गोवा में साहित्‍य का इंस्‍पेक्‍टर राज: पुलिस को कविता पसंद नहीं आई तो कवि पर FIR, रद्द पुरस्‍कार



अगर आप गोवा में बैठकर कविता लिख रहे हैं तो ध्‍यान रहे कि कविता ऐसी लिखें जो एक साधारण पुलिस इंस्‍पेक्‍टर को समझ में आ जाए वरना आप पर मुकदमा हो सकता है। बुधवार को दि इंडियन एक्‍सप्रेस में छपी एक ख़बर ट्विटर पर तेज़ी पकड़ रही है जिसमें कहा गया है कि गोवा का एक कवि जो कि भारतीय जनता पार्टी का पूर्व विधायक भी है, उसके ऊपर चार साल पुराने कविता संग्रह को लेकर मुकदमा दर्ज कर दिया गया है।

मंगलवार को गोवा पुलिस ने कवि विष्‍णु सूर्य वाघ और उनके प्रकाशक अपूरबाई प्रकाशन के खिलाफ आइपीसी की धारा 293, 292 तथा महिलाओं के अश्‍लील चित्रण के निषेध से संबंधित कानून की धारा 4 के अंतर्गत एक एफआइआर दर्ज की है। इस एफआइआर का आधार एक महिला की शिकायत को बनाया गया है, लेकिन पुलिस का कहना है कि उसने कविताएं पढ़ी हैं और उसे खुद भी ये कविताएं भावनाओं को आहत करने वाली लगी थीं।

पुलिस का कविता पढ़ना और बुरा लगने पर एफआइआर करना अपने आप में हास्‍यास्‍पद भी है और षडयंत्रकारी भी क्‍योंकि अव्‍वल तो पिछले चार साल से इस पुस्‍तक की कविताओं पर जातिगत विवाद चल रहा है। दूसरे, खुद मुख्‍यमंत्री मनोहर पर्रीकर ने इसका अपने हाथों से लोकार्पण किया था और अंतिम बात, इस कविता संग्रह को 2015-16 के लिए कविता श्रेणी में गोवा के सरकारी साहित्यिक पुरस्‍कार के लिए कोंकणी अकादमी द्वारा चुना गया है।

कहानी के मूल में जातिगत विद्वेष और उच्‍च जाति के वर्चस्‍व का एंगल है। खबर और सोशल मीडिया पर भी जो बात प्रमुखता से उठायी जा रही है, वो यह है कि इस कवि ने ब्राह्मणों को आहत करने वाली कविताएं लिखी हैं। वाघ का चार साल पहले कोंकणी भाषा में एक काव्‍य संग्रह आया था- ”सुदिरसूक्‍त- शूद्रों की रचनाएं”। एक्‍सप्रेस लिखता है कि इस संग्रह के आने पर राज्‍य के प्रभुत्‍वशाली गौड़ सारस्‍वत ब्राह्मणों और बहुसंख्‍य बहुजन गोवावासियों के बीच जातिगत विभाजन तीखा हो गया था।

चार साल तक इस पर जातिगत विवाद चलता रहा, लेकिन ताज़ा घटनाक्रम 15 अगस्‍त को शरू हुआ जब इस संग्रह को कविता के लिए गोवा कोंकणी अकादमी ने पुरस्कृत करने की घोषणा की। इसके बाद सोशल मीडिया पर संग्रह को लेकर दुष्‍प्रचार शुरू हो गया और चार दिन पहले 14 अक्‍टूबर को खबर आई कि गोवा सरकार ने 2015-16 के लिए दिए जाने वाले सभी साहित्यिक पुरस्‍कारों को इस बार रद्द कर दिया है। ये पुरस्‍कार सरकारी संस्‍थाओं, जैसे गोवा कोंकणी अकादमी, गोमांतक मराठी अकादमी और कला एवं संस्‍कृति निदेशालय द्वारा दिए जाते हैं।

पुरस्‍कारों को रद्द करने की आधिकारिक वजह यह बताई गई थी चयन कमेटी के कुछ सदस्‍यों ने कुल 16 श्रेणियों में से एक श्रेणी में अपनी ही किताब चुन ली थी। इंडियन एक्‍सप्रेस ने एक अधिकारी से बातचीत का हवाला देते हुए लिखा था कि सरकार इस बात से भी नाखुश थी कि चयनकर्ताओं ने वाघ का नाम कविता की श्रेणी में लीक क्‍यों कर दिया।

किताब के कंटेंट पर जातिगत विवाद तो चार साल से था, लेकिन ऐसा पहली बार है जब पुलिस कह रही है कि उसे कविताएं ठीक नहीं लगी हैं। एक्‍सप्रेस में आरोपों की पुष्टि करते हुए वरिष्‍ठ इंस्‍पेक्‍टर सुदेश आर नाइक का बयान छपा है जो गौर करने लायक है: ”जो कविताएं हमारे पास लाई गई थीं उन्‍हें हमने पढ़ा और  हमारा मानना है कि वे अच्‍छी कविताएं नहीं हैं। शिकायत तभी दर्ज की गई जब हम खुद आश्‍वस्‍त हो गए कि वे कविताएं किसी को आहत कर सकती हैं, बल्कि करती हैं।”

अब जबकि एफआइआर दर्ज हो चुकी है, ख़बर में उद्धृत अधिकारियों के मुताबिक गोवा पुलिस कविताओं की भाषा और ”अपशब्‍दों” की ”जांच” के लिए ”कई विशेषज्ञों” और भाषा निदेशालय से संपर्क करेगी।

एक ओर जहां वाघ की किताब और कविताओं पर सोशल मीडिया और सरकारी हलके में विवाद छिड़ा हुआ है, वहीं वाघ खुद हिलने-डुलने और अपना बचाव कर पाने में पूरी तरह से अक्षम हैं क्‍योंकि उन्‍हें दिल का दौरा पड़ा था जिसके बाद उन्‍हें सेरीब्रल हाइपोक्सिया हो गया है।

पुस्‍तक की प्रकाशक और साहित्‍य अकादमी विजेता लेखिका हेमा नाइक ने एक दिलचस्‍प जानकारी अख़बार को यह दी है कि इस कविता संग्रह का लोकार्पण खुद मुख्‍यमंत्री मनोहर पर्रीकर ने सरकारी संस्‍थान कला अकादमी में किया था।

वाघ के भतीजे कौस्‍तुभ नाइक जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय, दिल्‍ली में शोध छात्र हैं। उन्‍होंने इस मामले पर कारवां में एक लंबा लेख लिखा था जिसे ज्‍यादा जानकारी के लिए यहां पढ़ा जा सकता है।