वॉचडॉग, यानी घर की रखवाली करने वाल कुत्ता अगर चोरों के सामने दुम हिलाने लगे तो फिर घर का लुटना तय है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए भी कुछ वॉचडॉग हैं। मीडिया स्वयंभू वॉचडॉग है तो सीवीसी यानी सेंट्रल विजिलेंस कमीशन या केंद्रीय सतर्कता आयोग संवैधानिक शक्तियों से लैस वॉचडॉग। केंद्रीय कर्मचारियों और अधिकारियों के भ्रष्टाचार की निगरानी के लिए गठित यह सर्वोच्च संस्था।
ऐसे में यह ख़बर बेहद चिंताजनक है कि सीवीसी बीती 6 अक्टूबर को तत्कालीन सीबीआई चीफ़ आलोक वर्मा के सरकारी आवास पर गए। वे सीबीआई के दाग़ी अफसर राकेश अस्थाना की पैरवी करने गए थे। ठेठ भाषा में कहें तो पटाने ताकि पीएम मोदी के प्रिय राकेश अस्थाना को बचाया जा सके।
इंडियन एक्सप्रेस में आज छपी रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई डायरेक्टर के पद से हटाए गए आलोक वर्मा ने सीवीसी की ओर से हो रही उनकी जाँच की निगरानी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश ए.के.पटनायक को बताया था कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के.वी.चौधरी 6 अक्टूबर को उनके घर पहुँचे थे। वे 11 बजे के करीब आए और एक घंटे तक रहे। दरअसल वे अस्थाना की एनुअल पर्फार्मेंस एप्रेज़ल रिपोर्ट को लेकर बात करने गए थे जिस पर वर्मा ने कुछ सख्त प्रतिकूल टिप्पणियाँ की थीं। चौधरी चाहते थे कि कोई ‘रास्ता’ निकाला जाए ताकि ये टिप्पणियाँ हट जाएँ। वर्मा ने जस्टिस पटनायक को लिखा है कि उन्होंने चौधरी को वही जवाब दिया जो उन्होंने अपने बैचमेट और मुख्य सतर्कता आयुक्त शरद कुमार को दिया था- ‘अस्थाना इस संबंध में नियम-कायदों के तहत राहत पाने की कोशिश कर सकते हैं।’
साफ़ है कि सीवीसी की ओर से निगरानी करने वाली संस्था नहीं बल्कि बिचौलिये जैसी भूमिका अदा की जा रही थी। हैरानी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट में पेश सीवीसी की रिपोर्ट में इसका कोई उल्लेख नहीं है। आलोक वर्मा ने यह भी आरोप लगाया है कि सीवीसी ने रिपोर्ट में तमाम ग़लतबयानी की है। इसी रिपोर्ट के आधार पर आलोक वर्मा को तुरत-फुरत सीबीआई चीफ़ के पद से हटाया गया है।
ज़ाहिर है, जस्टिस ए.के.पटनायक इस खेल को समझ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सीवीसी की जाँच पर भरोसा न करते हुए जस्टिस पटनायक को उसकी निगरानी के लिए नियुक्त किया था।
सजग टिप्पणीकार गिरीश मालवीय लिखते हैं-
कल इंडियन एक्सप्रेस में आए AK पटनायक के बयान साथ अब स्थिति बिल्कुल साफ हो गयी है कि मोदीजी ने आलोक वर्मा को हटाने के लिए CVC का मनमाना इस्तेमाल किया है।
पटनायक ने कल विभिन्न मीडिया हाउस से बातचीत करते हुए साफ किया कि आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई साक्ष्य नहीं हैं। पटनायक ने कहा, पीएम मोदी के नेतृत्व वाले पैनल द्वारा आलोक वर्मा को हटाना बहुत ही जल्दबाजी में लिया गया निर्णय था। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि सीवीसी के निष्कर्ष मेरे नहीं हैं। पूरी जांच सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की शिकायत पर की गई थी। सीवीसी ने मुझे 9.11.2018 को एक बयान भेजा था जो कि राकेश अस्थाना द्वारा हस्ताक्षरित है। मैं स्पष्ट करता हूं कि राकेश अस्थाना द्वारा हस्ताक्षरित यह बयान मेरी उपस्थिति में दर्ज नहीं किया गया था।’
मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस बारे मे कल महत्वपूर्ण बयान दिया कि बैठक बुलाने के बाद भी तीन सदस्यीय हाई पावर्ड कमेटी के सामने रखे जाने वाले सारे कागजात प्रस्तुत नहीं किए गए थे। उन्होंने सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर ही कार्रवाई की। मैंने समिति में पूछा कि पटनायक की रिपोर्ट क्यों नहीं थी। मैंने मामले पर आलोक वर्मा का बयान मांगा। तब यह सामने आया कि सीवीसी की रिपोर्ट में सब कुछ है।’
सूत्रों के अनुसार हाई पावर्ड कमेटी के दूसरे सदस्य जस्टिस ए.के. सीकरी जिन्होंने इस निर्णय में मोदीजी का समर्थन किया वह जल्द ही रिटायर होने वाले हैं उन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 31 दिसम्बर को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) का कार्यकारी अध्यक्ष (EC) मनोनीत किया है। जस्टिस मदन बी. लोकुर के रिटायरमेंट के बाद यह पद खाली हो गया था।
राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी का दावा है कि राफेल के दस्तावेज आलोक वर्मा के पास पहुंच चुके थे। राफेल मामले की तफतीश चल रही थी। इस मामले से जुड़े कई अहम दस्तावेज और दूसरे सबूत आने वाले थे। आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद पर काम करने के लिए अगर चंद घंटे और मिल जाते तो केंद्र सरकार हिल जाती।
बहरहाल बड़ा सवाल ये है कि जिस सरकार को मोदी जी बेहद मज़बूत बताते घूम रहे हैं। वह इतनी घबराई क्यों है। क्या मज़बूत सरकार का मतलब संविधान, नियम, क़ानून को जूते की नोक पर रखना होता है। बेहतर हो कि देश में कोई मजबूर सरकार रहे जो संविधान की मर्यादा का उल्लंघन करने की हिम्मत न कर सके।