पिछले तीन दिनों से सोशल मीडिया पर भीमा कोरेगांव की एबीपी न्यूज़ पर कवरेज की एक तस्वीर घूम रही है जिसमें 1 जनवरी को हुई हिंसा को ”दलित बनाम हिंदू संगठन” लिखा गया है। इस तस्वीर पर कुछ तबकों की ओर से घोर आपत्ति की गई है कि दलितों को हिंदुओं के खिलाफ क्यों दिखाया गया जबकि वे खुद हिंदू हैं। इस तर्क के जवाब में भी तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं आई हैं।
मीडियाविजिल अपने पाठकों के लिए इस तस्वीर पर सवाल के रूप में व्यालोक की टिप्पणी प्रकाशित कर रहा है और उसका जवाब कंवल भारती की पोस्ट के रूप में प्रकाशित है। दोनों ही फेसबुक से साभार हैं।
व्यालोक
हिंदुओं और दलितों के बीच झगड़े की हेडलाइन चलानेवाले चैनल आपराधिक षडयंत्र कर रहे हैं। वे मूर्ख नहीं हैं। वे वेटिकन पोषित वैसी ताकतें हैं, जिनको रंज सबसे अधिक है, मोदी सरकार से। पत्रकारिता की शुचिता तो अचानक ही इस कदर शहीद हुई है कि अब तो आंखें तरस गयी हैं कहीं देखने को- ‘दो संप्रदायों के बीच झड़प’। अब खुलेआम हिंदू-मुसलमान और नाम देकर समाचार लिखा जाता है। यह भी बड़ी ही मज़ेदार बात है कि जब हमने पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू की थी, तो हमें बताया गया था कि सांप्रदायिक दंगों की रिपोर्ट पूरी संवेदनशीलता के साथ करना है। संवेदनशीलता का पहला पाठ यह सिखाया जाता था कि आप हिंदू-मुसलमान नहीं लिखेंगे, दो संप्रदायों के बीच झगड़ा लिखेंगे। यह एक ठीकठाक व्यवस्था थी, क्योंकि दो संप्रदायों के लिखने में व्यक्ति का ‘स्व’, उसका ‘पूर्वग्रह’ दखल नहीं देता था। अब आप जैसे ही हिंदू-मुसलमान लिखते हैं, तो लिखने वाले रिपोर्टर या पत्रकार की संतुलन-क्षमता प्रश्नों के घेरे में आएगी।
ये लेकिन इंतहा है। यह बौद्धिक और रचनात्मक बेईमानी का चरम है। अगर दलितों को आप अलग रख रहे हो, तो बताओ कि वे कौन हैं? क्या वे ईसाई हैं, मोहम्मडन हैं, सिख हैं, बौद्ध हैं, जैन हैं… कौन हैं? भारतीय संविधान और समाज में नास्तिकों या दलितों की कोई धार्मिक पहचान अलग से नहीं है। आज जो दलितों की आन-बान के नाम पर आपराधिक षडयंत्र कर रहे हैं, वे ज़रा बताएंगे कि जब वे झलकारी बाई को पहली वीरांगना के रूप में पेश करते हैं, उस झलकारी बाई का समाज कोली का था। वे जिस बिजली पासी को नायक बताते हैं, वे तो पासी समाज के थे। हिंदू समाज का कौन सा तबका अंग्रेजों से लड़ा नहीं था? अगर, टीपू सुल्तान अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के कारण नायक, तो फिर अंग्रेजों के साथ लड़ने वालों को नायकत्व किस तर्क से?
मैं सचमुच पूछना चाहता हूं कि जिग्नेश मेवाणी अपने धर्म के कॉलम में क्या लिखते होंगे, कल तक। खालिद जब जेएनयू का फॉर्म भरता होगा, तो क्या धर्म का खाता खाली छोड़ता है। कन्हैया जब इंट्रेंस टेस्ट दे रहा होगा, तो क्या उसने वामपंथ को धर्म के कॉलम में जुड़वाने के लिए झगड़ा किया होगा? शहला राशिद जब तीन तलाक के विरुद्ध बननेवाले कानून के विरोध में अपनी मुस्लिम पहचान को ओढ़ती हैं, तीन-तलाक के पक्ष में किए ट्वीट को रीट्वीट करती हैं, तो वह क्या साबित कर रही होती हैं?
कँवल भारती
जब हम कहते हैं कि दलित हिन्दू नहीं हैं, तो हिन्दुओं को लगता है कि हम बगावत कर रहे हैं.
लेकिन कोई भी हिन्दू गुरु और नेता हमें यह समझाने में कामयाब नहीं हुआ है कि हमारा कथन गलत है.
कोई भी हिन्दू गुरु और नेता हमें यह समझाने में कामयाब नहीं हुआ है कि हम किस आधार पर हिन्दू हैं.
कोई भी हिन्दू गुरु और नेता हमें यह समझाने में कामयाब नहीं हुआ है कि अगर हम हिन्दू हैं तो सदियों से हिन्दू हम पर अत्याचार क्यों करते आ रहे हैं?
कोई भी हिन्दू गुरु और नेता हमें यह समझाने में कामयाब नहीं हुआ है कि उनके धर्मशास्त्रों में हमारे लिए घृणा क्यों प्रदर्शित की गई है?
कोई भी हिन्दू गुरु और नेता हमें यह समझाने में कामयाब नहीं हुआ है कि अगर हम हिन्दू हैं तो हिन्दुओं ने हमें अधिकारों से वंचित क्यों रखा?
कोई भी हिन्दू गुरु और नेता हमें यह समझाने में कामयाब नहीं हुआ है कि अगर हम हिन्दू हैं तो हमें मारा क्यों जाता है?
हमें महाद में मारा गया, जहाँ हमने सार्वजनिक तालाब से पानी लेने का प्रयास किया.
हमनें नासिक में मारा गया, जहाँ हमने मन्दिर में प्रवेश करना चाहा.
और तो और जब हमने राजनीतिक अधिकारों की मांग की, तो देशभर के हिन्दू हमारे दुश्मन बन गये. क्यों किया था तुमने ऐसा?
तुमने हमें पढ़ने नहीं दिया, पक्का घर नहीं बनाने दिया, साफ़ कपड़े नहीं पहिनने दिए, साइकिल पर नहीं चढ़ने दिया, और कहते हो हम हिन्दू हैं.
हम हिन्दू नहीं हैं.
आज़ादी से पहले के अत्याचारों को छोड़ भी दें, तो उसके बाद से लगातार हम पर हमले किये जा रहे हैं, काटा जा रहा है, मारा जा रहा है, जलाया जा रहा है. बर्बाद किया जा रहा है. क्या-क्या जुल्म नहीं किया जा रहा है?
अच्छा यह बताओ—
ब्राह्मणों ने ठाकुरों पर कितने जुल्म किये?
ठाकुरों ने ब्राह्मणों पर कितने जुल्म किये?
ठाकुरों ने बनियों पर कितने जुल्म किये?
और बनियों ने ठाकुरों या ब्राह्मणों पर कितने जुल्म किये?
यह भी बताओ कि दलितों पर अत्याचार में ब्राह्मण, ठाकुर और बनिया सब एक क्यों हो जाते हैं?
हिन्दुओं तुम यह भी बताओ कि तुम्हारी नफरत का कारण क्या है?
दलितों ने तुम्हारे साथ ऐसा कौन सा जुल्म किया है कि सदियों से तुम सब मिलकर उसका बदला ले रहे हो?
कोरेगाँव में दलितों के आयोजन में भगवा पलटन क्या करने गई थी?
यह कौन सी नफरत है जो तुम्हें बार-बार दलितों को मारने के लिए उकसाती है?
हम तुम्हारी इस नफरत का स्रोत जानना चाहते हैं?
बताओ मोहन भागवत?
बताओ शिवसेना प्रमुख?
बताओ भाजपाइयों?
बताओ शंकराचार्यों ?
कोई तो कुछ बताओ?
यह नफरत तुम्हें कहाँ से मिली?
तुम हमसे ही नहीं, अपने सिवा सबसे नफरत करते हो—
तुम मुसलमानों से नफरत करते हो, ईसाईयों से नफरत करते हो, आदिवासियों से नफरत करते हो?
क्यों करते हो? क्या इन लोगों से तुम्हारी नफरत का सिरा दलितों से जुड़ा हुआ है?
क्या नफरत के सिवा भी तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है?
नफरत के सौदागरों,
अब बहुत हो चुका.
क्या तुम्हारे आकाओं को नहीं दिख रहा है, कि तुम्हारी नफरत का जवाब अगर नफरत से देने का सिलसिला शुरू हो गया, तो क्या होगा?
कायरों सत्ता का सहारा लेते हो?
पुलिस को अपना हथियार बनाते हो?
इससे तुम नफरत को और हवा दे रहे हो.
अगर तुम पीढ़ी-दर-पीढ़ी नफरत पाल सकते हो, तो समझ लो, दलितों में भी तुम्हारे लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी नफरत भरती जा रही है.
इस नफरत को लेकर कैसा भारत बनाना चाहते हो—
संघियों, भाजपाइयों, हिन्दुओं