क्या आपने जंक न्यूज़ के बारे में सुना है? ध्यान रहे जंक न्यूज़ और फेक न्यूज़ दो अलग अलग चीज़ें हैं. फिलहाल हम जंक न्यूज़ को कचरा खबरें कह सकते हैं, तो सवाल है कि सबसे ज्यादा जंक न्यूज़ या कचरा कौन फैलाता है? इस सप्ताह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कम्प्यूटेशनल प्रोपैगैण्डा प्रोजेक्ट की रिपोर्ट के अनुसार बीते साल यह काम अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के समर्थकों और उनसे जुड़े संघठनों ने उनका प्रचार करने और उनकी छवि को चमकाने के लिए ख़ूब जमकर किया ।
बीती जनवरी में जब ट्रम्प के स्टेट ऑफ़ द यूनियन सम्बोधन से पहले के तीन महीने या उससे ज्यादा की अवधि में ऐसी खबरों का जमकर प्रचार प्रसार किया गया। ट्रम्प के संबोधन के बाद ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं ने अमेरिकी राजनीतिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए सभी प्रकार के सोशल मीडिया मंचों का विश्लेषण किया। पता लगाने की कोशिश की गई कि इस प्रकार की सामग्री आ कहाँ से रही है और उसका क्या प्रभाव हो सकता है।
लगभग 14,000 फेसबुक/ट्विटर प्रयोगकर्ताओं के 48,000 सार्वजनिक फेसबुक पेज और ट्वीट्स को देखते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि ट्विटर पर ट्रम्प समर्थक एक नेटवर्क कैसे जंक न्यूज को अत्यधिक शेयर करता है जो कि दूसरे दुष्प्रचार करने वाले ग्रुप से बहुत ज्यादा था। ट्रम्प समर्थकों का एक नेटवर्क “ज्ञात जंक समाचार स्रोतों की सबसे विस्तृत श्रृंखला साझा करता है और सभी अन्य समूहों की तुलना में अधिक जंक समाचार प्रसारित करता है”, जबकि फेसबुक पर इस तरह की खबरों को दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा अत्यधिक मात्रा में शेयर लाइक किया गया। फाइनेंशियल टाइम्स से जुड़े ‘डेविड ब्लड और जॉन बर्न-मर्डोक ने ऑक्सफ़ोर्ड डेटा को ग्राफिक के जरिये आसान तरीके से समझाया है।
gorgeous dataviz from @FinancialTimes about our latest research.
Far right and Trump supporters the biggest–and most isolated–audiences for junk news in the US.@oiioxford @oxsocsci @UniofOxford pic.twitter.com/bhjP54cBOW
— Phil Howard (@pnhoward) February 6, 2018
ये ऐसी साइटें हैं जो उपयोगकर्ता के ठीक-ठाक चल रहे दिमाग़ को कट्टरपंथी, सनसनीखेज, षड्यंत्रकारी के रूप में बदलकर फर्जी खबरों के प्रचार के लायक बना देते हैं। “प्रमुख शोधकर्ता फिलिप हॉवर्ड ने मैक्क्लेक्टी के ग्रेग गॉर्डन को बताया कि “वे ऐसी खबरों को प्रसारित करते समय “आपको इसकी/उसकी कसम” जैसे आसान शब्दों का प्रयोग करते हैं जो आसानी से दिमाग़ में चढ़ जाते हैं। ऐसी खबरों पर इस किस्म की टिप्पणी को मास्किंग कह सकते हैं।
वाशिंगटन पोस्ट के एरिक वेम्पल लिखते हैं: खबरों के जंजाल से बाहर निकलना बड़ा कठिन है। बेवसाइट्स पर बहुत ज्यादा ख़बरें आती हैं, जिनके बहुत सारे स्रोत हो सकते हैं, फेसबुक, ट्विटर पर भी लगातार ख़बरें आती रहती हैं, यह किसी बड़े समुद्र के जैसा है। ऐसे में वास्तविक और काम की खबर निकालना बहुत मुश्किल है। इसके लिए ऑक्सफोर्ड ने बहुत सरल तरीका निकाला है जो हमारा काम आसान कर सकता है। समाचार स्रोतों के बारे में अध्ययन करें, और फिर देखें कि कैसे इन खबरों को छोड़ा जा सकता है।
निमान लैब से साभार