पूरे सात साल तक अमेरिका की सबसे ताकतवर जेल फोर्ट लीवनवर्थ में तनहाई वाली कैद की सजा भुगतने के बाद चेल्सी मैनिंग 19 या 20 मई को, यानी आज-कल में ही जेल से रिहा हो जाएंगी। अमेरिकी अदालतों ने राजद्रोह और इसी श्रेणी के कुछ अन्य अपराधों में उन्हें 35 साल की सॉलिटरी कन्फाइनमेंट (कैद-ए-तनहाई) की सजा सुनाई थी जिसे इस देश के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसी साल हुई अपनी विदाई के ठीक पहले 17 मई 2017 को घटाकर सात साल की कैद में बदल दिया था। उनकी गिरफ्तारी 20 मई 2010 को हुई थी। यानी कैद के सात साल पूरे हो रहे हैं और रिहाई अब होने ही वाली है
अरब देशों में पांच साल पहले शुरू हुई लोकतांत्रिक क्रांति की लहर अभी तो विकृत होकर कुछ और ही शक्ल ले चुकी है लेकिन कम से कम एक देश ट्यूनीशिया में, जहां से इसकी शुरुआत हुई थी, लोग-बाग आज लोकतंत्र का आनंद ले रहे हैं। कम ही लोगों को याद होगा कि सरकारी दमन की एक मामूली घटना से ट्यूनीशिया में क्रांति का बिगुल बजने से पहले वहां की सत्ता की असलियत विकीलीक्स के जरिए लोगों के सामने आई थी और विकीलीक्स को यह जानकारी मुहैया कराई थी चेल्सी मैनिंग ने जो अपनी गिरफ्तारी से ठीक पहले तक ब्रैडली मैनिंग के रूप में एक अमेरिकी सैनिक हुआ करते थे।
इस लीक से ही पता चला था कि ट्यूनीशियाई शासक परिवार कितनी बेशर्मी से भोग-विलास का जीवन बिता रहा है। इस देश में अमेरिकी राजदूत रहे रॉबर्ट गॉडेक ने अपनी सरकार को भेजे गए एक संदेश में बताया था कि तानाशाह अल मातेरी के परिवार ने अपने महल में बाकायदा एक बाघ पाल रखा है जिसे सुबह-सुबह चार ज़िंदा मुर्गों का नाश्ता कराया जाता है। गॉडेक ने अपने संदेशों को पूरी तरह सुरक्षित मानकर यह भी बता रखा था कि डिनर के बाद मीठे के तौर पर उन्हें जो फ्रॉजन योगर्ट परोसा गया उसे दक्षिणी फ्रांस के सेंट ट्रोपेज शहर से हवाई जहाज के जरिए डिनर के ही वक्त हाथोंहाथ मंगाया गया था।
ट्यूनीशियाई तानाशाह अल मातेरी उस वक्त तक खुद को देश का परम हितैषी, ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाला सीधा-सादा इंसान ही बताया करता था लेकिन विकीलीक्स के जरिए सामने आई उसकी हकीकत ने उसे सरे बाजार नंगा कर दिया। इस तरह की बहुत सारी जानकारियां हार्मोन थेरपी के जरिए पुरुष से स्त्री बने ब्रैडली एडवर्ड मैनिंग ने विकीलीक्स को उपलब्ध कराई थीं। अमेरिकी सुरक्षा ढांचे के क्लैसिफाइड कम्प्यूटर नेटवर्क में मौजूद अतिगोपनीय किस्म की ऐसी सात लाख से भी ज्यादा फाइलें मैनिंग ने वहां से निकालकर विकीलीक्स के हवाले कर दी थीं जिन्हें सार्वजनिक दायरे में आते देर नहीं लगी।
इनमें मौजूद कुछ सूचनाएं न सिर्फ अमेरिकी राजदूतों के लिए बल्कि अमेरिकी फौज के लिए भी भारी बदनामी का सबब बनीं। अफगानिस्तान में स्थित अमेरिकी फौज के प्रमुख को अमेरिकी उपराष्ट्रपति जोसफ बिडेन के प्रति अपशब्दों के प्रयोग के लिए अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इराक में एक अमेरिकी सैन्य टुकड़ी द्वारा मुठभेड़ के नाम पर कुछ इराकी पत्रकारों की दिनदहाड़े हत्या का मामला भी सामने आया जिसके प्रभाव में न सिर्फ उस टुकड़ी को बर्खास्त किया गया बल्कि लोगों के आक्रोश के चलते इराक में अमेरिकी फौजें इस कदर असुरक्षित हो गईं कि उन्हें हड़बड़ी में वहां से हटाना पड़ा।
चेल्सी मैनिंग ने अदालत में दिए गए अपने बयान में अपनी उस दुर्दशा के ब्यौरे दिए जो अमेरिकी फौज के घोर मर्दवादी ढांचे में रहते हुए उन्हें लगातार झेलनी पड़ती थी। अपने द्वारा लीक की गई कुछ सूचनाओं के बारे में उन्हें जानकारी थी, तो ज्यादातर के बारे में नहीं भी थी लेकिन जिस चीज ने उन्हें लीक के लिए प्रेरित किया वह यह कि पूरी दुनिया की किस्मत का फैसला करने वालों की हकीकत दुनिया को पता चलनी ही चाहिए।
अभी जब सत्ता के खिलाफ जाने वाली कोई छोटी से छोटी बात कहते हुए भी हम खुद को पवित्रता के बंधनों में बंधा हुआ पाते हैं तब अक्सर यह भूल ही जाते हैं कि ये बंधन कितने सारे मामूली लोगों की जिंदगियां तबाह कर रहे हैं। चेल्सी मैनिंग की पहल राष्ट्रवाद के पैमाने पर भले ही कितनी भी गलत मानी जाए लेकिन मनुष्यता के धरातल पर खड़े होकर सोचें तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। सारी सरकारें, सारे कूटनीतिज्ञ, दुनिया का सारा फौजी लाव-लश्कर आखिर अपनी रोजी-रोटी के जुगाड़ में लगे आम लोगों के हितों की रक्षा की दुहाई देकर ही तो दिनोंदिन इतना बलशाली, धूर्त और क्रूर होता जा रहा है।
(लेखक नवभारत टाइम्स से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह लेख अख़बार में छपे उनके ब्लॉग से साभार प्रकाशित। )