5:10 ms 5:15 बजे रूद्रपुर की रैली को संबोधित किया। अलबत्ता सरकारी सूत्रों ने बताया कि पुलवामा के क्षोभ के कारण प्रधान सेवक ने रूद्रपुर जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और मोबाइल से रैली में भाषण भी दिया तो अत्यंत संक्षिप्त। लेकिन रूद्रपुर की रैली में तो पुलवामा का जिक्र तक न था। सच यह है कि हमले की भर्त्सना का पहला ट्वीट भी प्रधान जी ने खिनलौली से रवाना होने के बाद 6:46 पर किया। यह मान पाना नामुमकिन है कि चुनाव के ऐन सामने अपने और अपनी पार्टी के लिये सैन्य राष्ट्रवाद के लाभों से वह गाफिल रहे होंगे और इसका इलहाम उन्हें अगले दिन से हुआ होगा। जब वह सीने में आग धधक रहे होने, सेना को जवाबी कार्रवाई की खुली छूट देने,घर में घुसकर मारने की घोषणाएं करने लगे।
मुख्य विपक्षी पार्टी के इस आरोप से सहमत होना असंभव है कि प्रधान सेवक फिदायीन हमले और जवानों की शहादत की जानकारी मिलने पर भी शूटिंग में व्यस्त रहे। तयशुदा यह लगता है कि शाम पौने सात बजे के आसपास खिनलौली से रवाना होने तक या कम से कम रूद्रपुर रैली के संबोधन तक उन्हे पुलवामाकी जानकारी कतई नहीं रही होगी और 7-8 मिनट में भाषण खत्म कर देने का कारण कुछ और रहा होगा, कोई व्यस्तता या कोई संहिता, ‘डू नाट डिस्टर्ब’ की कोई निषेधाज्ञा। आखिर शो-मैनशिप भी प्रधान जी की शख्सियत का अभिन्न हिस्सा है और इस बात पर भरोसा नहीं किया जा सकता कि उनके पूरे अमले में उनके सुरक्षाकर्मियों और पुलिसवालों में भी किसी को यह जानकारी नहीं रही होगी।
पर कुछ तो था, जिसे सरकार छिपा रही थी, कानून मंत्री कह रहे थे कि डिस्कवरी चैनल के साथ कोई शूटिंग नहीं हुई। लेकिन उन्हीं की सरकार के सूत्रों के हवाले से टाइम्स आफ इंडिया ने बता दिया कि प्रधान जी ने डिस्कवरी के लिये टूरिज्म प्रोमोशन और क्लाइमेट चेंज अवेयरनेस पर एक छोटी सी शूटिंग की। इन्हीं सूत्रों के हवाले से इकानामिक टाइम्स ने बताया कि प्रधान जी को शाम 4:00 बजे जानकारी मिली। वह देरी पर गुस्से में थे और जानकारी मिलने के बाद लगातार फोन पर मंत्रियों-अधिकारियों से चर्चा और हिदायतें देते रहे। रूद्रपुर की रैली में उनका संबोधन इसीलिये टलता रहा। सूत्रों ने इंडिया टुडे वेबसाइट को यह तक कह दिया कि रैली में जाने का कार्यक्रम खराब मौसम ही नहीं,पुलवामा के कारण भी रद्द कर दिया गया। लेकिन रैली में तो उन्हें 3:00 बजे ही बोलना था और मोबाइल के जरिये अपने संबोधन में भी उन्होंने केवल खराब मौसम के कारण रैली में नहीं पहुंच पाने पर तो दुख जताया। पुलवामा का जिक्र तक नहीं किया। सरकार के सूत्रों की जुगत प्रधान सेवक की गमजदा तस्वीर पेश करने की रही होगी, सो कह दिया कि खबर मिलने के बाद पी.एम. ने कुछ भी नहीं खाया। वह लगातार मंत्रियों, अधिकारियों के संपर्क में रहे। समीक्षा का दौर जारी रहा और खिनलौली से बरेली के रास्ते में इसी के लिये 20 मिनट रामनगर के गेस्ट हाउस में रूके भी, जबकि एक स्थानीय अखबार सप्ताह भर पहले बता चुका था कि रामनगर के पी.डब्ल्यू.डी. गेस्टहाउस में 19 मिनट रूककर उन्होंने ढोकला,पनीर और गोभी के पकौडे के साथ चाय का आनन्द लिया।
यह झूठ का झोल था, कुछ छिपाने के लिये दस जुबानों से परोसे जा रहे झूठ का झोल। कारिंदे बोल रहे थे और वाचाल प्रधान चुप था। यह झूठ 28 मई 1998 को नहीं था। सरकार छिपा नहीं रही थी। वह लैप्स मान रही थी। शिवराज पाटिल के धमाके पर सूचना एवं प्रसारण मंत्री सुषमा स्वराज ने पहले 5 मिनट का समय मांगा, फिर न्यूक्लियर टेस्ट्स की पुष्टि की। फिर कहा ‘हम तथ्य जुटा रहे हैं। मैं सदन में विस्तृत वक्तव्य या विवरण रखूंगी।’’ यह नहीं कि हमे तो सब पता था। सदन में इस पर प्रधानमंत्री से वक्तव्य की मांग और सदन में उनके आने तक 10-15 मिनट के लिये सदन की कार्यवाही स्थगित कर देने की शरद पवार की मांग पर सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि वह अपना भाषण जारी रखना चाहेंगे। तभी खुराना ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री बस आने ही वाले हैं। वह तुरंत आ भी गये। सोमनाथ ने पहले तो पूछा कि वह अपनी बात जारी रखें या कि प्रधानमंत्री वक्तव्य देना चाहेंगे, लेकिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के यह पूछने पर कि क्या वह पहले अपनी बात पूरी करना चाहेंगे,सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि वह साफ-साफ बतायें कि जानकारी सही है या नहीं।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहना शुरू किया- “श्रीमान स्पीकर,हमें अभी-अभी यह खबर मिली है।’’ इस पर नागपुर से सांसद विलास मुत्तमवार ने टोका कि अभी नहीं ‘आधे घंटे पहले।’ टोकाटोकी से चिढ़े वाजपेयी बोले- ‘आपकी तरह मैं भी सदन में ही था जब मुझे यह खबर मिली… क्या आपको दो घंटे पहले पता चल गया था।’
दरअसल ऐसा लैप्स विचलित कर देता है, ‘अन-नर्व’ कर देता है, वाजपेयी जैसे बडे नेताओं को भी। पर झेंप में उन्होने चुप्पी नहीं साध ली। अपनी चूक में दूसरों को जरूर शामिल कर लिया, जबकि सूचना तंत्र की सफलता इस बात में है कि देश की सुरक्षा के लिये गंभीर नतीजों की हर सूचना सरकार और उसके मुखिया को बिना देरी के मिल जाये, इस बात में नहीं कि विपक्ष को सूचना कितनी जल्दी या देरी से मिली।
(‘संसद चर्चा’ स्तंभ के लेखक राजेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और संसद की रिपोर्टिंग का इन्हें लंबा अनुभव है)