ज़ी न्यूज़ पर झूठ बोलने की अगुवाई वैसे तो आधिकारिक रूप से सुधीर चौधरी करते हैं जो रिश्वतखोरी में जेल भी जा चुके हैं लेकिन आजकल उनके गोएबल्स सिपहसालार रोहित सरदाना बने हुए हैं। सरदाना ने 18 फरवरी को ‘ताल ठोक के’ कार्यक्रम का विषय रखा था ‘देशद्रोह क्या है’। इसमें सरदाना ने एक मौलिक झूठ बोला कि आज़ाद भारत में किसी को देशद्रोह के तहत सज़ा नहीं हुई है और इतना ही नहीं, उन्होंने जब सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट मोनिका अरोड़ा से इस बारे में सवाल पूछा तो उन्होंने भी इसकी पुष्टि की।
अगर रोहित सरदाना एक बार कॉमन सेंस का इस्तेमाल कर लेते, तो इतना बड़ा ब्लंडर नहीं करते लेकिन ऐसा लगता है कि यह जान-बूझ कर बोला गया झूठ था। जिस मकबूल भट्ट, अफ़ज़ल गुरु और याकूब मेमन के इर्द-गिर्द सारी बहस चल रही है, इन तीनों को देशद्रोह में ही फांसी हुई है। इसके अलावा हाल के मामलों में जीएन साइबाबा से लेकर हेम मिश्र, अरुण फ़रेरा, सीमा आज़ाद, सुधीर धवले और बिनायक सेन आदि तमाम लोगों को देशद्रोह में जेल भुगतनी पड़ी है और इनके नाम पुराने नहीं पड़े हैं कि कोई भूल जाए। रोहित सरदाना ने जान-बूझ कर इनमें से किसी नाम का जि़क्र नहीं किया और झूठा प्रचार किया कि आज़ाद भारत में देशद्रोह का सिर्फ चार्ज लगाया गया है, सज़ा नहीं हुई है।
एक झूठ बातचीत को कहां तक ले जा सकता है, इसे वीडियो में पैनलिस्ट अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा के कहे से समझा जा सकता है जो जेएनयू प्रकरण में सरकार की इच्छाशक्ति की सराहना करते हुए हिटलर को याद करती हैं। अरोड़ा कहती हैं कि हिटलर के दिमाग में केवल आइडिया आया था यहूदियों के नाश का और उसने कर दिखाया। वे जेएनयू के छात्रों की तुलना इस तरह हिटलर से कर देती हैं।
इससे खतरनाक प्रोपगेंडा क्या होगा कि हिंदुत्ववाद की जो विचारधारा हिटलर को अपना प्रेरणास्रोत मानती हो, वह अपने विरोधियों की तुलना ही हिटलर से आज कर रही है। मज़ेदार ये है कि रोहित सरदाना के शब्दों में पैनल पर उन्होंने नेताओं को नहीं बुलाया है बल्कि देश के ऐसे चेहरो को बुलाया है जो ”विश्व पटल पर देश की नुमाइंदगी” करते हैं। इनमें एक फौज का अफ़सर है, दूसरा रॉ का पूर्व अधिकारी, तीसरी अधिवक्ता अरोड़ा जो भारती एयरटेल कंपनी के सीएसआर प्रोग्राम न्याय भारती को चलाती हैं, चौथे हैं पहलवान योगेश्वर दत्त और पांचवीं हैं जेएनयू की प्रोफेसर अमिता सिंह। अगर ये चेहरे ”विश्व पटल” पर भारत की नुमाइंदगी करते हैं, तो इससे हास्यास्पद और कुछ नहीं है।
सवाल उठता है कि रोहित सरदाना और उनके पैनलिस्ट के झूठ को कोई कैसे काउंटर करेगा जब उनके पैनल में पहलवान और फौजी यह तय करने बैठे हैं कि ”देशद्रोह क्या है”।