डॉ.आंबेडकर के हवाले से उदितराज ने दी मोदी को सनातन पर बहस की चुनौती, लिखा पत्र

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कांग्रेस नेता और पूर्व सासंद डॉ.उदित राज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सनातन पर बहस कराने की चुनौती दी है। उन्होंने पीएम द्वारा मंत्रियों को उदयनिधि  स्टालिन के बयान से सनातन पर उठी बहस का सख्ती से जवाब देने के निर्देश का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे दलित, पिछड़े और आदिवासियों की हालत पर भी चर्चा हो जाएगी। उन्होंने डा.आंबेडकर के लेख के हवाले से डा.आंबेडकर को याद दिलाया कि वे भी जाति आधारित उत्पीड़न को लेकर ऐसे ही कड़ी चोट करते थे। उन्होंने पीएम मोदी से माँग की है कि जातिप्रथा के उन्मूलन को लेकर जो बहस डा.आंबेडकर ने छेड़ी थी, अगर वे उसे लेकर आगे बढ़ें तो सनातन पर बहस सार्थक हो सकती है।

पढ़िए डॉ.उदित राज का पत्र–

 

 

माननीय नरेंद्र मोदी जी,

प्रधानमंत्री, भारत सरकार

 

महोदय,

समाचार माध्यमों से जानकारी मिली है कि आपने अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों को सनातन धर्म को लेकर उठे विवाद पर सख़्ती से जवाब देने का निर्देश दिया है। अगर यह सच है तो प्रसन्नता की बात है क्योंकि देश का दलित, वंचित और पिछड़ा समाज न जाने कब से चाहता है कि डॉ.आंबेडकर द्वारा शुरू की गयी बहस आगे बढ़े और उन्हें ‘नीच’ मानने पर लगी धर्म की मुहर को नष्ट किय जाये।

कई लोगों का कहना है कि आपने ऐसा कहकर 2024 का एजेंडा सेट करने की कोशिश की है। जाति जनगणना को लेकर उठी बहस से बचते हुए आप चाहते हैं कि देश में धार्मिक ध्रुवीकरण हो। आप अच्छी तरह जानते हैं कि उदयनिधि स्टालिन ने जो कहा, वह द्रविड़ आंदोलन की स्थापित मान्यता है जो ई.रामास्वामी पेरियार के आत्मसम्मान आंदोलन से उपजी है। एनडीए गठबंधन में शामिल एआईएडीएमके भी पेरियार को पथप्रदर्शक मानती है। आपकी पार्टी एआईएडीएमके से पेरियार के विचारों पर कोई सफ़ाई नहीं माँग रही हैं, लेकिन डीएमके नेता के बयान को लेकर विपक्ष के इंडिया गठबंधन पर हमलावर है। आप और आपकी पार्टी इस विवाद को गरमाकर उत्तरभारत में राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं।

मैं उम्मीद करता हूँ कि आप पर लग रहा यह आरोप गलत साबित हो और आप वाकई सनातन धर्म में छुआछूत, ऊँच-नीच को समाप्त करने की दिशा में इस बहस को आगे ले जायें। आप जानते ही होंगे कि 1936 में लाहौर ‘जातपांत तोड़क मंडल’ के वार्षिक अधिवेशन में बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन लिखित भाषण में व्यक्त क्रांतिकारी विचारों को देखते हुए आमंत्रण वापस ले लिया गया था। बाद में यह भाषण ‘जातिप्रथा के उच्छेद’ के रूप में प्रकाशित हुआ। इस भाषण में डॉ.आंबेडकर ने कहा था कि जातिप्रथा को धर्मशास्त्रों का समर्थन है इसलिए हिंदू इससे मुक्त नहीं हो सकता। डॉ.आंबेडकर ने इस भाषण में कहा था- “यदि आप जातिप्रथा में दरार डालने चाहते हैं तो इसके लिए आपको हर हालत में वेदों और शास्त्रों में डाइनामाइट लगाना होगा, क्योंकि वेद और शास्त्र किसी भी तर्क से अलग हटाते हैं और वेद तथा शास्त्र किसी भी नैतिकता से वंचित करते हैं। आपको श्रुति और स्मृति के धर्म को नष्ट करना ही चाहिए। इसके अलावा कोई चारा नहीं है।” ( पृष्ठ 99, डॉ.आंबेडकर, संपूर्ण वाङ्गय, खंड-1, भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित)

आपको ज्ञात ही होगा कि इस भाषण को महात्मा गाँधी ने अपने अख़बार ‘हरिजन’ में प्रकाशित किया था और इस पर लंबी बहस चली थी जिसके बाद महात्मा गाँधी ने कहा था कि ‘जाति प्रथा आध्यात्मिक और राष्ट्रीय विकास के लिए हानिप्रद है।’ दोनों ही महापुरुष जाति प्रथा को हानिकारक मानते हुए, इसे ख़त्म करने के लिए अंतर्जातीय विवाह को उपाय बता रहे थे।

माननीय मोदी जी, आप सत्ताशीर्ष पर रहते हुए इस बहस को चलाना चाहते हैं तो आप को डॉ.आंबेडकर के विचारों के साथ खड़े होकर उन लोगों को सख़्ती के साथ जवाब देना चाहिए जो जातिप्रथा की धार्मिक मान्यता के साथ खड़े हैं। उन धार्मिक ग्रंथों को प्रतिबंधित करना चाहिए जो शूद्रों को जीवन भर सेवा करने का और उन्हें कभी मुक्त न करने का निर्देश देते हैं। आपको पता ही होगा कि यूपी के मुख्यमंत्री और आपकी पार्टी के बड़े नेता योगी आदित्यनाथ गर्व के साथ ख़ुद को क्षत्रिय बताते हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने कुछ समय पहले हनुमान जी को भी दलित बता दिया था। ऊँच-नीच का यह सार्वजनिक प्रदर्शन उन लोगों के हृदय में किस तरह शूल बनकर गड़ता होगा जिन्हें वाक़ई ‘नीची’ जातियों में जन्म लिया है, काश इसका आप अंदाज़ लगा सकते। आपने मुख्यमंत्री रहते अपनी वैश्य जाति को पिछड़े वर्ग में सम्मिलित ज़रूर करा लिया था, लेकिन दलित-पिछड़े होने का दर्द कागज़ात से नहीं वैसा जीवन भोगने से ही समझा जा सकता है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को पुरी के मंदिर में पूजा करते समय अपमानित किया गया और वर्तमान राष्ट्रपति मुर्मू जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। सनातन पर बहस ज़रूर हो लेकिन बहुजन की स्थिति उसमें कैसी है, इस पर कुछ व्यवहार करने का समय आ गया है। इसके बिना आपके मंत्री और नेता क्या जवाब देंगे?

आपको यह भी विचार करना चाहिए कि आप जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में दीक्षित हुए हैं वहाँ कोई सरसंघ चालक दलित या पिछड़े समाज से क्यों नहीं आया? क्यों इस संगठन ने कभी जातिप्रथा के नाश का आह्वान या अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहित नहीं किया जैसा कि महात्मा गाँधी और डॉ.आंबेडकर चाहते थे।

आप सनातन को लेकर उठी बहस का सख़्ती से जवाब देते हुए देखें कि देश के तमाम संस्थानों और नौकरियों में दलित-पिछड़े और आदिवासी समाज के लिए आरक्षित स्थान क्यों खाली हैं? क्यों एक षड़यंत्र के तहत ऐसा लगातार किया जा रहा है? आर्थिक आधार पर आरक्षण देते हुए आपकी सरकार ने क्रीमी लेयर का मानक 8 लाख रुपये माना है जबकि दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज के लिए यह बेहद कम है। क्या यह अन्याय नहीं है?  आपकी सरकार जाति जनगणना की माँग मानकर समाज की हक़ीक़त सामने ला सकती है। जब पिछड़ों को आरक्षण मंडल कमीशन के आधार पर मिला तब उसका विरोध आडवाणी जी ने देश भर में यात्रा निकालकर किया। उस समय आप सवर्ण थे और यात्रा का प्रबंधन आप ही कर रहे थे। 52% आबादी वाले पिछड़ों को आरक्षण मिला जिन्हें सदियों के बाद भागीदारी का अवसर था तो क्या ये सनातनी नहीं थे या नहीं हैं। आज बीजेपी जिस ऊंचाई पर है वह कमंडल की देन है, जिसका जन्म मंडल के विरोध में हुआ था। निजीकरण के माध्यम से आरक्षण आपने खत्म किया तो क्या दलित, आदिवासी और पिछड़ों को सनातनी नहीं मानते?

आप डॉ.आंबेडकर और उनके बनाये संविधान के प्रति बार-बार श्रद्धा व्यक्त करते हैं। आइए, उनके विचारों पर भी चला जाये और जाति प्रथा उन्मूलन के अधूरे कार्यक्रम को पूरा किया जाये। आप ऐसा कर सकें इसके लिए अनंत शुभकामनाएँ।

भवदीय

उदितराज (पूर्व सांसद, लोकसभा)