मोदी की लखनऊ रैली में ‘काल्‍पनिक’ बम विस्‍फोट की कहानी मीडिया में प्‍लांट करवा रहा है NIA



रिहाई मंच ने कानपुर के मो. आतिफ और आसिफ की गिरफ्तारी के बाद सुरक्षा एजेंसियों द्वारा कराए जा रहे मीडिया ट्रायल पर सख्त आपत्ति दर्ज करायी है। मंच ने आरोप लगाया है कि सरकार द्वारा मकोका की तर्ज पर यूपीकोका लाने का माहौल बनाने के लिए ही आइएस के नाम पर मुस्लिम युवकों को पकड़ने और मीडिया ट्रायल के बहाने बहुसंख्यक हिंदुओं को डराने का नाटक सुरक्षा एजेंसियों से कराया जा रहा है। कानपुर से आसिफ और आतिफ की गिरफ्तारी के बाद एनआइए और एटीएस के दावों पर सवाल उठाते हुए मंच ने कहा कि जब उनके द्वारा 7 मार्च के बाद से ही लगातार पूछताछ की जा रही थी तब मुम्बई में बैठे उनके कथित आकाओं के बारे में या रामलीला मैदान में मोदी के कार्यक्रम में इनकी विस्फोट की योजना बनाने, विस्फोट करने की बातें अब तक क्यों नहीं सामने लाई गई थीं। क्या इसकी वजह सिर्फ ये है कि जब जांच एजेंसियां उन पर गवाह बन जाने का दबाव डालने में सफल नहीं हो पाईं तो अब उन्हें आरोपी बनाने के लिए झूठी कहानियां मीडिया में प्रसारित करवा रही हैं।

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि कभी एटीएस और एनआइए के हवाले से कहा जा रहा है कि लखनऊ रामलीला मैदान में जब मोदी आए थे तो इनकी ब्लास्ट की योजना थी, तो कभी ब्लास्ट का रिहर्सल करने की बात कही जा रही है तो वहीं अब यह भी कहा जा रहा है कि कम इंटेनसिटी का बम होने की वजह से विस्फोट का पता नहीं चला था। जबकि सच्चाई तो यह है कि मोदी के रामलीला कार्यक्रम के बाद कहीं भी किसी बम के पाए जाने या उसके फटने की कोई झूठी खबर भी या किसी पुलिस अधिकारी का बयान भी नहीं आया था। मंच ने आरोप लगाया कि एटीएस और एनआइए के अधिकारी अभी तय ही नहीं कर पा रहे हैं कि 9 महीने पुरानी मोदी की रैली में काल्पनिक बम विस्फोट की कहानी मीडिया में किस तरह बेचनी है। बम फोड़ने के लिए षडयंत्र रचने की कहानी बतानी है या उसे ‘फोड़वा’ ही देना है। यह कहते हुए कि बम इतना कमजोर था कि उसकी आवाज ही किसी ने नहीं सुनी ताकि मुसलमानों के खिलाफ बनाई गई आतंकी छवि को सच मानने वाली आम भीड़ कथित विस्फोट की आवाज सुने बिना भी इसे सच मान ले। मंच के नेता ने कहा कि जांच एजेंसियों की यह मजाकिया और गैरपेशेवराना हरकत उनके साथ ही आतंकवाद जैसी गम्भीर समस्या को भी मजाक में तब्दील कर रही है।

शाहनवाज आलम ने कहा कि सैफुल्ला फर्जी एनकाउंटर के बाद से ही एजेंसियां इस मामले पर उठ रहे सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई हैं और इसीलिए इसे जायज ठहराने के लिए सैफुल्ला के परिचितों को आतंकी साजिश में शामिल बताने की कहानी गढ़ रही हैं। एनआइए और एटीएस में अभी भी आम सहमति नहीं दिख रही है कि वे सैफुल्ला के परिचितों को किस मामले में फंसाएं। इसीलिए जहां कुछ अधिकारियों के जरिए मीडिया के एक हिस्से में यह कहानी फैलाई जा रही है कि ये लोग मोदी की लखनऊ में रामलीला मैदान रैली में विस्फोट करने का षडयंत्र रचने में शामिल थे तो वहीं कुछ अधिकारियों ने यह अफवाह फैलवाई है कि पकड़े गए मोहम्मद आतिफ और आसिफ कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को हथियार सप्लाई करने में शामिल हैं। किसी को भी फंसाने से पहले एजेंसियां आपस में तय कर लें कि इन्हें किस मामले में फंसाना है क्योंकि ऐसा नहीं करने पर वो खुद अपने लिए हास्यास्पद स्थिति पैदा कर ले रही हैं, जैसा कि इस मामले में हुआ है।

उन्होंने कहा कि सैफुल्ला मामले में यह हास्यास्पद स्थिति शुरू से ही रही है। सैफुल्लाह मुठभेड़ पर जब ये सवाल उठा कि उसके पास घातक हथियार नहीं थे तो क्यों मार दिया गया, तब असीम अरुण ने इसे पुलिस से हुई चूक बताया था। सैफुल्लाह फर्जी मुठभेड़ के वक्त भी मीडिया के जरिए असीम अरूण ने दावा किया था कि वह आइएस का खतरनाक आतंकी है जिसके पास से हथियारों, विस्फोटकों और आतंकी साहित्य का जखीरा बरामद हुआ है। लेकिन इस जघन्य हत्या के दूसरे ही दिन असीम अरूण के दावों की पोल खुद पुलिस ने यह कहकर खोल दी थी कि सैफुल्ला के किसी भी आतंकी संगठन से जुड़े होने के कोई सुबूत नहीं मिले हैं। लेकिन लगातार मीडिया में सुरक्षा एजेंसियां आईएस का नाम ले रही हैं।