इंडिया टीवी का एक रिपोर्टर है। जब भी कभी रवीश कुमार पर निशाना साधने का मौका मिलता है वो पूरी दिलचस्पी के साथ इस काम को अंजाम देता है। रवीश कुमार से कुछ पत्रकार नुमा लोगों का चिढ़ना लाज़िमी है। ना वो मेहनत करके कभी रवीश जितना ऊंचा कद बना सके हैं और ना विरोध में लंबी-लंबी पोस्ट लिखकर उनका कद घटा सके हैं। कभी रवीश का शिकार उनके राजनीतिज्ञ भाई के बहाने करते हैं तो कभी चैनल मालिक की वित्तीय अनियमितता के सहारे उनकी विश्वसनीयता के किले को भेदना चाहते हैं। ज़ाहिर है, इस तरह के तीरों से उसे ही बींधा भी जा सकता है जिसकी वाकई कोई विश्वसनीयता हो।
एनडीटीवी जैसे कमज़ोर चैनल को निशाना बनाने के पीछे एक और वजह है। चैनल की माली हालत खराब है और वो कभी भी डूब सकता है। जिसका करियर ठीकठाक चल रहा है वो हाल फिलहाल वहां नौकरी करने नहीं जाएगा। मैं ऐसे बहुत पत्रकारों को जानता हूं जो सिर्फ इसलिए न्यूज़ चैनल्स की नीतियों पर लिखने से डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भविष्य में नौकरी करने जाना पड़ा तो कोई उनकी पोस्ट सामने रखकर रिजेक्ट ना कर दे। मेरा इस मामले में साफ मानना है कि अगर आप खुद से ईमानदार नहीं हैं तो किसी संस्थान के लिए भी ईमानदार नहीं हो सकते। अगर संस्थान समझ रखता होगा तो पहले आप ही को रखेगा क्योंकि उसे मालूम है कि आप निर्भीक हैं जो इस पेशे की सबसे पहली ज़रूरत है।
बहरहाल, बात इंडिया टीवी के उसे तर्रार रिपोर्टर की जो बड़े ही सटीक आंकड़े उठा लाने का दावा करता है। मैं कभी किसी संस्थान के गड़बड़झाले से उसके कर्मचारी की नीयत और मेहनत नहीं तय करता लेकिन दूसरे संस्थानों का हिसाब रखनेवाला और उसके सहारे शिकार पर निकलनेवाला अपने संस्थान का कितना हिसाब रखता है अब इस सवाल को पूछने का सही वक्त है।
नीचे जो लिखा है, उसे ध्यान से पढ़िए। ये वो तथ्य हैं जो पब्लिक स्पेस में ही हैं लेकिन मशहूर इसलिए नहीं हुए क्योंकि कभी भी इन्हें कायदे से उठाया नहीं गया। पत्रकार की खाल में छिपे भक्तों के एजेंडे से खुद को बचाने में ये आपके काम आएंगे। आप लोग प्रोपेगेंडा का शिकार ना हों इसकी फिक्र मुझे अपने करियर से बहुत ज़्यादा है।
प्रस्तुत आंकड़े 2016 दिसंबर की THE CARVAN से लिए गए हैं। आप इन्हें इत्मीनान से पढ़िए। आंकड़ों से मत घबराइएगा। असली खेल ही वहां होता है। कल अपनी एक पोस्ट में एनडीटीवी के मालिकों की कथित गड़बड़ी को रवीश से जोड़कर इंडिया टीवी के रिपोर्टर ने फ्री स्पीच, सेकुलरिज़्म, वामपंथ और ना जाने किस-किस बात पर वैसा ही ज़हर उगला था जैसा संघ परिवार और उसके संगठन अक्सर ज़्यादा घटिया भाषा में करते हैं। रिपोर्टर पढ़ा-लिखा है इसलिए भाषा के मामले में खांटी भक्तों से ज़्यादा धनी है। अब मैं उसके संस्थान की उन आर्थिक गड़बड़ियों को प्रस्तुत करता हूं जो एनडीटीवी वालों के जुर्म से कतई कम गंभीर नहीं है। इसका उद्देश्य प्रणव रॉय के जुर्म को कम करना भी नहीं, बल्कि ये बताना है कि उनसे भी अधिक बड़ा अपराध करके भी लोग पीएम के साथ आराम से फोटो खिंचा रहे हैं। उन्हें अपने हाई टीआरपी शो में मेहमान बनाकर बुला रहे हैं। देश की सबसे चुस्त एजेंसी को कोशिश करनी चाहिए कि वो प्रधानमंत्री के साथ कम से कम दिखें वरना लोगों में गलत संदेश भी जा सकता है।
आगे जो आंकड़े दे रहा हूं उनमें आप अनियमितता, राजनीति, व्यापार का गठजोड़ खोजकर उस रिपोर्टर की विश्वसनीयता पर वैसे ही सवाल खड़े कर सकते हैं जो रवीश पर आदतन खड़े किए जा सकते हैं क्योंकि वो एनडीटीवी में काम करते हैं।
इंडिया टीवी को इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस चलाती है। इस कंपनी को शुरूआती तौर पर साल 2005 में पैसा चाहिए था जो उसे गौतम अड़ानी के ग्रुप से मिला। अडानी ने कंपनी में 16.4% हिस्सेदारी ले ली। नीलामी की दहलीज़ पर खड़े जेपी ग्रुप ने भी उस वक्त इस कंपनी को पैसा देकर हिस्सा खरीदा। मार्च 2007 में रजत शर्मा की कंपनी ने विदेशी फंडिंग का प्रयास किया। मॉरीशल में रजिस्टर्ड सीवी ग्लोबल होल्डिंग्स नाम की कंपनी ने तब रजत शर्मा की कंपनी को 45 करोड़ रुपए दिए और इक्विटी शेयर लेकर 20% हिस्सेदारी पा ली। उस वक्त सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने किसी भी न्यूज चैनल में सीधे विदेशी निवेश यानी FDI की सीमा तय कर रखी थी। 2007 में इक्विटी शेयर होल्डिंग के आधार पर ये अधिकतम सीमा 26% थी जबकि इंडिपेंडेंट न्यूज में CV ग्लोबल के पूरे निवेश को मिलाकर 59.3% हिस्सेदारी हो गई थी। इसके अलावा सभी विदेशी निवेश कंपनियों (वेंचर कैपिटल फर्म) का SEBI (भारतीय शेयर बाजार का रेगुलेटर) में रजिस्टर्ड होना जरूरी होता है।
कमाल देखिए कि ऐसी कुल 154 रजिस्टर्ड कंपनियों में से 149 कंपनियां सिर्फ मॉरिशस की हैं और इनमें से 46 कंपनियों का पता, फोन नंबर और फैक्स नंबर तो एक ही है। जिस अमेरिकी वेंचर कैपिटल कंपनी कॉमवेंचर्स ने इंडिया टीवी में निवेश का एलान किया था CV ग्लोबल उसकी सहयोगी कंपनी थी। इसी कॉमवेंचर्स ने NDTV में भी 87.8 करोड़ रुपए का निवेश किया जिसके बाद अप्रैल 2007 में उसका विलय एक दूसरी बड़ी कंपनी वेलोसिटी इंटरेक्टिव ग्रुप में हो गया। इनकम टैक्स विभाग ने NDTV के साथ डील करने से वेलोसिटी (पुरानी कंपनी कॉमवेंचर्स) को मना कर दिया। IT विभाग ने कहा कि वेलोसिटी में कॉमवेंचर्स का मर्जर टैक्स बचाने के मकसद से किया गया है लेकिन इंडिया टीवी की डील पर इनकम टैक्स वालों ने कोई एतराज नहीं जताया। आप सोचिए क्यों ???
अब गड़बड़ियों की इस कहानी के अगले पड़ाव पर चलते हैं। दिसंबर 2007 में श्याम इक्विटीज नाम की एक और कंपनी ने इंडिपेंडेंट न्यूज सर्विस में 100 करोड़ रुपए लगा दिए। रजत शर्मा की नई नवेली कंपनी में श्याम इक्विटीज़ ने 10 रुपए फेस वैल्यू वाले इक्विटी शेयर के एवज में 7 करोड़ रुपए दिए गए जबकि बाकी 93 करोड़ रुपए प्रीमियम के तौर पर चुकाए गए। वित्तीय संकट से बुरी तरह जूझ रही एक नई कंपनी में इतने बड़े प्रीमियम के साथ इनवेस्ट करना बाज़ार के किसी भी जानकार को चौंका सकता है। अब आपको बताते हैं कि इस कंपनी के पीछे हाथ किसका है। दरअसल श्याम इक्विटीज टैली सॉल्यूशंस की सहयोगी कंपनी है जिसके डायरेक्टर मनोज मोदी और आनंद जैन हैं। मोदी और जैन दोनों ही मुकेश अंबानी के करीबी कहे जाते हैं। चौंकाने वाली बात ये है कि श्याम इक्विटीज ने अपनी सालाना रिपोर्ट में इंडिपेंडेंट न्यूज सर्विस में 100 करोड़ रुपए निवेश की बात अलग तरीके से बताई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी ने इक्विटी शेयर के लिए 100 रुपए के भाव पर 70 करोड़ रुपए दिए जबकि बाकी 30 करोड़ की रकम प्रीमियम के तौर पर दिखाई गई है। इन्हीं इक्विटी शेयर के लिए इंडिपेंडेंट न्यूज सर्विस की सालाना रिपोर्ट में 10 रुपए का भाव दिखाया गया है।
ये खेल किसी के भी माथे पर शिकन ला सकता है लेकिन शोर उतना मचा नहीं जितना होना चाहिए था। 2012 में श्याम इक्विटीज की इंडिपेंडेंट न्यूज सर्विस में पूरी 23% हिस्सेदारी इंफोटेल टेलीवेंचर्स ने खरीद ली। इंफोटेल मुकेश अंबानी के करीबी माने जाने वाले बिजनेसमैन महेंद्र नाहटा की कंपनी है। ये जनाब वही हैं जिनसे 2G स्पेक्ट्रम घोटाले में CBI पूछताछ कर चुकी है। इंफोटेल ने ये हिस्सेदारी सिर्फ 12.5 करोड़ रुपए में खरीदी, मतलब 100 करोड़ रुपए का निवेश कर श्याम इक्विटीज ने 87.5 करोड़ रुपए का घाटा उठाया। क्यों उठाया कोई नहीं जानता ? क्या ये किसी ब्लैक को व्हाइट करने का खेल था?
अब गड़बड़ियों का अगला पड़ाव… इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस के अलावा रजत शर्मा और ऋतु धवन मिलकर तीन और कंपनियां चलाते हैं। इनके नाम हैं- इंडिया टीवी एंड फिल्म एकेडमी, इंडिया टीवी ब्रॉडकास्ट कंपनी और इंडिया टीवी इंटरेक्टिव मीडिया। इनमें से कुछ कंपनियां एक-दूसरे में हिस्सेदार भी हैं। मसलन इंडिया टीवी इंटरेक्टिव मीडिया में इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस का हिस्सा है। इसे क्रॉसहोल्डिंग कहा जाता है। गैर कानूनी ना होने के बावजूद एक कंपनी से दूसरे में पैसा डालने के जलेबी जैसे इस खेल यानि क्रॉसहोल्डिंग को टैक्स बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
CARVAN पत्रिका के मुताबिक इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस का कुछ पैसा शर्मा दंपति की अन्य कंपनियों में भी गया है। गणित कुछ ऐसा उलझा है कि रजत शर्मा जी की कंपनी इंडिया टीवी इंटरेक्टिव मीडिया साल 2015 में अपनी कमाई साढ़े 18 करोड़ रुपए दिखाती है जिसमें साढ़े 16 करोड़ रुपए उसे उनकी ही दूसरी कंपनी इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस से इंफ्रास्ट्रक्चर सुविधा और स्टूडियो सुविधा किराए पर देने से मिलते हैं। देसी भाषा में इसे एक हाथ दे और एक हाथ ले कहते हैं। उससे पिछले साल भी ठीक इसी तरह 15.8 करोड़ रुपए का बिज़नेस हुआ था। दुनिया जानती है कि टैक्स से बचने का ये सबसे जाना पहचाना तरीका है। बहरहाल , बातें और भी हैं लेकिन पहले ही काफी लंबा लिखा जा चुका है। इसे इसी प्रार्थना के साथ समेट रहा हूं कि जब दूसरों के जुर्म पर चर्चा हो तो बात उन पर भी हो जो ठीक वही जुर्म करके भी हाथों में पत्थर लिए दूसरों पर निशाना साध रहे हैं।
आखिर में बात दोहरा देता हूं। टीवी मीडिया बहुत महंगा खेल है। हर कोई पैसा नहीं लगा सकता और ना हर कोई जान सकता कि जो लगा है वो आया कहां से है, इसलिए कम से कम पत्रकार एक-दूसरे के चैनलों में हुए निवेश पर सवाल ना ही करें तो बेहतर। ऐसा बहुत कुछ है जो आप ना जानते हैं और ना जानेंगे। पत्रकारिता करें वही आपके लिए सबसे बेहतर और आखिरी रास्ता है।
नितिन ठाकुर
लेखक टीवी पत्रकार हैं