क्या आपको श्रीनगर में तैनात ईटीवी के उस रिपोर्टर की याद है जिसने 2014 में आई बाढ़ के वक़्त अपनी जान दाँव पर लगाकर 300 लोगों की जान बचाई थी। उसका नाम है रिफ़त अब्दुल्लाह। रिफ़त ने एक बार फिर किसी डूबते को बचाने की कोशिश की है। इस बार उसने अपनी नौकरी दाँव पर लगाई है ताकि मीडिया की साख न डूब जाये।
रिफ़त ने आज ईटीवी उर्दू के विशेष संवादादाता पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
वजह जानेंगे तो हैरान रह जाएँगे। दरअसल, महबूबा मुफ़्ती को पहली महिला मुख्यमंत्री बनने पर बधाई देने के लिए ईटीवी वह कर रहा था जिसे अब तक देखा-सुना नहीं गया।
सोमवार यानी 4 अप्रैल को महबूबा मुफ़्ती के शपथग्रहण से पहले ईटीवी की ओर से जम्मू और श्रीनगर में ‘’अब्बू की लाडली’’ और ‘’कश्मीर की बेटी’’ महबूबा मुफ़्ती को सूबे की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने की बधाई देते हुए बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स लगवाई गईं थीं।
ईटीवी के इस अंदाज़ को देखते हुए सवाल उठ रहे थे कि क्या किसी मीडिया संस्थान का ऐसा करना जायज़ है। तमाम लोग इसे सत्ता के साथ नत्थी होने की ईटीवी अकुलाहट बताते हुए आलोचना कर रहे थे।
रिफ़त ने ईटीवी के इस रुख का विरोध करते हुए इस्तीफ़ा दे दिया। उन्होंने बताया कि किसी मीडिया संस्थान को ऐसा नहीं करना चाहिए जैसा कि ईटीवी ने किया है। वे इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। यह पत्रकारिता की मर्यादा का उल्लंघन है।
रिफ़त 2005 से श्रीनगर में तैनात हैं और चैनल के चर्चित चेहरों में हैं। कश्मीर घाटी में आई बाढ़ के समय उनके काम की गूँज पूरे देश में सुनाई पड़ी थी। उन्होंने रिपोर्टिंग करने के साथ-साथ जान जोख़िम में डालते हुए करीब 300 लोगों की जान भी बचाई थी। उन्हें बेहतर रिपोर्टिंग के लिए कई अवार्ड भी मिल चुके हैं।
बहरहाल, रिफ़त अब बेरोज़गार हैं। उनके इस्तीफ़े पर ईटीवी प्रबंधन को फ़ैसला करना है।