‘आज तक’ का हाथ, प्रियंका गाँधी के साथ क्योंकि सवाल धंधे का है!


आजतक शुद्ध कारोबारी दिमाग से संचालित होता है लेकिन इसका एक मतलब ये भी है कि उसके सुर बदलते ही न्यूज चैनलों का अंदाज बदलने लग जाता है.


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विनीत कुमार 

पसंद-नापसंद, सहमति-असहमति से कहीं ज्यादा मीडिया पल्स को समझने के लिए मैं आज तक और द टाइम्स ऑफ इंडिया को हर हाल में फॉलो करता हूं. ये दो ऐसे मीडिया ब्रांड हैं जिसकी देखा-देखी बाकी प्लेटफॉर्म सुर बदलने शुरू कर देते हैं. आप कह सकते हैं कि ये पैटर्न सेटर, टेस्ट चेंजर ब्रांड हैं.

आज दोपहर से ही मैं आज तक पर नजरें टिकाये रहा. शाम को जब बाकी के चैनल मनोहर पर्रिकर की अंतिम यात्रा पर जमे हुए थे, आजतक ठीक उसी वक्त प्रियंका की गंगा यात्रा पर टिका नजर आया. प्राइम टाइम में भी उसने दिमाग लगाया. एक ही पैकेज, एक ही तरह की स्टोरी, थोड़े-बहुत हेर-फेर के साथ चलाता रहा जो कि अब भी जारी है.

प्रियंका गांधी की तारीफ में आज जिस तरह के स्लग का इस्तेमाल चैनल ने किया है, कांग्रेस पार्टी उन्हें स्क्रीन से बटोरकर अपने पास जमा कर ले तो कई चुनावी नारे के काम आ जाएंगे. चैनल महागठबंधन की आलोचना जरूर करता रहा लेकिन प्रियंका और कांग्रेस की संभावना पर लगातार सकारात्मक बना रहा.

यह बहुत संभव है कि आगे चलकर वो कांग्रेस और प्रियंका की छोटी-छोटी बात को लेकर आलोचना करे लेकिन जिस ‘अंधाधुन’ तरीके से उसने प्रयागराज यात्रा की कवरेज की, उससे ये साफ है कि आनेवाले समय में प्रियंका अनिवार्यतः न्यूज कंटेंट बनकर मौजूद रहेंगी. यानी अभी तक जो मामला एकतरफा और एक ही मिजाज का हो चला था, उसे चैनल बदलने का काम करने जा रहा है.

याद कीजिए जेएनयू प्रकरण और उसके बाद कन्हैया कुमार का भाषण. आज तक ने बिना ब्रेक लिए लगातार उसे प्रसारित किया था और जी न्यूज, इंडिया टीवी( हालांकि बाद में वो भी पसीज गया ) को छोड़कर बाकी चैनलों ने भी ऐसा ही किया.

हम सब जानते हैं कि न्यूज के धंधे में आजतक की जो रणनीति है वो शुद्ध कारोबारी दिमाग से संचालित होती है लेकिन इसका एक मतलब ये भी है कि उसके सुर बदलते ही न्यूज चैनलों का अंदाज बदलने लग जाता है.

अभी तक होता ये रहा है कि चैनल पर विचारधारा हावी रही है और ये इस कदर की कई बार भ्रम भी होता रहा कि ये धंधे के लिए काम कर रहा है या फिर पार्टी प्रवक्ता के अतिरिक्त प्रभार के लिए. लेकिन आजतक की सबसे खास बात है कि वो समय-समय पर सत्ताधारियों को हल्के से ये समझा देता है कि हम संभावना के बाजार में खड़े हैं. इसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता. दूसरा कि आज तक जैसे चैनल के लिए न्यूज पैटर्न चेंज करना एक शगल है. मैं पिछले चौदह सालों से गौर कर रहा हूं.
लालू की होली से लेकर छठ तक की कवरेज, बिना ड्राइवर की कार.. ये सब इसी चैनल की उपज है. प्रियंका की कवरेज में तो वैसे भी दर्जनों एंगल है. जूस पिलाने की घटना से लेकर नीचे झुकर रस्सी पार करने के विजुअल्स का इस्तेमाल करके इसने नमूना पेश कर ही दिया. बाकी द टाइम्स ऑफ इंडिया पर नजर बनाए रखिए.


लेखक चर्चित मीडिया शिक्षक और विश्लेषक हैं।