असम में हाथियों के ज़ोर से इंसानी बस्तियों को उजाड़ने का काम किया गया है। राष्ट्रीय मीडिया में इसकी भनक तक नहीं है। उत्तर-पूर्व के अखबारों को छोड़ दें तो दिल्ली में टाइम्स ऑफ इंडिया और विदेश में दि गार्डियन ने इस ख़बर को छापा है, लेकिन टाइम्स की ख़बर में हाथियों के इस्तेमाल की बात नदारद है।
देश में पहली बार अतिक्रमण हटाओं के नाम पर हाथियों के इस्तेमाल का नज़ारा असम के आमचांग वन्यजीव अभयारण्य में दिखा जब सोमवार की सुबह 400 से ज्यादा अस्थायी रिहाइशों को तबाह कर दिया गया और असम पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग कर के कई महिलाओं को घायल कर डाला। ये तमाम लोग बाढ़ग्रस्त इलाकों से भागर अपनी जान बचाने गोहाटी में आकर कुछ दिनों से बसे हुए थे।
असम के किसान मुक्ति संग्राम समिति के संयोजक वेदांता के मुताबिक सोमवार की सुबह 9 बजे के आसपास पंजाबाड़ी के कंगकन नगर में असम पुलिस ने बर्बरता का परिचय दिया। मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार करते हुए उसने “अतिक्रमण हटाओ मुहीम” के दौरान नृशंसतापूर्वक गोलीबारी की। इस फायरिंग में समिति की तीन महिला सदस्य मालती दास, अमीना खातून और रशीदा अहमद गंभीर रूप से घायल हुई हैं। इन घायल महिलाओं का गोहाटी मेडिकल कॉलेज के आइसीयू में इलाज चल रहा है।
असम के गांवों में रहने वाले लोग नदियों में बाढ़ आने और कटाव के कारण अपने गांव से विस्थापित होकर गोहाटी में आकर बसने को मजबूर हुए हैं। असम सरकार बिना पुनर्वास की व्यवस्था किये इन बाशिन्दों को अतिक्रमणकारी बताकर गोहाटी के कंगकन नगर से भागने को मजबूर कर रही है। इसी कार्यवाही के दौरान असम पुलिस ने नगरवासियों पर अंधाधुंध गोलाबारी की। इस गोलीबारी में कई लोगों को गम्भीर चोटें आईं जिनमें ये घायल महिलाएं भी शामिल हैं।
अतिक्रमण हटाने का आदेश गोहाटी उच्च न्यायालय का था जिसके बाद यह कार्रवाई की गई। पुलिस की बंदूक, हाथी और बुलडोज़र के सहारे चलाए गए इस अभियान का जवाब लोगों ने पत्थरबाज़ी से दिया। पूरे राज्य में इस कार्रवाई को लेकर लोगों में आक्रोश है। कोर्ट ने आदेश दिया था कि अभयारण्य की ज़मीन से 30 नवंबर तक अतिक्रमण हटा लिया जाए। पुलिस ने ऐसी 1000 रियहाइशों को हटाने की योजना बनाई है।
गार्डियन के मुताबिक पिछले साल काजीरंगा नेशनल पार्क में भी हाथियों की मदद से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की गई थी जिसमें दो लोग मारे गए थे।
स्वराज इंडिया की प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित