हांगकांग में लोकतंत्र की लड़ाई चल रही है। चीन के आधिपत्य के ख़िलाफ़ हांगकांग की जनता महीनों से प्रदर्शन कर रही है। अब चीन ने एक नया सुरक्षा क़ानून बनाया है जिसके ख़िलाफ़ फिर से प्रदर्शन होने लगे है। इन प्रदर्शनों को कवर करने वाले अख़बार एप्पल डेली के मालिक ज़िम्मी लाई को पुलिस दफ़्तर से गिरफ्तार कर ले गई। हथकड़ी पहना कर। इस गिरफ़्तारी के अगले दिन अख़बार की हेडिंग था “Apple daily must fight on” ।
लोकतंत्र के लिए लड़ने वाली जनता अख़बार के समर्थन में आ गई। लोग ढाई बजे रात को ही लाइन में लग गए कि इस अख़बार की कॉपी ख़रीदनी है। किसी ने कई कापियाँ ख़रीदी। अख़बार का सर्कुलेशन एक लाख से पाँच लाख हो गया। इसके बाद लोग एप्पल डेली कंपनी के शेयर ख़रीदने लगे। शेयरों के दाम हज़ार प्रतिशत तक बढ़ गए। ज़िम्मी लाई को ज़मानत पर रिहा किया गया है।
यह ख़बर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के देश में झूठ मानी जाएगी। यहाँ प्रेस का दमन जनता की भागीदारी से हुआ है। तो विरोध कौन करे। बस जनता को ईमानदारी से एलान कर देना चाहिए कि हमें प्रेस की ज़रूरत ही नहीं है। अब देर हो गई है। जनता मर्ज़ी चाहे ट्रेंड करा लें या मीम बन कर वायरल हो जाए अब कोई फ़ायदा नहीं।
यह सवाल अलग से है। ख़ुद को विश्व गुरु कहलाने की चाह रखने वाले भारत के प्रधानमंत्री हांगकांग या कहीं भी लोकतंत्र के दमन पर एक शब्द नहीं बोलते हैं। ट्रंप और अमरीका ने हांककांग में चीन के दमन और सुरक्षा कानून पर खुल कर बोला है। भारत के प्रधानमंत्री बेलारूस और हांगकांग पर बोलेंगे? रूस की संसद ने पुतीन को 2036 तक पद पर बनाए रखने का क़ानून पास किया है। क्या भारत के प्रधानमंत्री या विपक्षों नेता इस पर कुछ बोलेंगे ?
लोकतंत्र का मामला आंतरिक मामला नहीं होता है। मानवीय मूल्यों की रक्षा मामला है। मानवीय मूल्य सार्वभौम होते हैं।
कभी सोचिएगा। लोड मत लीजिएगा। जो ख़त्म हो चुका है उसके सूखे बीज से माला बना गले में हार डाल लीजिएगा। नाचिएगा। ख़ुशी से। आपने जिस चीज़ को ख़त्म करने में इतनी मेहनत की है उसका जश्न तो मनाइये।
रवीश कुमार जाने-माने टीवी पत्रकार हैं। संप्रति एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर हैं। यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है।