कोरोना वायरस ने अपनी प्रकृति में चाहे कोई भेदभाव न दिखाया हो, गुजरात के अहमदाबाद के सिविल हॉस्पिटल में कोरोना संक्रमित मरीज़ों और संदिग्धों के लिए धर्म के आधार पर अलग-अलग वार्ड बनाने का मामला आया है। इन वार्डों में हिंदू मरीज़ों को अलग और मुस्लिम मरीज़ों को अलग वार्ड में रखा गया है।
अस्पताल प्रशासन का कहना है कि उन्होंने वहां पर धार्मिक आधार पर वार्डों का बंटवारा सरकार के कहने पर किया है। बीते मंगलवार को स्थानीय नव गुजरात समय ने इसकी जानकारी दी थी कि अस्पताल में हिंदू-मुस्लिम पैमाने पर मरीज़ों को वार्ड में रखा जायेगा। इस संबंध में राज्य सरकार से जब पूछा गया तो उन्होंने मामले की जानकारी न होने की बात कही।
रिपोर्ट के अनुसार चिकित्सा अधीक्षक डॉ गुणवंत एच राठौर का कहना है कि राज्य सरकार के आदेश के आधार पर ही अस्पताल में हिंदू मरीज़ों के लिए वार्ड और मुस्लिम मरीज़ों के लिए अलग वार्ड की व्यवस्था की गयी है। इस फैसले के पीछे के कारण राज्य सरकार से पूछे जा सकते हैं। राठौर के अनुसार, अमूमन अस्पताल में पुरुषों और महिलाओं के वार्ड अलग बनाये जाते हैं।
अभी तक अस्पताल में 186 कोरोना संदिग्ध भर्ती किये गये हैं, जिनमें से 150 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो गयी है। इन 150 लोगों संक्रमितों में 110 हिंदू और 40 मुसलमान हैं।
राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री नितिन पटेल का कहना है कि ‘इस तरह के किसी भी फैसले की जानकारी मेरे पास नहीं है। मैं इसकी जांच करूंगा। दूसरी तरफ़, अहमदाबाद के कलेक्टर केके निराला ने भी ऐसे किसी आदेश या मामले की ख़बर होने से मना कर दिया।
मामले पर हॉस्पिटल स्टॉफ का कहना है कि ऐसा दोनों समुदायों के बीच सौहार्द बनाये रखने के लिए किया गया है।
इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया भी देखने को मिली है। माइनोरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी के संयोजक मुजाहिद नफ़ीस ने इसे मानवता की हत्या के समान बताते हुए माननीय उच्च न्यायालय इसका स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने लिखा है कि 14 अप्रैल के नव गुजरात समय और 15 तारीख के इंडियन एक्सप्रेस में ख़बर छपी है कि मरीज़ों को धर्म के आधार पर अलग वार्ड में रक्खा जाएगा।
मुजाहिद नफ़ीस ने गुजरात उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश को भेजे में लिखा है कि ‘धर्म और मान्यता के आधार पर पृथक्करण देश के संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 51 A (C, E, F, H) का स्पष्ट उल्लंघन है। आप इस देश के संविधान और मिली जुली संस्कृति को बचाने की आखरी उम्मीद हैं। मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि इस मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए, न्याय के व्यापक हित में आदेश करें।’
जिस महामारी ने अमीर नहीं देखा, गरीब नहीं, जात या धर्म नहीं देखा; और पूरी मानव सभ्यता पर टूट पड़ी है। उस महामारी को भी देश की सांप्रदायिक राजनीति ने अपने लिए इस्तेमाल कर ही लिया, और कोरोना बीमारी को भी हिंदू-मुसलमान की बहस में बदल दिया है। इसके लिए केवल एक शब्द है, शर्मनाक!