पिछले दिनों ख़बर आई थी कि 2013-16 के बीच कुल कॉरपोरेट फंडिंग का क़रीब 74 फ़ीसदी (705.81 करोड़) अकेले भारतीय जनता पार्टी के ख़ज़ाने में गया। आख़िर बीजेपी पर इस मेहरबानी की वजह यूँ ही तो नहीं है। मोदी सरकार लगातार संकेत दे रही है कि अगर कॉरपोरेट कंपनियाँ बीजेपी की अंटी इसी तरह गरम करती रहें तो सरकार बदले में वह सब कुछ करेगी जो वे चाहती हैं। चुनावों को बेहद ख़र्चीला बनाकर सामान्य खिलाड़ियों को मैदान से बाहर कर देने की मोदी-अमित शाह रणनीति का आधार कॉरपोरेट कंपनियाँ ही हैं।
10 अगस्त को श्रम सुधारों के नाम पर लोकसभा में जो बिल पेश हुआ है, वह इस लेन-देन की एक बानगी है। इस बिल के क़ानून बन जाने पर मज़दूरों के तमाम अधिकार ख़त्म हो जाँएँगे। या कहें कि कल्याणकारी राज्य की अवधारणा ही नष्ट हो जाएगी। ‘काम के घंटों’ और ‘न्यूनतम मज़दूरी’ को लेकर श्रमिकों की हालत ‘गूँगे ग़ुलामों’ सरीखी होगी जो कॉरपोरेट का सपना है।
सभ्य होने की कसौटी एक ऐसा जीवन है जिसमें सबको काम, आराम और मनोरंजन हासिल हो। इन सभी के लिए 8-8 घंटे का सिद्धांत को आदर्श माना गया। लेकिन इस सिद्धांत को उन्होंने कभी नहीं माना जो मज़दूरों के श्रम के शोषण पर अपना साम्राज्य खड़ा करना चाहते हैं।
शोषण के इस चक्र के ख़िलाफ़ मज़दूरों की लड़ाई का शानदार इतिहास है। मानवीय गरिमा के साथ जीने के लिए मज़दूरों ने अपने झंडे को अपने ही ख़ून से लाल कर दिया था। यह घटना अमेरिका के शिकागो शहर में घटी थी, 1886 में। मज़दूरों के इस संघर्ष के कारण ही पूँजीवाद ने ‘कल्याणकारी राज्य’ की बात करनी शुरू की थी। लेकिन 131 साल बाद आज पूरी दुनिया में मज़दूरों की उन तमाम उपलब्धियों को नष्ट करने का षड़यंत्र हो रहा है। ‘न्यू इंडिया’ के जुमले के साथ भारत का शासकवर्ग भी ज़ोर-शोर से शोषकवर्ग के साथ पूरी बेशर्मी के साथ खड़ा है।
इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई बड़ा विद्रोह ना पनपने पाए, इसके लए “गोमाता से लेकर भारतमाता” तक के मसले उछाले जा रहे हैं ताकि देश ‘हिंदू-मुसलमान’ में फँसे रहे। मज़दूरों की आवाज़ पूरी तरह ग़ायब हो जाए। कॉरपोरेट संचालित मीडिया की नज़र में मज़दूरों और उनके हक़ की बात करना ‘अपराध’ ही है, सो वहाँ भी कोई गुन्जाइश नहीं बची।
यह कहना ग़लत ना होगा कि मोदी सरकार श्रम सुधार के नाम पर मज़दूरों की महान उपलब्धियों का ख़ून करना चाहती है। जो क़ानून आठ घंटों से ज़्यादा काम को अपराध घोषित करते थे या न्यूनतम् मज़दूरी को बाध्यकारी बनाते थे, उनमें बदलाव की पुरज़ोर तैयारी हो रही है।
कार्टूनिस्ट काजल कुमार ने अपनी फ़ेसबुक दीवार पर जो लिखा है, वह आने वाले भयावह दिनों की तस्वीर है-
“ क्षमा करें, यह मेरी आज तक की सबसे लंबी पोस्ट है। नौकरीपेशा लोगों को यह ज़रूर पढ़नी चाहिए क्योंकि अब उनकी ज़िंदगी बदलने जा रही है आैर, मीडिया इस पर चुप है.
- 10 अगस्त को, लोकसभा में The Code on Wages, 2017 पेश किया गया है. इसके लागू होने के बाद, ये सारे Acts repeal हो जाएंगे:- The Payment of Wages Act, 1936, the Minimum Wages Act, 1948, the Payment of Bonus Act, 1965 and the Equal Remuneration Act, 1976 (Clause 60)
- सभी कंपनियों आदि के अतिरिक्त यह, इन सब पर भी लागू होने जा रहा है -रेलवे, खानों, तेल क्षेत्र, प्रमुख बंदरगाहों, हवाई परिवहन सेवा, दूरसंचार, बैंकिंग और बीमा कंपनी या किसी निगम या किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा स्थापित केन्द्रीय अधिनियम या केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम या सहायक कंपनियां केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों या स्वायत्त द्वारा स्थापित केंद्र सरकार द्वारा स्वामित्व वाली या नियंत्रित, ऐसी प्रतिष्ठान, निगम या अन्य प्राधिकरण, केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों, सहायक कंपनियों या स्वायत्त निकायों के प्रयोजनों के लिए ठेकेदारों की स्थापना सहित, जैसा कि मामला हो, केन्द्रीय सरकार; (Clause 2(d)) यानि यह अब हर नौकरीपेशा पर लागू होगा.
- इसके मुताबिक़, अब पारिश्रमिक (I) घंटे के हिसाब से, या (Ii) दिन के हिसाब से, या (Iii) महीने के हिसाब से तय किया जा सकता है. जो, (ए) समय काम के लिए मजदूरी की न्यूनतम दर; या (बी) टुकड़े के काम के लिए मजदूरी की एक न्यूनतम दर; के हिसाब से दिया जाएगा. (Clause 6 ) यानि अब नौकरी घंटों या दिन के हिसाब से भी दी जा सकेगी, महीने के हिसाब से पगार की कोर्इ बाध्यता नहीं रह जाएगी.
- (Clause 9 को 60 के साथ पढ़िए ) पे-कमीशन या wage-revision आदि ख़त्म किए जा रहे हैं. सरकार एक ‘सलाहकार बोर्ड’ बनाएगी जो पारिश्रमिक तय करेगा.
- No fine shall be imposed on any employee who is under the age of fifteen years. (Clause 19.(5) ) यानि 15 साल से कम उम्र के लोग भी काम पर रखे जा सकेंगे.
- किसी को भी केवल 2 दिन के नोटिस पर काम से निकाला जा सकेगा. (Clause 17. (2) )
- काम के घंटे कुछ भी तय किए जा सकते हैं (8 घंटे की बाध्यता समाप्त). हफ़्ता 6 दिन का होगा, सातवें दिन छुट्टी ( Clause 13. (1) )
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शायद ही किसी ने ऐसा draconian कानून कभी सुना होगा. ILO, इस कानून के सामने एक हास्यास्पद संस्था दिखार्इ दे रही है. अभी तक तो यह सरकार, मज़दूर का PF अौर बैंक-डिपाज़िट ही हड़प रही थी, अब उसकी ज़िंदगी ही साहूकारों के चंगुल में रखने जा रही है.
जो, इस पास होने जा रहे कानून का संसद में पेश मूल मसौदा देखना चाहते हैं, वे इसे यहां, भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के इस लिंक पर पढ़ सकते हैं -“
http://labour.nic.in/…/Code%20on%20Wages%20Bill%202017-As%2…
http://labour.nic.in/…/Code%20on%20Wages%20Bill%202017-As%2…
क़ायदे से तो इस मुद्दे पर देश में जनज्वार दिखना चाहिए। विपक्ष के लिए गाय-गोबर-गोमूत्र का नरेटिव बदलने का इससे बेहतर मौक़ा क्या हो सकता है…लेकिन अफ़सोस, फ़िलहाल कोई आलोड़न नहीं दिख रहा है। अख़बारों में बयान तक नहीं आ रहा है। या कहें कि जिस कॉरपोरेट के इशारे पर मोदी सरकार यह ख़ूनी खेल खेलने जा रही है, उसने सबकी जेब गरम कर रखी है।
बहरहाल, जनता गरम हो गई तो सबकी गर्मी उतर जाएगी..देखिए, कब होती है !
बर्बरीक
मज़दूरों के संघर्ष की शानदार गाथा पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें–
सिर्फ़ जीने नहीं, मनुष्य की तरह जीने की जद्दोजहद का नाम है मई दिवस !