जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है



प्रकाश के रे 

ईसाइयत को समूचे रोमन साम्राज्य का राजधर्म बनाने की थियोडोसियस की राजाज्ञा (391-2) ने इस धर्म के लिए जेरूसलम के महत्व को बहुत अधिक बढ़ा दिया. न सिर्फ चर्चों और अन्य धार्मिक इमारतों के निर्माण का काम तेज हुआ, बल्कि शहर में तीर्थयात्रियों की तादाद भी बहुत बढ़ गयी. शहर में ईसा मसीह और प्रमुख ईसाई संतों के जीवन के जुड़ी जगहों के महात्म्य को चिन्हित करने के साथ ही पैलेस्टीना और आसपास के इलाकों में बाइबल में उल्लिखित जगहों की पहचान का सिलसिला भी शुरू हुआ. कुछ सदियों के बाद शहर की अप्रतिम पवित्रता नये आवरण में नयी आध्यात्मिकता के साथ एक बार फिर स्थापित हो रही थी.

कहानी में आगे बढ़ने से पहले हम कुछ लम्हे के लिए आज के जेरूसलम में लौटते हैं. बीते रविवार को जेरूसलम के ईसाइयों ने एक अभूतपूर्व फैसला किया. चर्च की संपत्तियों के संबंध में इजरायल सरकार द्वारा प्रस्तावित विधेयक तथा जेरूसलम नगरपालिका द्वारा करारोपण के इरादे के विरोध में ईसाई धर्म के पवित्रतम पूजास्थल होली सेपुखर चर्च के दरवाजे को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया. शायद यह पहला मौका था, जब यह चर्च, जहां ईसा को सलीब पर लटकाया गया था और जहां उन्हें दफन किया गया था, अपने वजूद के करीब सत्रह सदियों में किन्हीं राजनीतिक कारणों से बंद हुआ था. बहरहाल, इजरायली प्रधानमंत्री ने विवादित विधेयक को रोक दिया है, कर लगाने के मामले को भी स्थगित कर दिया गया है और चर्च की शिकायतों को सुनने के लिए एक विशेष कमिटी बना दी गयी है. सरकार के इस निर्णय के बाद बुधवार (28 फरवरी) को चर्च के दरवाजे फिर खुल गये हैं.

 

चूंकि होली सेपुखर के दरवाजे का जिक्र आया है, तो उससे जुड़े एक खास इंतजाम को जानना दिलचस्प होगा. साल 637 में जेरूसलम में खलीफा उमर के नेतृत्व में इस्लाम के आने के साथ ही मदीना का रसूखदार नूसैबा परिवार भी आया था. यह परिवार शहर का सबसे पुराना मुस्लिम वंश माना जाता है. उमर के आदेश से टेंपल माउंट पर पवित्र पत्थर के ऊपर सुनहरा गुंबद बनाया गया था. कहते हैं कि उन्होंने काबा नाम के व्यक्ति से पूछा कि उन्हें अपना धार्मिक स्थल कहां बनाना चाहिए, तो उसने जवाब दिया कि टेंपल माउंट पर. काबा बुनियादी रूप से यहूदी थे और उन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया था. वे उमर के साथ मदीना से जेरूसलम आये थे.

खलीफा के जेरूसलम प्रवास से जुड़ी एक और खास कहानी है. कहा जाता है कि नमाज के वक्त शहर के तत्कालीन आर्कबिशप सोफ्रोनियस ने खलीफा उमर को होली सेपुखर चर्च में आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने यह कह कर इस आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया कि बाद में मुस्लिम समुदाय के लोग उनके नमाज पढ़ने के नाम पर चर्च पर अपना दावा कर सकते हैं. इस चर्च से कुछ दूर उनकी मस्जिद बनी हुई है, जहां उन्होंने प्रार्थना की थी. उन्होंने यह आदेश दिया था कि जेरूसलम के ईसाइयों, उनके धार्मिक स्थलों और उनकी संपत्ति को किसी भी हालत में नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा. इसी के तहत खलीफा उमर ने नूसैबा परिवार को होली सेपुखर की चाबी का जिम्मा दिया था. इसका एक आशय यह भी था कि ईसाइयों के बीच चर्च को लेकर आपसी झगड़ा न हो.

 

कुछ सदी बाद 1187 में जब महान सलाउदीन यूरोपीय क्रुसेडरों से जेरूसलम को जीता था, तब उन्होंने नूसैबा परिवार के अलावा जौदेह परिवार को भी चर्च की चाबी का प्रभारी बना दिया. यह परिवार मूल रूप से जेरूसलम का वासी था. आज भी इन्हीं परिवारों के पास यह चाबी है और ये ही लोग रस्मन दरवाजे खोलने और बंद करने का काम करते हैं. होली सेपुखर की चाबी 30 सेंटीमीटर लंबी है और इसका वजन 250 ग्राम है. हालांकि कुछ विद्वानों की राय है कि चाबी का जिम्मा देना मुस्लिम वर्चस्व का एक प्रतीक था और तीर्थयात्रियों से दरवाजे पर होने वाली कमाई भी एक कारक था, लेकिन इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता है कि ईसाइयत के विभिन्न समूहों के बीच इस कारण आपसी लड़ाई भी नहीं होती है. यह सांकेतिक व्यवस्था शहर के ईसाइयों और मुस्लिमों के बीच गाढ़े रिश्ते को भी इंगित करती है.

उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जेरूसलम को इजरायल की राजधानी मानने के फैसले का विरोध शहर के ईसाइयों ने भी किया है. जेरूसलम की दास्तान के अपने सिलसिले से हम कुछ भटक ही रहे हैं, तो कुछ और भटक लेते हैं. अभी हाल में पूर्वोत्तर भारत के तीन राज्यों के चुनाव संपन्न हुए हैं. इन राज्यों में ईसाई-बहुल नगालैंड और मेघालय भी शामिल हैं. नगालैंड में भारतीय जनता पार्टी ने मतदाताओं से वादा किया है कि सत्ता में आने पर वह राज्य के बुज़ुर्ग ईसाइयों को मुफ्त में जेरूसलम की तीर्थ यात्रा करायेगी. यह वादा सिर्फ चुनावी वादा ही नहीं है, बल्कि जेरूसलम के धार्मिक और राजनीतिक स्तर पर वैश्विक महत्व को भी इंगित करता है. ‘द हिंदू’ ने ‘जेरूसलम कॉलिंग’ के शीर्षक से इस खबर को लगाया था. होली सेपुखर चर्च को बंद रखने के मामले पर हैरी हेजोपियन ने ‘अल जजीरा’ में तीन मार्च को लिखे लेख का शीर्षक बनाया था- ‘गॉड एंड सीजर क्लैशिंग इन जेरूसलम’ यानी जेरूसलम में ईश्वर और शासक के बीच संघर्ष.

इजरायली सरकार ने जो विधेयक प्रस्तावित किया है, उसमें सरकार को पश्चिमी जेरूसलम में लीज पर दी गयी चर्च की संपत्तियों को जब्त करने के अधिकार दिये गये हैं. इस तरह से चर्च करारोपण और संपत्ति से हाथ धोने के दोहरे संकट से दो-चार है.

यह स्थिति यह रेखांकित करने के लिए काफी है कि जेरूसलम का अतीत ही उसका वर्तमान है. भविष्य की तस्वीर भी शायद इससे अलग नहीं हो सकती है. रोमन साम्राज्य, चाहे वह बहुलवादी रहा हो या ईसाई, जेरूसलम में जमीनें और धार्मिक स्थलों को कब्जे में लेने और उनका रूप बदलने के काम को लगातार अंजाम देता रहा था. तब भी शासकों और धार्मिक नेताओं को उन समुदायों से राय-मश्विरे की जरूरत महसूस नहीं होती थी, और अब इजरायल के शासकों ने भी ईसाइयों से ऐसे नियम लाने से पहले बातचीत करने की फिक्र नहीं की. मजे की बात यह भी है कि करों को नियम लाने से बहुत पहले से जोड़ कर वसूलने का विधान प्रस्तावित है. इसे भी एक रूपक के तौर पर लिया जा सकता है. जेरूसलम में सब ‘तब के’ हिसाब से तय होता है, ‘अब से’ नहीं.

यह पैंतरा यहूदी इजरायल के बढ़ते आत्मविश्वास का परिचायक भी है. जैसा कि हेजोपियन ने लिखा है, इजरायली यह स्वीकार कर पाने में बहुत दिक्कत महसूस करते हैं कि जेरूसलम के ईसाई मुस्लिम समुदाय की तरह ही उसके कब्जे के विरोधी हैं. यह भी एक उल्लेखनीय तत्व है कि अमेरिकी इवांजेलिकल ईसाई इजरायल के समर्थक हैं और अरबी ईसाइयों से उनकी पटरी नहीं बैठती. कुछ समय पहले जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस जेरूसलम आये थे, तो फिलीस्तीनी नेताओं के साथ जेरूसलम के ईसाई धार्मिक प्रमुखों ने भी उनसे मिलने से मना कर दिया था.

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जेरूसलम की पवित्रता और धार्मिकता की महागाथा बिना राजनीतिक पचड़ों के पूरी हो ही नहीं सकती है. शहर के अहम ईसाई धार्मिक समुदाय ग्रीक ऑर्थोडॉक्स के प्रमुख थियोफिलॉस तृतीय ने जॉर्डन के बादशाह अब्दुलाह को मौजूदा चर्च संकट में समर्थन के लिए सारे ईसाई संगठनों और धार्मिक नेताओं की ओर से शुक्रिया अदा किया है. भले ही जेरूसलम इजरायल के कब्जे में है और वह इसे अपनी राजधानी मानता है, परंतु जेरूसलम के मुस्लिम और ईसाई आज भी जॉर्डन के बादशाह को शहर के मुस्लिम और ईसाई धार्मिक स्थलों का प्रमुख संरक्षक मानते हैं.

चौथी-पांचवीं सदी के जेरूसलम में हम अगले अंक में लौटेंगे. तब वही सब घटित हो रहा था, जो आज के जेरूसलम में घटित हो रहा है. जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है, बल्कि शहर के जीवन का खास सलीका है. उस सलीके का इस्म है- ‘द जेरूसलम सिण्ड्रोम.

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 

आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह  

नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई


(जारी) 

Cover Photo : Rabiul Islam