अगर अख़बार ही दंगाई मिज़ाज के हो जाएँ तो जनता क्या करे। एक-दूसरे का सिर फोड़ दे ताकि रक्तरंजित पन्नों वाले अख़बारों का धंधा चमके या होशमंदी से काम लेकर दगाई इरादों वाले अख़बारों को सबक़ सिखाए। उनका बहिष्कार करे।
कम से कम फ़ैज़ाबाद के बारुन बज़ार के व्यापारियों ने यही रास्ता अपनाया है। मसला ग्राम समाज की ज़मीन पर कथित अवैध क़ब्ज़े से जुड़ी एक छोटी से घटना का था जिसमें अख़बारों ने झूठ का तड़का मारकर सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश की, लेकिन सजग व्यापारियों ने इन इरादों को वक़्त रहते भाँप लिया और बीते पाँच दिनों से इन अख़बारों का बहिष्कार जारी है। अख़बार भी कौन…ख़ुद को हिंदी का एकमात्र राष्ट्रीय पत्र समझने वाला ‘हिंदुस्तान’ और एक नंबरी ख्व़ाब से पीड़ित ‘अमर उजाला।’
अनैतिक व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा के चक्कर में अगर ये दोनों अखबार मामले को बेवजह बढ़ाते नहीं तो वह कुल मिलाकर इतना भर था कि पड़ोस के दौलतपुर गांव के निवासी अल्पसंख्यक नौशाद ने बारुन बाजार में बंजर यानी ग्राम समाज की भूमि पर पक्का घर बनवा लिया था। वह दावा करता था कि उस भूमि के स्वामी से उसने अपने पक्ष में बैनामा करवा लिया है। चूंकि बंजरभूमि का बैनामा नहीं किया जा सकता और वैध पट्टे के बगैर उस पर किया गया कोई भी कब्जा या निर्माण अवैध होता है, इसलिए देवरिया ग्राम पंचायत के लेखपाल ने अपना फर्ज़ समझकर मिल्कीपुर तहसील में उक्त भूमि से नौशाद की बेदखली और उसके मकान के ध्वस्तीकरण का मामला दायर कर रखा था। बारुन बाजार इसी देवरिया ग्राम पंचायत में है।
आगे चलकर स्वामित्व के विवाद के रूप में यह मामला इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में पहुंचा तो नौशाद वहां भी उक्त भूमि पर अपने कब्जे को कानूनी नहीं सिद्ध कर पाया और न्यायालय ने मामले को खारिज कर दिया। तब तहसील प्रशासन ने उसके घर पर नोटिस चस्पां करा दिया कि वह 23 मार्च की निश्चित तिथि तक भूमि से अपना कब्जा नहीं हटायेगा तो उसे बलपूर्वक हटा या कि ध्वस्त कर दिया जायेगा। नौशाद ने इसके खिलाफ फिर उच्च न्यायालय की शरण ली। लेकिन जब तक न्यायालय अगले आदेश तक ध्वस्तीकरण रोकने का नया आदेश देता और उसकी सूचना जिला प्रशासन तक पहुंचती, तहसील प्रशासन ने आनन फानन में भारी पुलिस बल की उपस्थिति में जेसीबी मशीन से उसका मकान गिरवा दिया। उसने बार-बार कहा कि उच्च न्यायालय ने उसकी बेदखली रोकने का आदेश दे दिया है और उसकी सूचना बस पहुँचने ही वाली है, लेकिन प्रशासन ने एक नहीं सुनी।
गौरतलब है कि ये प्रदेश में हिन्दुत्ववादी योगी आदित्यनाथ के राज्यारोहण के शुरुआती दिन थे और जिस तरह हड़बड़ी में नौशाद का पक्का मकान ढहाया गया, उससे न सिर्फ क्षेत्र में सनसनी फैल गयी, बल्कि अल्पसंख्यकों का बड़ा ग़रीब तबका सकते में आ गया।
ऐसी नाजुक परिस्थिति में लखनऊ से प्रकाशित ‘अमर उजाला’ व ‘हिन्दुस्तान’ ने अपने 24 मार्च के अंक में इस मामले की ऐसी दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिंग की, जिससे क्षेत्र में हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव बिगड़ने का अंदेशा पैदा हो गया। उन्होंने लिखा कि अतिक्रमण करके बनाये गये नौशाद के मकान के चलते एक मन्दिर का रास्ता अवरुद्ध हो गया था और बाजार के व्यापारियों ने उच्च प्रशासनिक अधिकारियों तक से इसकी शिकायत कर रखी थी। सच्चाई यह थी कि मन्दिर का रास्ता अपनी जगह पर था और उसमें दूसरे कारणों से भले अवरोध रहे हों, नौशाद के मकान के कारण कोई अवरोध नहीं पैदा हो रहा था। जाहिर है कि व्यापारियों के इस बाबत कोई शिकायत करने का सवाल ही नहीं था।
व्यापारियों ने खबर पढ़कर जाना कि मामले को व्यापारी बनाम अल्पसंख्यक बनाया जा रहा है तो उन्हें इन अखबारों का मन्सूबा समझते देर नहीं लगी। उन्होंने इनके सामने हथियार नहीं डाले और प्रतिरोध करने का फैसला किया। सबसे पहले तो उन्होंने अपना क्षोभ व्यक्त करने के लिए व्यापार मंडल की बैठक की जिसमें प्रशासन व अवैध कब्जेदार के बीच के एक सामान्य से मामले को साम्प्रदायिक रंग देकर उसे मन्दिर के रास्ते व व्यापारियों से जोड़ने के लिए दोनों अखबारों की भर्त्सना की। साथ ही उनके सम्पादकों से माँग की कि वे ग़लत खबर छापने के लिए खेद जतायें। यह भी कहा कि वे यह संदेश देने से बाज आयें कि प्रदेश में ‘हिन्दू सरकार’ आ गयी है तो बाज़ार के व्यापारी अपनी ओर से शिकायत करके अल्पसंख्यकों के घर गिरवाने पर उतर आये हैं। व्यापार मंडल के नेता श्याम किशोर ने बैठक की अध्यक्षता की। ग्राम प्रधान हरि ओम कौशल भी इस मुद्दे पर व्यापारियों के साथ हैं।
ज़ाहिर है, इन ‘राष्ट्रीय अख़बारों’ को छोटे व्यापारियों की क्या परवाह होती। उन्होंने माँग पर कान नहीं दिया। तब व्यापारियों ने अपना पक्ष प्रचारित करने के लिए एक दिन के बाज़ार बन्द का आह्वान किया और दोनों अखबारों के वहिष्कार का ऐलान कर दिया। इन पंक्तियां लिख जाने तक दोनों अखबारों का वहिष्कार जारी है।
.फ़ैज़ाबाद से अवध कुमार की रिपोर्ट