‘विश्व संघ’ के लिए ‘पीटर पीर प्रताप’ बनने वाले राजा महेंद्र प्रताप को ‘जाट राजा’ बताने का घटियापन!


अपनी सघन सक्रियता के दौर में राजा महेन्द्रप्रताप ने लेनिन से भी भेंट की थी। उनका जीवन अत्यंत विशिष्ट अनुभवों से भरा-पुरा रहा। दुनिया के कितने ही देशों में उनकी कीर्ति और काम का डंका बजा। आज़ादी के बाद दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सम्मेलन की अध्यक्षता उन्होंने ही की, जिसका उदघाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। वे निरन्तर ‘विश्व-संघ’ स्थापना पर जोर देते रहे। उन्होंने अपना नाम ‘पीटर पीर प्रताप’ रखा जो उनकी अडिग प्रतिबद्धताओं को जाहिर करता है


सुधीर विद्यार्थी सुधीर विद्यार्थी
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1992 में हमने अपनी पत्रिका ‘संदर्श’ का ३०० पेजी अंक केरल के साहित्य, कला, इतिहास और वहां के सामाजिक जीवन पर केंद्रित किया था। यह अवसर केरल के क्रांतिकारी चेम्पक रामन पिल्लै की जन्मशती का था और उन्हें समर्पित किए गए पत्रिका के इस विशेषांक का विमोचन वहीं तिरुअनंतपुरम में एक सादे समारोह में सम्पन्न हुआ। हम उस दिन तिरुवनंतपुरम में चेम्पक रामन के जन्मस्थल पर भी गए जिस जगह महालेखाकार का विशाल भवन है। हमारे साथ वहां के अनेक हिंदी सेवी और लेखक थे लेकिन चेम्पक रामन के जन्म के उस ठिकाने पर जाने के लिए हमारे लिए मुख्य द्वार भी नहीं खोला गया। हमने फाटक पर ही बैनर लगाकर उस क्रांतिकारी को याद किया जिन्होंने भारत से बाहर बनी क्रांतिकारियों के अंतरिम सरकार में विदेश मंत्री का दायित्व संभाला था, जबकि तब गठित हुई उस सरकार में राजा महेन्द्रप्रताप को राष्ट्रपति तथा मौलाना बरकतउल्ला को प्रधानमंत्री चुना गया था।

दुःखद है कि आज इन्हीं राजा महेन्द्रप्रताप को ‘जाट राजा’ कहकर इस देश की राजनीति उनके आदमकद को छोटा करने के अपराध में संलग्न है जिसमें ‘मीडिया’ कहा जाने वाला वर्ग तथा उससे ज्ञान प्राप्त लोग लहालोट हुए जा रहे हैं। आज उस ‘जाट राजा’ की तस्वीर पर पुष्पांजलि करने वाले उनकी सरकार में प्रधानमंत्री रहे मौलाना बरकतउल्ला का नामोल्लेख भी नहीं करते जो उन दिनों ब्रुसेल्स में आयोजित साम्राज्यवाद-विरोधी सम्मेलन में एक स्वतंत्र देश के प्रतिनिधि की हैसियत से सम्मलित हुए थे और लेनिन ने मौलाना वही सम्मान दिया जो एक आज़ाद देश के राष्ट्राध्यक्ष को दिया जाता है। किसे पता है कि मौलाना की कब्र कैलिफोर्निया से स्वदेश आने की प्रतीक्षा कर रही है। हम जानते हैं कि मौलाना ने गुलाम भारत में न आने की कसम खाई थी और वे विदेशी धरती पर ही मुक्ति का युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए।

सब तरफ उच्चारित किया जा रहा है कि एक ‘जाट राजा’ ने विदेशी धरती अपनी अस्थाई सरकार बनाई, जबकि यह बाहरी देशों में अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले क्रांतिकारियों की सरकार थी।

राजा महेंद्रप्रताप का इस देश में बड़ा सम्मान था। वे देश के क्रांतिकारियों और स्वाधीनता सेनानियों के बीच बहुत आदरणीय थे। जनता से मिले प्यार ने उन्हें संसद में पहुंचाया, जहां उनका स्वागत करते हुए जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि आज हमारे एक बुजुर्ग हमारे बीच आए हैं और उनके पुराने अनुभवों से हमें फायदा पहुंचेगा। राजा महेन्द्रप्रताप का एक बार अत्यंत भव्य अभिनंदन भी किया गया और उस अवसर पर रामनारायण अग्रवाल, बनारसीदास चतुर्वेदी, पंडित सुंदर लाल, बाबा पृथ्वीसिंह आज़ाद, पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी, मन्मथनाथ गुप्त, डॉ. भगवान दास माहौर और सत्यभक्त द्वारा संपादित ८०० पृष्ठों का ‘अभिनन्दन-ग्रंथ’ उन्हें भेंट किया गया, जिसमें जर्मनी के डॉ. वर्नर औन्तो वॉन हेंटिंग, जेनोबिया एच बाघी, लियोनिद मिट्रोविन, काका साहब कालेलकर, आचार्य जुगुल किशोर, बनारसी दास चतुर्वेदी, कर्मवीर पंडित सुन्दर लाल, कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक सत्यभक्त, बाबू वृन्दावन दास जैसे अनेक लोगों ने उनके प्रति आदर व्यक्त करते हुए उनका मूल्यांकन किया था।

अपनी सघन सक्रियता के दौर में राजा महेन्द्रप्रताप ने लेनिन से भी भेंट की थी। उनका जीवन अत्यंत विशिष्ट अनुभवों से भरा-पुरा रहा। दुनिया के कितने ही देशों में उनकी कीर्ति और काम का डंका बजा। आज़ादी के बाद दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी सम्मेलन की अध्यक्षता उन्होंने ही की, जिसका उदघाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था। वे निरन्तर ‘विश्व-संघ’ स्थापना पर जोर देते रहे। उन्होंने अपना नाम ‘पीटर पीर प्रताप’ रखा जो उनकी अडिग प्रतिबद्धताओं को जाहिर करता है। बाद को उनकी स्मृति और सम्मान में डाक टिकट भी जारी हुआ। ऐसे विश्व-क्रान्तिकारी को ‘जाट राजा’ के तौर पर स्थापित करना उनका अवमूल्यन है, भले ही उनके नाम पर विश्वविद्यालय कहे जाने वाली ईंट-पत्थरों की कोई इमारत खड़ी कर ली जाए।

३० वर्ष पूर्व चेम्पक रामन पिल्लै पर काम के दौरान मैंने ३६० पृष्ठों की रगमी की तमिल पुस्तक ‘जयहिंद चम्पकरामन’ को हिंदी में अनुवाद करने के लिए मद्रास के सुलेखक डॉ. एम. शेषन को तैयार कर लिया था, लेकिन इसे छापने के लिए तब हिंदी का कोई प्रकाशक आगे नहीं आया। हमारे लिए चेम्पकरामन पिल्लै को याद करने का अर्थ उस पूरे क्रांतिकारी अभियान को उसे उसकी वैचारिक ऊष्मा के साथ रेखांकित करना है जिसके लिए संयुक्त रूप से राजा महेन्द्रप्रताप, मौलाना बरकतउल्ला और उनके सभी संगी-साथी सक्रिय और समर्पित रहे। हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस सचेत क्रांतिकारी चेतना को किसी के हाथों खुर्द-बुर्द न होने दें।

 

 

सुधीर विद्यार्थी हिंदी के सुपरिचित लेखक हैं, क्रांतिकारियों और क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास लेखन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए चर्चित हैं।