देश के बड़े-बड़े समाचार समूह ख़बरों की प्रामाणिकता को लेकर किस कदर लापरवाह हैं, इसका उदाहरण है दैनिक भास्कर का 11 जून का संसकरण। इसमें चार कॉलम ख़बर छापी गई है सऊदी अरब के राजकुमार माजिद बिन अब्दुल्लाह के बारे में कि वे जुए में अपनी पाँच पत्नियाँ हार गए, साथ में 22 अरब रुपये भी। ख़बर में छौंका लगाने के लिए महाभारत की भी याद दिलाई गई है जिसमें द्रौपदी को दाँव पर लगाने की कहानी है।
दरअसल, यह एक फ़ेक न्यूज़ है जो कई सोशल साइट्स पर हिट बटोर रही थी। हक़ीक़त यह है कि प्रिंस माजिद की 2003 में ही मौत हो चुकी है और यह जानकारी विकीपीडिया पर भी मौजूद हैं, जो आजकल पत्रकारों के ज्ञान का महास्रोत बना हुआ है।
हद तो यह है कि बेंगलौर मिरर ने 10 जून को ही इस फर्ज़ीवाड़े की ख़बर प्रकाशित कर दी थी। इसके बावजूद देश का सबसे बड़ा अख़बार होने का दावा करने वाला दैनिक भास्कर देश की राजधानी में इस ख़बर को ताल ठोंककर छापता है। इससे समझा जा सकता है कि या तो भास्कर के संपादकीय विभाग में लोग भाँग खाकर काम करते हैं, या फिर लोगों की दिलचस्पी सिर्फ हिट्स बटोरने में है। उन्हें बस ऐसी हेडिंग चाहिए जो लोगों को चौंकाए, उनकी दिलचस्पी जगाए । ख़बर का सही या ग़लत होना मायने नहीं रखता।
पुनश्च : इस ख़बर के प्रकाशन के बाद मीडिया विजिल को तमाम पाठकों ने बताया कि यह ग़लती सिर्फ भास्कर ने नहीं की, बल्कि एनडीटीवी जैसे सुंदर और सुशील चैनल ने भी की थी। हाँलाकि तस्दीक करने पर चैनल पर यह ख़बर नहीं दिखी। पता चला कि एनडीटीवी की वेबसाइट पर यह ख़बर लगाई गई थी जिसे बाद में हटा लिया गया। इस संबंध में स्क्रीन शॉट भी मीडिया विजिल को भेजे गए—
ज़ाहिर है, एनडीटीवी की साख को देखते हुए यह गंभीर चूक है। बहरहाल, अख़बार की चूुक ज़्यादा बड़ी इसलिए है क्योंकि वह 24 घंटे में एक बार प्रकाशित होता है और छपने के पहले हर पन्ना उपसंपादकों, समाचार संपादकों और संपादक की निगाह से गुज़रता है। पहले या अन्य ख़ास-ख़ास पन्नों के लिए तो विशेष टीम भी होती है। भास्कर के संपादकों को सोचना चाहिए कि दिक़्क़त कहाँ है और हाँ, एनडीटीवी के संपादकों को भी !