23 साल बाद आए साथ, गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में सपा को बीएसपी का समर्थन !

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उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के लिए बीएसपी ने समाजवादी पार्टी को समर्थन देने का ऐलान किया है। गोरखपुर से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और फूलपुर से उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सांसद थे जिनके इस्तीफ़े की वजह से उपचुनाव हो रहा है ।

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन को ‘निश्चित विजय’ का फ़ार्मूला माना जाता रहा है। राममंदिर आंदोलन के उबाल के बाद 1991 में बनी बीजेपी सरकार जब दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के बाद बरख़ास्त की गई तो बीजेपी को चारो तरफ नज़र आ रहे सांप्रादियक उन्माद पर बहुत भरोसा था। लेकिन 1993 में हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की एकता ने उसे धूल चटा दी थी। एक नारा तब बहुत लोकप्रिय हुआ था-‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्रीराम।’

सपा-बसपा की एकता से मिले उस धक्के के बाद बीजेपी जल्दी उबर नहीं पाई। इस एकता को तोड़ने के लिए उसने जीतोड़ कोशिश की और सफल भी हुई। 1995 में गठबंधन टूटा और मायावती बीजेपी के सहयोग से यूपी की मुख्यमंत्री बन गईं।

बहरहाल बाद में जिस तरह सपा और बसपा मुलायम और मायावती की निजी जागीर की तरह चलीं,उसमें समाज की 85 फ़ीसदी आबादी को एकजुट करने का ‘कांशीरामी फ़ार्मूला’ हवा हो गया। सपा का समाजवाद, सैफ़ई परिवार में बदल गया तो मायावती ने सत्ता के लिए हाथी को गणेश बना डाला। इसी वैचारिक शून्यता के बीच बीजेपी ने ग़ैर यादव और ग़ैर जाटव जातियों के हिंदूकरण का अभियान तेज़ किया जिसकी परिणति 2017 में पूर्ण बहुमत से बनी उसकी सरकार है।

बीजेपी जिस तरह आक्रामक अभियान चला रही है, उसे देखते हुए सपा और बसपा के लिए एकजुट होने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है। हालाँकि गेस्ट हाउस कांड जैसी फाँस निकलना आसान नहीं है, लेकिन लगता है कि मुलायम से लगभग मुक्त होती जा रही समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के साथ मायावती सहज हो सकती हैं। गोरखपुर और फूलपुर में बीएसपी की ओर से समर्थन का ऐलान करना यही बता रहा है कि बहनजी का रुख लचीला हुआ है।

बीजेपी को फिर भी कमज़ोर नहीं आँका जा सकता। गो़रखपुर और फूलपुर बीजेपी की प्रतिष्ठा से जुड़ी सीटें हैं जिसके लिए योगी आदित्यनाथ सारी ताक़त लगा देंगे। फूलपुर में बाहुबली अतीक अहमद को निर्दलीय खड़ा करके एक बड़ा दाँव चल ही दिया गया है।  बीजेपी के लिए थोड़ी मुश्किल यह ज़रूर है कि गोरखपुर में  उसके प्रत्याशी उपेंद्रदत्त शुक्ल ऐन चुनाव के बीच अस्पतला पहुँच गए।  बुधवार यानी 28 फरवरी को उन्हें लखनऊ स्थित पीजीआई में भर्ती कराया गया जहाँ मस्तिष्क में ख़ून के थक्के को देखते हुए उनकी सर्जरी हुई। वे 4 मार्च को ही गोरखपुर वापस लौटे। वैसे, बीजपी ने ही नहीं, गोरखपुर से प्रकाशित और योगी रंग में रँगे कई अख़बारों ने यह ख़बर छिपाए रखी, लेकिन प्रचार को धार तो कमज़ोर पड़ी ही। मतदान 11 मार्च को हैं। (तस्वीर उपेंद्रदत्त शुक्ल की)

बहरहाल, सपा और बसपा का गठबंधन बीजेपी को रोकने का दावा कर रहा है। सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखें तो यह मुश्किल भी नहीं लगता। लेकिन बीजेपी के राजनीतिक और वैचारिक अभियान ने पिछले कुछ सालों में सपा और बसपा के सामाजिक आधार को किस कदर अपने रंग में रँगा है, इसका अंदाज़ा शायद उन्हें नहीं है। वैसे यह भी एक दावा ही है जिसकी हक़ीक़त तो 14 मार्च को ही सामने आएगी जब मतगणना होगी।

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