बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई



प्रकाश के रे 

कोई भी ख़बर अच्छी नहीं थी
जब मैं आज सुबह जगा
मौत की मशीनों की घड़घड़ाहट थी
हर तरफ़ उस ज़मीन पर जहाँ जीसस कभी खड़े हुए थे
मुझे टीवी ने बताया कि यहाँ हमेशा ऐसा ही होता रहा है
इस बाबत कुछ कह या कर पाना मुमकिन ही नहीं किसी के लिए

मैं उसे कुछ-कुछ सुन सका
मेरे हवास तक़रीबन गुम हो गये थे
मैं फ़िर सँभला, और
अपने दिल के भीतर इस भरोसे के लिए झाँका
कि मैं मानता हूँ किसी भले दिन अब्राहम के सभी बच्चे
अपनी तलवारें नीचे रख देंगे हमेशा के लिए जेरूसलम में

- स्टीव अर्ल

 

चौथी सदी के मध्य में पैलेस्टीना दिनों-दिन यहूदियों के लिए नरक में तब्दील होता जा रहा था. ईसाइयत का दायरा लगातार बढ़ रहा था. रोमन राज्याश्रय में इस नये धर्म ने यहूदी शास्त्रों को अपना बना लिया था, खुद को अब इजरायल कहने लगा था और बड़ी-बड़ी इमारतों के जरिये जेरूसलम पर अपना दावा मजबूत कर लिया था. मंदिर बनने की बात तो दूर, यहूदी समुदाय के वजूद पर ही ग्रहण लग गया था. यहूदी ईसाइयों से गिड़गिड़ाते हुए कहते फिर रहे थे- ‘जो हमारा है, उसे हथिया कर अपना क्यों बना रहे हो?’

साल 361 में रोमन सम्राट कॉन्स्टेंटियस द्वितीय की मौत हो गयी और उसकी जगह उसका भतीजा जूलियन राजगद्दी पर आसीन हुआ. नये राजा का पालन-पोषण परिवार की परंपरा के अनुसार ईसाई के रूप में ही हुआ था, पर अपने एक शिक्षक इयामबिलिकस के असर में वह ईसाइयत को नापसंद करने लगा था. उसकी नजर में ईसाई धर्म रोम की पवित्र परंपराओं के खिलाफ था. सम्राट बनते ही उसने पुरानी बहुदेववादी मान्यताओं को फिर से स्थापित करने का फैसला कर लिया. भले ही बीते चार दशकों में ईसाई धर्म सम्राटों की छत्र-छाया में और धर्म-प्रचारकों की मेहनत के चलते तेजी से फल-फूल रहा था, लेकिन बहुदेववाद अभी भी लोकप्रिय था. एक आम धारणा यह भी थी कि यदि पुरानी धार्मिक मान्यताओं और बलि जैसे कर्मकाण्डों को फिर से स्थापित नहीं किया गया, तो कोई भयानक दैवी कहर कभी भी टूट सकता है. बहुदेववादियों को अपमानजनक मौत का शिकार हुए जीसस नामक व्यक्ति को अपने देवी-देवताओं के बरक्स देखना गवारा नहीं था. इस माहौल में जब सम्राट जूलियन ने बहुदेववाद को फिर से राजकीय धर्म बनाने का फैसला लिया, तो उसे बड़े स्तर पर समर्थन मिला. करेन आर्मस्ट्रॉन्ग ने लिखा है कि यहूदियों को शुरू में इस बहुदेववादी शासक से कोई उम्मीद नहीं रही होगी, पर उन्हें बहुत जल्दी ही यह मालूम हुआ कि जेरूसलम और यहूदियों के लिए जूलियन ने बहुत-कुछ सोच रखा है.

फारस पर हमले की तैयारी के सिलसिले में जूलियन ने 362 में एंटिओक में पड़ाव डाला था. यह शहर फिलहाल दक्षिण तुर्की के अंटाक्या में है. उसने 19 जुलाई को यहूदियों के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की. उसके शिक्षक इयामबिलिकस का मानना था कि कोई भी पूजा ईश्वर तक तब तक नहीं पहुंच सकती, जब तक कि उसके साथ बलि देने का कर्मकाण्ड नहीं किया जाये. शासन के नियमों के अनुसार यहूदियों को बलि देने की मनाही थी. यह स्थिति सम्राट के लिए सहनीय नहीं थी क्योंकि उसकी सफलता और साम्राज्य की स्थिरता ईश्वर की दया पर निर्भर थी. आर्मस्ट्रॉन्ग कहती हैं कि जूलियन भी यहूदी धर्म की कई चीजों को पसंद नहीं करता था, पर वह अपने प्राचीन धर्म को लेकर उनकी प्रतिबद्धता का कायल था. उल्लेखनीय है कि यहूदियों के शिष्टमंडल से मुलाकात से पहले बतौर रोम का धर्मप्रमुख- पोंटिफेक्स मैक्सिमस- जूलियन ने हर प्रांत में ईसाई पादरियों के बरक्स बहुदेववादी पुजारी नियुक्त कर दिया था. जिन शहरों ने ईसाइयत को नहीं अपनाया था, उन्हें खास तवज्जो दी गयी और धीरे-धीरे अहम पदों से ईसाइयों को हटाने का काम भी तेजी से चल रहा था.

रोमन सम्राट जूलियन यह भी चाहता था कि अपने धार्मिक अधिकारों की बहाली के लिए यहूदी खुद उससे आग्रह करें. बैठक में उसने यहूदी समुदाय के नेताओं से पूछा कि वे देवता को बलि क्यों नहीं चढ़ाते. यहूदियों ने कहा- ‘अपने धार्मिक कानून के मुताबिक हमें पवित्र शहर से बाहर बलि देने की मनाही है. तो फिर हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? हमें शहर दे दें, हमारा मंदिर और हमारी बलि-वेदी बना दें, तब हम उसी तरह से बलि चढ़ायेंगे, जैसा कि पहले किया करते थे.’ सम्राट ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह पूरी लगन से सबसे बड़े देवता के मंदिर की स्थापना के लिए प्रयास करेगा. इसके तुरंत बाद उसने यहूदी समुदाय के नेताओं और साम्राज्य के यहूदियों को पत्र लिख कर कहा कि वह अपने खर्च पर जेरूसलम में पवित्र शहर का निर्माण करेगा, शहर को फिर से आबाद करेगा, जैसा कि सालों-साल से यहूदियों का अरमान है.

सम्राट जूलियन ने पहले के शासकों द्वारा दिये गये यहूदियों के खिलाफ सारे फरमान वापस ले लिये, इस समुदाय पर थोपे गये करों को खत्म कर दिया, संपत्ति लौटा दी, समुदाय के प्रमुख हिल्लेल को सम्मानजनक पदवी देने के साथ उसे टैक्स लेने का अख्तियार भी दिया. यह सब इतना अप्रत्याशित था और इतनी तीव्रता से घटित हुआ था कि यह यहूदियों के लिए एक बड़ा चमत्कार था. उन्हें यह सब अपने मसीहा के आमद की आहट-सी लगी. रोमन और फारसी साम्राज्यों में बसे यहूदी जेरूसलम आने लगे. यहूदियों का इस पवित्र शहर में ऐसा जमावड़ा दो सदियों से भी अधिक समय के बाद हुआ था. उन्होंने टेंपल माउंट पर दखल जमा लिया. वहां कभी हेरोड का बनवाया भव्य मंदिर था, जिसे टाइटस ने तबाह कर दिया था तथा अब वहां रोमन शासकों की मूर्तियां थीं और मलबे बिखरे पड़े थे. जूलियन को दुआएं देते यहूदियों ने उस जगह को साफ कर वहां एक अस्थायी सिनागॉग बनाया तथा मंदिर के निर्माण की तैयारी में जुट गये.

जूलियन

हालांकि इतिहास की महागाथाओं की तरह कॉन्सेंटाइन परिवार, जिसका वारिस जूलियन था, की दास्तान भी बेहद दिलचस्प है, परंतु रोमन शासक के बारे में ज्यादा चर्चा का यहां कोई मतलब नहीं है. लेकिन इस बारे में कुछ बात कर लेना ठीक होगा कि आखिर जूलियन ने अपने पूर्ववर्ती शासकों के उलट यहूदियों को संरक्षण क्यों दिया तथा ईसाइयों से उसने राज्याश्रय क्यों हटा लिया. जब जूलियन के पिता और करीबी रिश्तेदारों को कॉन्सेंटाइन ने मारा था, तब जूलियन की उम्र पांच साल थी. इसके सम्राट बनने से पहले 354 में उसके सौतेले भाई गैलस की हत्या कॉन्स्टेंटियस द्वितीय ने करा दी थी. गैलस तब साम्राज्य के पूर्वी हिस्से का मुखिया था और उससे सम्राट की नाराजगी की एक बड़ी वजह यहूदियों के विद्रोह को ठीक से नहीं संभालना था. गैलस के मारे जाने के बाद जूलियन को साम्राज्य के पश्चिमी हिस्से का सीजर बनाया गया था, पर गृह युद्ध का साया परिवार के ऊपर से अभी पूरी तरह से नहीं उठा था. ऐसे में जूलियन के मन में ईसाइयत के प्रति द्वेष की भावना का होना अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता है. जेरूसलम और टेंपल माउंट यहूदियों को वापस देकर वह ईसा मसीह समेत कुछ अन्यों की मंदिर को लेकर कही गयी बातों को झुठला सकता था और ईसाइयों के इस विश्वास को भी डिगा सकता था कि मंदिर का हमेशा के लिए तबाह होना यहूदियों से ईश्वर के आशीर्वाद के हट जाने का प्रमाण है. एक व्यावहारिक कारण यह भी था कि फारस के साम्राज्य के युद्ध में जूलियन को बेबीलोनिया के यहूदियों का साथ जरूरी था. इन बातों के अलावा उसके अपने पुराने पारिवारिक ईश्वर सूरज तथा यूनानी देवताओं के प्रति भक्ति का कारक भी महत्वपूर्ण था. उसकी राय में यूनानी देवता और यहूदी देवता एक ही थे. इस तरह से उसकी यहूदी नीति उसकी सहिष्णुता के साथ अन्य कई कारकों का परिणाम कही जा सकती है.

ब्रिटेन में अपने प्रतिनिधि अलिपियस को जेरूसलम में यहूदियों के मंदिर के निर्माण की जिम्मेदारी देकर और यहूदियों को अपने वादे का फिर से भरोसा दिलाकर जूलियन पांच मार्च, 363 को फारस की ओर रवाना हो गया. इधर यहूदियों ने अच्छे कारीगर और जरूरी सामान जुटा कर अपना काम शुरू कर दिया. अब मातम और आशंका ईसाइयों के खाते में आ गयी. करीब पांच दशकों से ईसाई बनते शहर में अब उनके हाशिये पर जाने के खतरे सामने थे. जब टेंपल माउंट पर काम शुरू हुआ, तो ईसाई माउंट ऑफ ओलिव्स यानी जैतून की पहाड़ी से यहूदियों को काम करते उदास नजरों से देख रहे थे. तब वे वही भजन गा रहे थे, जो कभी यहूदी रिवाज के हिस्से थे और अब ईसाइयों ने उन्हें अपना बना लिया था. उदास ईसाइयों को ढांढस बंधाते हुए बिशप सीरिल ने कहा- उम्मीद मत छोड़ो, नया मंदिर पूरा न हो सकेगा.

उधर, इस परियोजना को लेकर कई यहूदी बुजुर्गों और पुजारियों के मन में भी बहुत संदेह था. उनका कहना था कि किसी मूर्तिपूजक द्वारा बनाया गया मंदिर ईश्वर को कैसे मंजूर हो सकता है. एक बड़ा सवाल यह भी था- अगर जूलियन फारस से नहीं लौटा तो!

जेरूसलम का भाग्य हमेशा से कुछ लोग तय करते आये हैं और उसके नतीजे दुनिया को भुगतने पड़ते हैं. इस अध्याय में भी कोई अपवाद नहीं घटित होना था. एक महीने के अंतराल पर दो ऐसी घटनाएं हुईं जिनके कारण मंदिर का काम बंद हो गया. मई की 27 तारीख जेरूसलम भयानक भूकंप से थर्रा उठा. ईसाइयों की नजर में यह ईश्वर का हस्तक्षेप था. बिशप सीरिल की भविष्यवाणी सच साबित होती दिख रही थी. भूकंप की अफरातफरी में लगी आग में मंदिर के लिए जुटाया गया सामान जल कर राख हो गया और कई कामगार घायल हुए. इजरायली पुरातत्वविदों ने डेढ़ दशक की खुदाई और अध्ययन के बाद 2014 में इस भूकंप के बारे में अहम जानकारियां दी थीं. उधर, जूलियन फारस में एक मुश्किल लड़ाई में व्यस्त था. एक महीने के भीतर, 26 जून को वापस लौटने को मजबूर रोमन सम्राट भाले की चोट से घायल हो गया और कुछ दिनों बाद ही उसकी मौत हो गयी. ईसाइयों की कुछ परंपराएं सम्राट के कथित हत्यारे मर्क्यूरियस को संत का दर्जा देती हैं. कई यहूदी भी मानते हैं कि हत्यारा कोई ईसाई था जो रोमन सेना में सैनिक था. मरते हुए सम्राट के होंठ बुदबुदा रहे थे- ईसाइयों, तुम जीत गये!

जेरूसलम के ईसाई इन घटनाओं को चमत्कार मान रहे थे. तरह-तरह की अफवाहें चल रही थीं, जैसे कि जैतून की पहाड़ियों से ईसा मसीह को सूली पर लटकाये जाने की जगह के ऊपर आसमान में बड़ा सा सलीब देखा गया, या फिर यहूदियों और बहुदेववादियों की पोशाकों पर सलीब छपा मिला. जूलियन की जगह जोवियन सम्राट बना, जो कि एक ईसाई था. उसने एक बार फिर जेरूसलम से यहूदियों को निकाल बाहर किया. जब साल में एक बार जब यहूदी टेंपल माउंट पर आते थे, जैसा कि रब्बाई बराकिया ने लिखा है, तो चुप आते थे और चुप जाते थे, रोते हुए आते थे, रोते हुए जाते थे. ईसाई धार्मिक विद्वान जेरोमी ने तो कह दिया कि यहूदी दया के लायक ही नहीं हैं. इस माहौल में यहूदियों और ईसाइयों की आपसी कटुता बहुत बढ़ गयी थी.

ईसाई अब जेरूसलम पर स्थायी कब्जे की तैयारियों में लग गये. उन्होंने पैलेस्टीना और जेरूसलम को ईसाई लोगों और संतों से भरने लगे. साल 379 में सम्राट बने थियोडोसियस प्रथम ने 391-2 में ईसाइयत को राजधर्म घोषित कर दिया और पूरे रोमन साम्राज्य में इस धर्म के प्रभाव और वर्चस्व को सघन करने की कोशिशें जोर पकड़ने लगीं. रोमन कुलीनों के संरक्षण में आक्रामक और हिंसक ईसाइयत के दौर का आगाज हुआ जिसका आध्यात्मिक केंद्र जेरूसलम था.

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 

आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह  


(जारी) 

Cover Photo : Rabiul Islam