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अखबारों पर शिकंजा कसने की एक और तरकीब केंद्र सरकार ने निकाल ली है। नरेंद्र मोदी सरकार ने तय किया है कि उन अखबारों को सरकारी विज्ञापन नहीं दिए जाएंगे जो ”फेक न्यूज़” या ”गलत रिपोर्टिंग” करते हैं।
दि एशियन एज की खबर के अनुसार नई प्रिंट मीडिया विज्ञापन नीति, 2016 के उपबंध 25 में एक संशोधन किया जा रहा है जिसके बाद दृश्य एवं प्रचार निदेशालय यानी अखबारों को विज्ञापन जारी करने वाला विभाग डीएवीपी उन प्रकाशनों का विज्ञापन बंद कर देगा जो ”अनैतिक” रिपोर्टिंग कर रहे हैं।
उन प्रकाशनों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का भी प्रावधान है जो -”गलत मंशा” से और ”फेक न्यूजं” छापते हैं। इस पूरी कवायद में कहीं भी यह परिभाषित नहीं है कि ”गलत मंशा” क्या है, ”फेक न्यूज़” क्या और ”अनैतिक” से क्या आशय है।
ज़ाहिर है, फिर इन श्रेणियों को तय करना डीएवीपी के अफसरों की व्याख्या पर निर्भर होगा। कहा गया है कि डीएवीपी ऐसे प्रकाशनों की पहचान करने में प्रेस परिषद और पीआइबी की भी मदद करेगा।
अगर प्रेस परिषद ने पाया कि कोई प्रकाशन ”राष्ट्रविरोधी” गतिविधियों में लिप्त है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है। पिछले तीन वर्षों के दौरान राष्ट्रविरोधी की परिभाषा इतनी सहज और व्यापक हो चली है कि कोई भी प्रकाशन आसानी से इसके दायरे में आ सकता है।