ये लोग विदेशी समाचार एजेंसियों पर विश्वास करते हैं पर भारतीय एजेंसियों पर विश्वास नहीं करेंगे। वे बीबीसी का हवाला तो देते हैं लेकिन भारतीय अदालतों पर यकीन नहीं करते। अगर एक प्रतिकूल फैसला पास हो जाए तो वे सुप्रीम कोर्ट पर भी दोषारोपण करेंगे।
किरेण रिजिजू, बीबीसी के टैक्स सर्वेक्षण की आलोचना के जवाब में वीरवार को
जब तक दूरदर्शन, आकाशवाणी था – आम लोग क्या चर्चा करते थे – हमने इसे बीबीसी पर सुना …. दूरदर्शन, आकाशवाणी पर कोई भरोसा नहीं था।
नरेन्द्र मोदी, 8 अप्रैल 2013
वैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भाजपा ने मार्च निकाला है और , हड़ताल का एलान किया है। मामला बहुत पुराना नहीं है। केरल के सबरीमाला मंदिर का मामला आपको याद होगा। वहां 10 से 50 साल की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया था और भाजपा ने इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था, मार्च किया था और हड़ताल का एलान भी किया था। इस तथ्य के बावजूद कि पुनर्विचार याचिका भी खारिज हो गई और पांच जजों की संविधान पीठ ने 41 से फैसले को कायम रखा। यहाँ, यहाँ और यहाँ पढ़ें ।
पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से हुए फैसले में पाँच जजों की संविधान पीठ ने स्पष्ट किया है कि हर उम्र की महिलाएँ अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा वर्ष 1991 में दिये गए उस फैसले को भी निरस्त कर दिया जिसमें कहा गया था कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश करने से रोकना असंवैधानिक नहीं है।
गुजरात पर डॉक्यूमेंट्री आने और भारत में उसपर प्रतिबंध तथा ढूंढ़-ढ़ूंढ़ कर हरेक लिंक हटवाए जाने के बाद दिल्ली और मुंबई में बीबीसी के दफ्तरों पर सर्वेक्षण की कार्रवाई तीन दिन बाद पूरी हुई। हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट के बाद देश के एक उद्योग समूह को भारी नुकसान और इस कारण भारतीय पूंजी बाजार की साख को लगे बट्टे को कम करने के लिए भी मामले की जांच के आदेश नहीं दिए गए हैं। मांग के बावजूद। ऐसे में बीबीसी के दफ्तर पर किसी भी देश में आयकर की जांच का यह अनूठा मामला था और तीन दिन चला तो निश्चित रूप से खबर है। खासकर तब जब बीबीसी ने भाजपा प्रवक्ता (जिसे बाद में फ्रिंज एलीमेंट कहने का उदाहरण भी है) गौरव भाटिया का बयान, ‘बीबीसी दुनिया की सबसे भ्रष्ट संस्था’ को बीबीसी ने पब्लिश किया है।
बीबीसी पर छापा खत्म होने की खबर हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। द टेलीग्राफ ने इसे लीड बनाया है। शीर्षक है, बीबीसी सर्वेक्षण पर सोवियत शैली का टैग। उपशीर्षक है, टैक्स सर्वेक्षण तीन दिन बाद पूरा हुआ। द टेलीग्राफ की खबर इस प्रकार है, बीबीसी के दिल्ली और मुंबई कार्यालयों पर आयकर “सर्वेक्षण” तीन दिनों के बाद समाप्त हुआ तो एक दिग्गज ब्रिटिश संपादक ने कहा कि बीबीसी के खिलाफ आयकर विभाग की कार्रवाई सोवियत शैली में “धमकाने” की तरह है।
बीबीसी ने गुरुवार देर रात एक बयान में कहा कि आयकर अधिकारी दिल्ली और मुंबई में उसके कार्यालय छोड़कर जा चुके हैं। ये अधिकारी मंगलवार सुबह 11.30 बजे पहुंचे थे। प्रसारणकर्ता ने कहा है कि वह “बिना किसी डर या पक्षपात के रिपोर्ट करना जारी रखेगा”। द वायर के करण थापर के साथ एक इंटरव्यू में, फाइनेंशियल टाइम्स के पूर्व संपादक लियोनेल बार्बर ने कहा कि बीबीसी के खिलाफ कार्रवाई “प्रतिशोध की तरह दिखती है” और “निश्चित रूप से डराने वाली” थी। उन्होंने कहा कि यह “सोवियत संघ की याद दिलाता है”।
बार्बर ने कहा कि बीबीसी द्वारा नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले वृत्तचित्र के दो भाग प्रसारित किए जाने के कुछ हफ़्तों बाद होने वाले इस टैक्स सर्वेक्षण के समय पर सवाल है। उन्होंने कहा, “ऐसे छापों का विज्ञान या उससे जुड़ी विद्या काफी खराब होती है।” बीबीसी ने एक बयान में कहा, “हम अधिकारियों के साथ सहयोग जारी रखेंगे और उम्मीद करते हैं कि मामले जल्द से जल्द हल हो जाएंगे”
बीबीसी के एक प्रवक्ता ने कहा, “हम कर्मचारियों की सहायता कर रहे हैं – इनमें से कुछ से लंबी पूछताछ हुई है या उन्हें रात भर रुकना पड़ा है – और उनका कल्याण हमारी प्राथमिकता है।” (वैसे तो यह भारत सरकार की होनी चाहिए थी क्योंकि वे भारत के नागरिक हैं और बीबीसी की नौकरी करते हैं। वैसे तो अतिथि देवो भव के देश में बीबीसी अतिथि नहीं है तो वह नियोक्ता है और जांच नियोक्ता के रूप में उसके काम की भी हो सकती है।)
खबर के अनुसार आयकर विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि जांचकर्ताओं ने महत्वपूर्ण माने जाने वाले डिजिटल उपकरणों से डेटा क्लोन किया था, लेकिन कुछ जब्त नहीं किया। केवल उन कर्मचारियों के बयान दर्ज किए गए जिनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी, मुख्य रूप से वित्त, कंटेंट डेवलपमेंट (मतलब खबर और डॉक्यूमेंट्री भी है) और प्रोडक्शन (कार्यक्रम निर्माण) से संबंधित विभागों के अन्य कर्मचारी।
बीबीसी ने कहा कि इसका आउटपुट अब “सामान्य हो गया है” और अपने पिछले बयान को दोहराया कि वह भारत और उसके बाहर अपने दर्शकों की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रवक्ता ने कहा, “बीबीसी एक विश्वसनीय, स्वतंत्र मीडिया संगठन है और हम अपने सहकर्मियों और पत्रकारों के साथ खड़े हैं जो भय या पक्षपात के बिना रिपोर्ट करना जारी रखेंगे।” कई मीडिया संगठनों और अधिकार समूहों ने बीबीसी की तलाशी की आलोचना की है।
मुंबई प्रेस क्लब ने एक बयान में कहा, “हम मांग करते हैं कि इस धमकी को रोका जाए और पत्रकारों को बिना किसी डर या पक्षपात के अपना काम करने के लिए छोड़ दिया जाए।” सूत्रों ने द टेलीग्राफ से बताया कि बीबीसी के जिन कर्मचारियों को जांच के लिए रुकना पड़ा उनमें से ज्यादातर वित्त और कॉर्पोरेट मामलों से संबंधित थे। एक सूत्र ने रॉयटर्स को बताया, “उन्होंने (अधिकारियों ने) हममें से कुछ को अपना लैपटॉप खोलने और फोन देने के लिए कहा और फिर उसे वापस सौंप दिया।” डिवाइस जिनके थे उनसे एक्सेस कोड भी मांगे गए थे। एक दूसरे स्रोत ने भी यह विवरण दिया (इसका मतलब जांच बीबीसी की ही नहीं, कर्मचारियों की भी हुई है)।
बार्बर ने करण थापर से कहा कि उन्होंने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री, ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन का पहला भाग देखा है, लेकिन दूसरा नहीं’। पहला भाग 2002 के दंगों के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी की भूमिका पर सवाल उठाता है, और दूसरा 2019 के बाद से उनकी सरकार के कुछ फैसलों की जांच करता है। यह पूछे जाने पर कि उन्होंने पहले भाग का मूल्यांकन कैसे किया, बार्बर ने कहा कि इसमें मोदी समर्थकों और भाजपा सदस्यों को कहानी का अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया है।
यह पूछे जाने पर कि क्या बीबीसी की ओर से 2002 के गुजरात हत्याकांड के 21 साल बाद इस मुद्दे को उठाना पत्रकारिता की दृष्टि से उचित था, उन्होंने कहा कि “कुछ भी सीमा से बाहर नहीं है” (यहां यह दिलचस्प है कि भाजपा वाले 1984 के दंगे उठाते रहते हैं, 1947 का बंटवारा तो प्रिय विषय है लेकिन 2002 का मामला पुराना होना बताया जाता है)।
कांग्रेस ने कहा है कि बीबीसी के खिलाफ कार्रवाई एक “अघोषित आपातकाल” है, और इसे वृत्तचित्र से जोड़ा गया है। सरकार ने वृत्तचित्र को प्रतिकूल प्रचार के रूप में खारिज कर दिया है और यूट्यूब तथा ट्वीटर से इसकी पहुंच को अवरुद्ध करवा दिया है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।