दलित विचारक डॉ आनंद तेलतुंबड़े अपनी किताब ‘दी रिपब्लिक ऑफ कास्ट’ में लिखते हैं कि “पीड़ितों का रोष दुनिया को डराता है”। उनका लिखा कितना सच है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक तरफ़ जब हम भीमराव आंबेडकर की 129वीं सालगिरह मना रहे हैं, ठीक उसी दिन आंबेडकर की ही परंपरा को विस्तार देकर आगे ले जाने वाले विख्यात बुद्धिजीवी डॉ आंनद तेलतुंबड़े को भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में मुंबई सेशन कोर्ट में एनआईए के समक्ष गिरफ्तारी देनी पड़ी।
A day after writing a letter that he can't fight state propaganda alone, writer Anand Teltumbde left Rajgruha, to surrender b4 NIA at Cumballa Hill. He askd for mask, maintained calm posture. He was accompanied by wife, Prakash Ambedkar, Kapil Patil. @writemeenal @MumbaiMirror pic.twitter.com/VwpDE9rSlt
— Shruti Ganapatye (@shrutiganapatye) April 14, 2020
इससे पहले, बीते हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान अग्रिम जमानत याचिका खारिज़ कर दी थी तथा आनंद तेलतुंबड़े और गौतम नवलखा को 14 अप्रैल तक का वक़्त दिया था कि वे आत्मसमर्पण दें।
Let’s stand with Anand Teltumbde and Gautam Navlakha. Arresting them on 14th April is a shame. Do not target the Greatest minds. It’ll be written in history as a Shame on the Nation. Let’s not do this.#DoNotArrestAnand #DoNotArrestGautam
— Radhika Vemula (@vemula_radhika) April 13, 2020
बाबा साहेब आंबेडकर की पड़पोती के जीवनसाथी आनंद तेलतुंबड़े उन बुध्दिजीवियों में शामिल हैं जिन्हें 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित हुए यलगार परिषद के कार्यक्रम के बाद फैली हिंसा के लिए दोषी बनाने की कोशिश की जाती रही है, और उनके माओवादियों से संबंध होने का आरोप भी पुलिस लगाती है।
डॉ आनंद तेलतुंबड़े को निशाना बनाया जाना, सत्ता में बैठे लोगों के मानस के भीतर गहरी जमी जातिवादी पैठ को सामने लाता है, और यह बताता है कि दलितों, आदिवासियों या अल्पसंख्यकों के लिए आवाज़ उठाने वालों को सरकारें भी बर्दाश्त नहीं करती। अगर यह आवाज़ खुद दलित, आदिवासी या अल्पसंख्यक समुदाय से निकलकर आ रही हो, तो उनके प्रति सरकार, पुलिस सहित देश के समूचे तंत्र के तेज़ नाखून दिखायी देने लग पड़ते हैं।
अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए देश की गलियां जब लगातार संकरी होती जा रही हैं, डॉ आनंद तेलतुंबड़े की गिरफ्तारी के ख़िलाफ़ एक बड़ी आबादी ने मुहिम छेड़ दी है। सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एवं ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के प्रवक्ता एसआर दारापुरी ने डॉ तेलतुंबड़े की गिरफ़्तारी के विरोध में मार्मिक बयान जारी किया है और मांग की है कि कोरोना महामारी के बीच महाराष्ट्र सरकार द्वारा डॉ तेलतुंबड़े को निजी मुचलके पर रिहा करे।
एसआर दारापुरी कहते हैं: “डॉ आंबेडकर के परिवार से जुड़े प्रख्यात बुध्दिजीवी डॉ आनंद तेलतुंबड़े की बाबा साहब के जन्मदिवस के अवसर पर गिरफ्तारी दुखद व शर्मनाक है। इस गिरफ्तारी के ख़िलाफ़ लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले हर व्यक्ति, संगठन व दल को खड़ा होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कल आत्मसमर्पण कर गिरफ्तारी देने वाले डा. तेलतुंबड़े को कोविड-19 के विश्वव्यापी संकट में महाराष्ट्र सरकार को निजी मुचालके पर रिहा कर देना चाहिए। आरएसएस-भाजपा अपने राजनीतिक-वैचारिक विरोधियों से बदले की भावना से निपटती है। वे अपनी शासन-सत्ता से दमन ढाते हैं, फर्जी मुकदमे कायम करवाते हैं और उनकी विचारधारा को मानने वाले अनुशांगिक संगठन तो हत्या तक करवाते हैं. यह लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है। महाराष्ट्र में भी तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा भीमा कोरेगांव मामले में डा. आनंद तेलतुंबड़े समेत प्रख्यात पत्रकार गौतम नवलखा, अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज व अन्य निर्दोष लोगों को राजनीतिक बदले की भावना से फर्जी मुकदमे में फंसाया और जब सरकार नहीं रही तो मामले को एनआईए को दे दिया गया।”
Yes, let us all of us come together and make our voices heard for the one who has been the voice of billions of voiceless.#DoNotArrestAnand https://t.co/DaNoKWqEwa
— Jignesh Mevani (@jigneshmevani80) April 14, 2020
इतिहासकार रोमिला थापर, प्रोफेसर प्रभात पटनायक, देवकी जैन, माजा दारूवाला और सतीश देशपांडे जैसे बुद्धिजीवियों ने बीते 10 अप्रैल को भारत के मुख्य न्यायाधीश को पहले ही पत्र लिखा था और अपील की थी कि “मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट को यह साबित करने के लिए दृढ़तापूर्वक काम करना चाहिए कि वह वास्तव में लोगों के अधिकारों और संविधान का रक्षक है।”
Arresting someone from the family of Dr. B.R. Ambedkar on Ambedkar Jayanti tells you a lot about where we are headed as a society.
Arresting Anand Teltumbde will be a national shame! #DoNotArrestAnand pic.twitter.com/Qv7vHOl6Iu
— Umar Khalid (@UmarKhalidJNU) April 13, 2020
बीते दिनों ट्विटर पर आनंद तेलतुम्बडे के समर्थन में हैशटैग ट्रेंड होते रहे, वहीं सीपीआई के वरिष्ठ नेता डी राजा, दलित एक्टिविस्ट और विधायक जिग्नेश मेवानी, डॉ उदित राज और प्रकाश आंबेडकर जैसे करीब 10 दलित-बहुजन नेताओं ने पत्र जारी कर डॉ आनंद तेलतुंबड़े की गिरफ़्तारी का विरोध किया और कहा कि “जब यह देश अपने सबसे महान मस्तिष्कों और दिलों में से एक डॉ आंबेडकर की 129वीं जयंती मना रहा होगा तो उसी दिन ताक़तवर राष्ट्रवादी मशीनरी उस जज़्बे को तोड़ देना चाहती है, जो हमारे बीच लोकतंत्र की मशाल को ज़िंदा रखती है”।
डॉ आनंद तेलतुंबड़े के अलावा कोर्ट के निर्देश पर पत्रकार-एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को भी आत्मसमर्पण देना पड़ा है। भीमा कोरेगांव के मामले में पहले ही वकील सुरेंद्र गाडलिंग, प्रोफेसर शोमा सेन, कवि सुधीर धवले, मानवाधिकार कार्यकर्ता महेश राउत और रोना विल्सन पहले ही जेल में हैं। भारत सरकार और पुलिस की मुस्तैदी के क्या कहने कि जब दुनिया की कम ‘लोकतंत्र’ वाली सरकारें भी कोविड-19 को लेकर अपने बंदियों को रिहा कर रही हैं, उस वक़्त भारत में डॉ तेलतुंबड़े जैसे विचारकों को बंदी बनाया जा रहा है। और यह बाबा साहेब आंबेडकर के जन्मदिन के दिन ही होना था, विडंबना और किसे कहते हैं!
गिरफ़्तारी की पूर्वसंध्या पर आनंद ने अपने पत्र में लिखा था:
“लोगों के बीच ध्रुवीकरण करने और असहमतियों को खत्म करने के लिए राजनीतिक वर्ग द्वारा उन्मादी व उत्तेजक राष्ट्रवाद को हथियार बनाया गया है। व्यापक उन्माद ने अर्थों को विवेक से परे कर उल्टा कर दिया है, जहां राष्ट्र के विध्वंसक देशभक्त बन गये हैं और लोगों की निःस्वार्थ सेवा में लगे रहने वाले लोग देशद्रोही कहला रहे हैं…मैं अपने भारत बर्बाद होते देख रहा हूं, और धुंधले उम्मीद के साथ इस भारी क्षण आपको यह चिट्ठी लिखता हूं, हालांकि मुझे पूरी उम्मीद है कि आप अपनी बारी आने से पहले ज़रूर बोलेंगे।”