क्या आप दारैन शाहिदी को जानते हैं ? दारैन निजी चैनलों के पहले हिंदी ऐंकर हैं। क़रीब 25 बरस पहले वे बीआईटीवी में ऐंकरिंग करते थे, उसके बाद बीबीसी में रहे। बाद में कई और टी.वी.चैनलों में काम करने के बाद अब ‘लगभग स्वतंत्र’ पत्रकारिता कर रहे हैं। हाल में उनकी पहचान एक उस्ताद दास्तानगो की बनी है। दास्तानगोई क़िस्सा सुनाने की एक पुरानी विधा है जिसको पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है। दारेन भारत में इस प्रयास का चेहरा बनकर उभरे हैं।
और प्रखर श्रीवास्तव ? यह भी टीवी पत्रकार हैं। आजकल न्यूज़ 24 में आउटपुट की ज़िम्मेदारी सँभाल रहे हैं। कई चैनलों में काम किया है। पिछली बार इनकी ओर ध्यान तब गया था जब एनडीटीवी पर एक दिनी बैन की चर्चा के बीच उन्होंने अपने अनुभवों से एनडीटीवी के “राष्ट्रद्रोही” होने की गवाही दी थी। प्रखर 15 महीने एनडीटीवी में भी काम कर चुके हैं। पिछलि दिनों उन्होंने भी यह सवाल बढ़चढ़कर उठाया कि बलात्कार के एक मामले में अपने आरोपी भाई की ख़बर को रवीश कुमार ने एनडीटीवी पर अपने कार्यक्रम प्राइमटाइम में क्यों नहीं दिखाया ?
यह प्रखर का अधिकार है कि वे किस पर सवाल उठाएँ और किस पर नहीं। उनकी राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ भी उनका अधिकार है। लेकिन यहाँ दारैन शाहिदी के साथ उनकी बात करने का मक़सद वह विवाद है, जो उनकी नासमझी और दिमाग़ी बुनवाट का पता देती है। उन्होंने दारेन की घेरेबंदी करके उन्हें ‘नकली पत्रकार’ और ‘असली मुसलमान’ घोषित कर दिया। दिखाई गई वजह यह थी कि दारैन ने मस्जिद और दरगाह को एक नहीं माना (जो हैं भी नहीं), जबकि असल में प्रखर पीएम मोदी पर उठाए गए सवाल से नाराज़ थे।
दारैन के बारे में यह प्रखर प्रमाणपत्र बाँचिए-
“मुझे आश्चर्य होता है कि दारैन जैसे लोग चौड़े पर मंदिर की तुलना दरगाह से कर देते हैं लेकिन दरगाह और मस्जिद की तुलना करने में इनका इस्लाम आड़े आने लगता है… असल मे आज ये साबित हो गया कि पिछले 20 साल से पत्रकार होने का अभिनय कर रहे इस शख्स के अंदर का एक “असली” मुसलमान एक “नकली” पत्रकार से कहीं ऊपर है… दारेन और मेरेे बीच हुए इस संवाद को पढ़िए और बताइये कि सेक्युलर होने का मुखौटा पहने ऐसे पत्रकारों का क्या किया जाए…”
कोई याद दिलाए उनको क्या बोले थे “भेदभाव नहीं होना चैये”
ज़ाहिर है ये पोस्ट तमाम नेताओं के लिए थी जिन्होंने वाराणसी में मंदिरों के दर्शन किये और खासतौर से नरेंद्र मोदी पर कटाक्ष था जिन्होंने कुछ ही दिन पहले कहा था की भेदभाव नहीं होना चाहिए।
इस पोस्ट पर इक्के दुक्के रिएक्शन के बाद कूदे न्यूज़ 24 के आउटपुट हेड की ज़िम्मेदारी संभाल रहे प्रखर श्रीवास्तव। ‘सिर्फ मंदिर जाने वाले’ नेता को डिफेंड करते हुए ये क्या लिखते हैं देखिये
अपने आखरी रिएक्शन के साथ प्रखर ने एक फोटो भी लगाई जिसपर दारैन शाहिदी ने लिखा की “आपका विचार उच्च है” इस पर प्रखर कहते हैं की आप बात को हवा कर रहे हैं। ज़ाहिर है दारैन ने पहले तीन रिएक्शन पर कोई जवाब नहीं दिया
प्रखर की बातें वही दुष्प्रचार है जो संघ अरसे से कर रहा है। प्रखर पत्रकार हैं तो उन्हें अपने आँकड़े का आधार बताना चाहिए। 90 फीसद मुसलमान दरगाहों पर जाने को कुफ्र मानते हैं ये सरासर गलत है। भारतीय मुसलमान सूफी परंपरा को मानने वाले मुसलमान हैं और दरगाहों पर जाने को लेकर किसी को कोई समस्या नहीं है। हाँ वहाँ जाकर सजदा करने को कुफ्र समझने वाले कुछ हैं। लेकिन उनकी संख्या बमुश्किल 10 फ़ीसद होगी और वे वहाबी विचारधारा के लोग हैं। उनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है, यह सच है। लेकिन यहाँ मामला ये था ही नहीं। दारैन ने मंदिर के साथ दरगाह जाने की बात इस मंशा से लिखी थी की हिंदुओं के धार्मिक स्थल के साथ साथ मुसलमानों के किसी धार्मिक स्थल में चले जाते तो भेदभाव न करने के नारे लगाने वाले नेता के लिए अच्छा होता।
लेकिन प्रखर की मंशा ये नहीं थी। ये उनका ट्रैप था दारैन शाहिदी को फँसाने का। शायद दारैन इसे भाँप गए थे और लगातार सवालों को टाल रहे थे और बहस को ‘भेदभाव नहीं होना चाहिए’ की बात पर वापस लाना चाह रहे थे।
दरगाह अलग है मस्जिद अलग है । दोनों का अपना अलग महत्व है।
प्रखर की भाषा देखिये पाकिस्तान का ज़िक्र करते हुए कहते हैं “हमारे प्रिय पाकिस्तान”
फिर कहते हैं ” आपको आपके परवरदिगार की कसम” (प्रखर बुद्धि में यह बात घुस भी नहीं सकती कि दारैन नाम का कोई शख्स नास्तिक भी हो सकती है !)
प्रखर की नज़र में दारैन महज़ मुसलमान हैं। वे किसी पत्रकार से बात नहीं कर रहे हैं मुसलमान से बात कर रहे हैं। और अंत में इन्हें दारैन को मुसलमान साबित करना था। प्रखर ये मनवाने पर ज़ोर देते रहे कि दरगाह और मस्जिद एक ही है। दारैन ने लाख समझाया कि दोनों अलग अलग हैं। एक सूफी की कब्र है और दूसरी नमाज़ पढ़ने के लिए बनाई गयी इमारत। पर प्रखर अड़े हुए थे की आप को एक मानिये।
दारैन जब अपनी बात पर अड़े रहे तो अंत में खिसिया कर प्रखर अपनी वाल पर गए और ये पोस्ट लिखा
प्रखर की शरारत की पोल खुल चुकी थी। ” सेक्युलर हमले ” सेक्युलर होने का मुखौटा पहने हुए मुसलमान पत्रकार आदि आदि। ये भाषा सीधे संघ की पाठशालाओं में सीखी गयी भाषा है। और न्यूज़ रूम में घुस चुके संघ कार्यकर्ताओं को आसानी से उनकी भाषा से पकड़ा जा सकता है। ऐसे लोग ख़ासतौर पर उन पत्रकारों पर हमले का बहाना ढूंढते रहते हैं जिनकी छवि एक सेक्युलर पत्रकार की है या जो मोदियाबिंद का शिकार अब तक नहीं हुए हैं। हिंदू हुए तो कम्युनिस्ट ‘देशद्रोही’ और अगर नाम दारैन शाहिदी हुआ तो बल्ले-बल्ले। मुसलमान बताकर आखेट करना तो आसान है।
दुखद यह है कि ऐसे ‘प्रखर-प्रचंड…..’ न्यूज़रूम में शीर्ष भूमिकाओं में पाए जाते हैं। भारतीय मीडिया को ऐसे ही संसार में दूसरे नंबर के अविश्वसनीय मीडिया का दर्जा नहीं हासिल है।
बर्बरीक