मोदी हैं कोतवाल तो जागरण को डर काहे का।
हिंदी के नंबर एक होने का दम भरने वाला दैनिक जागरण वाक़ई नंबरी निकला। यह पहली बार है जब किसी राष्ट्रीय कहे जाने वाले अख़बार ने प्रतिबंध को ठेंगे पर रखते हुए ‘एक्ज़ि पोल’ प्रकाशित किया। इस ‘दुस्साहस’ का नतीजा है- यूपी में पहले चरण के चुनाव में बीजेपी ने सबको पीछे छोड़ा। नंबर दो पर बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन तीसरे नंबर पर।
दैनिक जागरण ने अपनी वेबसाइट पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 73 सीटों पर 11 फरवरी को हुए चुनाव का यह एक्ज़िट पोल छापा। हवाला दिया गया किसी रिसोर्स डेवलेपमेंट इन्टरनेशनल (आरडीआई) के सर्वे का। लेकिन यह सर्वे किस पार्टी या संगठन के कहने पर हुआ, ख़बर में यह बात गोल है। दावा किया गया है कि 38 विधानसभा सीटों के 5700 मतदाताओ से मतदान बाद बात की गई।
इस सर्वे को “फ़ीडबैक ऑफॉ वोटर्स” नाम दिया गया लेकिन यह साफ़ तौर पर एक्ज़िट पोल ही है जिस पर इलेक्शन कमीशन की ओर से प्रतिबंधित किया जा चुका है। इस रिपोर्ट के आने के साथ ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने लखनऊ में पहले चरण की 50 सीटें जीतने का दावा किया। जागरण साफ़तौर पर बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने में जुटा है। पहले चरण को लेकर सभी दल सफलता का दावा कर रहे हैं ताकि बाक़ी छह चरणों के लिए समर्थकों में उत्साह बढ़े। उनके लिए यह स्वाभाविक है। लेकिन किसी पत्रकारिता संस्थान का इस दाँव-पेंच में हिस्सा लेना शर्मनाक है। वैसे भी उसकी ख्याति बीजेपी के मुखपत्र जैसी ही है। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद पहला साक्षात्कार दैनिक जागरण को ही दिया था।
चुनाव आयोग ने पहली बार 1998 में एक्ज़िट पोल प्रकाशित करने पर पाबंदी का दिशानिर्देश जारी किया था। इसे 1999 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। आख़िरकार 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि चुनाव आयोग को ऐसे निर्देश जारी करने का पूरा अधिकार है। तब से पहले चरण के मतदान के 48 घंटे पहले से अंतिम चरण के मतदान तक किसी भी तरह के ओपीनियन या एक्ज़िट पोल के नतीजों को, किसी भी माध्यम में प्रकाशित करने पर पाबंदी है।
ज़ाहिर है, दैनिक जागरण सीधे चुनाव आयोग को चुनौती दी है। देखना है कि आयोग उसके ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई कर पाता है। वैसे जागरण के दुस्साहस को देखते हुए यह साफ़ है कि उसे बीजेपी से अभयदान मिला हुआ है। या कहें कि वह पत्रकारिता की आड़ में बीजेपी के लिए शिखंडी बन गया है।
हालाँकि इस मसले पर हो रहे हंगामे को देखते हुए वेबसाइट से यह ख़बर हटा ली गई है। लेकिन बीजेपी की जीत की हवा बनाने लायक मसाला तो उसने मुहेया करा ही दिया है।
जागरण का यह रंग बिहार चुनाव के समय भी मशहूर था। यह अलग बात है कि नतीजे बिलकुल उलट आये।
ख़ैर जागरण को इससे क्या फ़र्क प़ड़ता है। कभी प्रेस काउंसिल ने भी उसे सांप्रदायिक उन्माद भड़काने का दोषी क़रार दिया था। लेकिन उन्माद के बढ़ने के साथ ही धंधे में बढ़ते जाना उसका घोषित फ़ार्मूला है। वैसे भी अब मोदी सैंया ही कोतवाल हैं तो डर काहे का..कर लीजिए जो करते बने !
.बर्बरीक