हिंदुस्तान टाइम्स के सामने पिछले 13 साल से न्याय की आस में बैठे रविंद्र ठाकुर बृहस्पतिवार सुबह धरनास्थल पर मृत पाए गए। लगभग 56-57 वर्षीय रविंद्र ठाकुर मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के रहने वाले हैं। बाराखंबा पुलिस को रविंद्र के परिजनों का इंतजार है जिससे वह उनके शव का पोस्टमार्टम करवा सके।
हिंदुस्तान टाइम्स ने 2004 में लगभग 400 कर्मियों को एक झटके में सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया था जिनमें रविंद्र ठाकुर भी शामिल थे। इसके बाद शुरू हुई न्याय की जंग जिस दौरान रविंद्र ने अपने कई साथियों को बदहाल हालत में असमय दुनिया छोड़ते हुए देखा। बदहाली के दौर से गुजर रहे इनके कुछ साथियों ने तो खुदकुशी करने जैसे आत्मघाती कदम तक उठा लिए। अपने कई साथियों को कंधा देने वाला यह शख्स खुद इस तरह इस दुनिया से रुख़सत हो जाएगा किसी ने सोचा भी ना था।
रविंद्र ने पिछले 13 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखे। कभी किसी कोर्ट से राहत की खबर के बाद चेहरे पर खुशी की लहर, तो कभी प्रबंधन द्वारा स्टे ले लेने से चेहरे पर उपजी निराशा। रविंद्र के लिए तो बाराखंबा रोड पर हिंदुस्तान टाइम्स के कार्यालय के बाहर स्थित धरनास्थल ही जैसे घर बन गया हो। उनके साथियों के अनुसार वे पिछले कई सालों से अपने घर भी नहीं गए थे। वह रात में धरनास्थल पर ही सोते थे।
रोजगार का कोई अन्य साधन न होने की वजह से वह अपने साथियों व आसपास स्थित दुकानदारों पर निर्भर थे। कभी मिला तो खा लिया, नहीं मिला तो भूखे ही सो गए। इस फाकामस्ती के दौर में वह जल्द-जल्द बीमारी की पकड़ में भी आने लगे थे परंतु उन्होंने कभी धरनास्थल नहीं छोड़ा। पिछले 13 साल से धरनास्थल पर रहने वाले रविंद्र ठाकुर की मौत की खबर पाकर वहां पहुंचे साथियों को उनके परिजनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। बस वे इतना ही जानते हैं कि उनका घर हिमाचल प्रदेश और पंजाब की सीमा पर कहीं स्थित है।
अपने कई साथियों को कंधा देने वाले इस शख्स की आत्मा को आज खुद अपनी पार्थिव देह के अंतिम संस्कार के लिए अपने परिजनों के कंधे की तलाश है। इस खबर को पढ़ने वालों से अनुरोध है कि वे इसको शेयर या फारवर्ड जरूर करें, जिससे असमय काल के गाल में गए जुझारू रविंद्र ठाकुर को उनकी अंतिम यात्रा में उनके परिजनों का कंधा मिल सके। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे एवं हिंदुस्तान टाइम्स के निष्ठुर हो चुके प्रबंधन को सद्बुद्धि दे कि वह अपने इन कर्मियों की सुध ले और उनके साथ न्याय करे।
पत्रकार प्रमोद पटेल की फेसबुक दीवार से साभार