प्रकाश या विनाश ! अग्निजन्म की तीन कथाएँ !

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स्कन्द शुक्ल

बाहर धूप में घर की सफ़ाई चल रही है। छुटकी दीपक जला रही है। पापा गैस पर पूड़ियाँ तल रहे हैं। वे कुछ पटाखे भी लाये हैं , शाम को पूजा के बाद चलाएँगे। टीवी खुली हुई है , उसमें किम जॉन्ग अन अमेरिका पर परमाणु-मिसाइल दागने की बात कह रहे हैं।

आज ऊर्जा का त्यौहार है। चारों ओर अग्नि की चर्चा है। अग्नि जो अँधेरा दूर करती है , अग्नि जो अन्न को शरीर के बाहर और फिर भीतर पकाती है। अग्नि जो सूर्य में है। अग्नि जो दीपक में भी है। अग्नि जो गैस से भी निकल रही है। अग्नि जो पटाखों से भी छूटेगी। अग्नि जिसका प्रलयंकर भय किम जॉन्ग अन अमेरिका को दिखा रहे हैं।

अग्नि अच्छा-बुरा नहीं जानती। आदमी जानते हैं। वे अग्नि में अपनी नीयत का ईंधन डालकर जलाते हैं। दीपक से लेकर परमाणु-बम तक , सूर्य से लेकर हाइड्रोजन-बम तक, सब एक ही ऊर्जा के अलग-अलग जीवक-मारक रूप हैं।

दीपावली के दिन छुटकी का मुझसे केवल एक सवाल है। जितनी ऊर्जा परमाणु-बम या हाइड्रोजन-बम से निकलती है , उतनी किसी साधारण बम से नहीं निकलती। या कोयला जलाकर जितनी बिजली पैदा होती है , परमाणु-ऊर्जा से उससे कहीं अधिक पैदा हो जाती है। ऐसा किसलिए ?

मैं छुटकी को अग्नि के जन्म की तीन कथाएँ सुनाता हूँ। लेकिन उससे पहले उसे पदार्थ की मोटी संरचना बताता हूँ। हर पदार्थ तरह-तरह के अणुओं से बना है। अणुओं का निर्माण परमाणुओं से हुआ है। परमाणुओं के बीच प्रोटॉनों-न्यूट्रॉनों से निर्मित एक नाभिक नाम की संरचना है जिसके चारों ओर एलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं। अब अग्नि-जन्म पर चलिए।

पहला और सबसे साधारण जन्म हम अपने आसपास रोज़ देखते हैं। हमारे इर्द-गिर्द पदार्थ हैं , उनमें रसायनों के अणु हैं। इन अणुओं में परमाणुओं के एलेक्ट्रॉनों द्वारा बने रासायनिक बन्ध हैं। बाहर से दी गयी चिंगारी रासायनिक बन्ध तोड़ती है। दो परमाणुओं के एलेक्ट्रॉन इधर-से-उधर होते हैं ; नये अणु बनते हैं। इसी में ताप को लिए जो ऊर्जा जन्मती है , वह अग्नि कहलाती है।

दूसरी कथा में परमाणुओं के इलेक्ट्रॉन नहीं इधर-से-उधर होते , उनके नाभिक टूटते हैं। नाभिक से न्यूट्रॉन निकलते हैं। फिर एक नाभिकीय विखण्डन की शृंखला चल पड़ती है। यही एटम-बम का मूल है।

फिर तीसरे जन्म में दो परमाणु-नाभिक आपस में जुड़कर मिल जाते हैं। यह नाभिकीय संलयन है। यह हाइड्रोजन-बम की जन्मकथा है।
नाभिकीय विखण्डन और संलयन में अग्नि का जन्म नाभिक से हो रहा है , यहाँ लीला प्रोटॉनों-न्यूट्रॉनों की है। जबकि साधारण आग में एलेक्ट्रॉनों के रासायनिक बन्ध-भर टूटते हैं।

नाभिक-जन्मा अग्नि का रासायनिक-बन्ध-जन्मा अग्नि से कोई मुक़ाबला नहीं। लेकिन एक वस्तु हर अग्नि को सही-ग़लत दिशा दे सकती है। वह मानव का अपना विवेक है।

# मुख्य तस्वीर में थॉमस कार्लायल (1795-1881)। स्कॉटलैंड के एक गाँव में जन्मे थॉमस कार्लायल अपने समय के प्रमुख दार्शनिक,विचारक और लेखक थे। विचारोत्तेजक सामाजिक टीकाकार के रूप में प्रतिष्ठित।



पेशे से चिकित्सक (एम.डी.मेडिसिन) डॉ.स्कन्द शुक्ल संवेदनशील कवि और उपन्यासकार भी हैं। इन दिनों वे शरीर तथा विज्ञान की तमाम जटिलताओं को सरल हिंदी में लोगों के सामने लाने का अभियान चला रहे हैं। मीडिया विजिल उनके इस प्रयास के साथ जुड़कर गौरवान्वित है।