5 अगस्त को अयोध्या में राममंदिर के लिए दोबारा भूमि पूजन और शिलान्यास के लुए हुए कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्य यजमान की भूमिका निभाकर संविधान द्वारा तय की गयी लक्ष्मण रेखा को तोड़ दिया, लेकिन इस सवाल को उठाने वाला वामपंथी दलों के अलावा कोई नहीं है। ‘लोहिया के लोग’ यानी समाजवादी पार्टी हो या फिर राम की पूजा न करने की प्रतिज्ञा कराके गये डा.आँबेडकर को भगवान बनाने में जुटी बीएसपी जैसी पार्टी। काँग्रेस में तो साफ़्ट हिंदुत्व की राह पर चलने की इस क़दर होड़ है कि मंदिर निर्माण का श्रेय लेने की भी कोशिश की जा रही है।
एक ज़माना था जब सभी पार्टियों के पास एक सांस्कृतिक समझ होती थी जो उसके बौद्धिक अभियान के जरिये कार्यकर्ताओं तक पहुँचती थी। लेकिन उदारीकरण की शुरुआत के साथ विचारहीनता का जिस कदर जोर चला है, उसमें इन बातों को जैसे गुज़रे ज़माने की चीज़ मान लिया गया है। बहरहाल, इस बात को चिन्हित करना ज़रूरी है कि वामपंथी दलों ने 5 अगस्त के आयोजन की भव्यता के पीछे छिपे ख़तरे को चिन्हित करने में कोई कोताही नहीं की। चुनावी लिहाज़ से कमज़ोर होने के बावजूद वामपंथी दलों ने वह दृष्टि नहीं खोयी जिसकी उनसे अपेक्षा की जाती है।
हम आपको संसदीय लोकतंत्र में भागीदारी निभा रहीं तीन कम्युनिस्ट पार्टियों, यानी सीपीएम, सीपीआई और सीपीआई एमएल के महासचिवों के ट्विटर पर आयी टिप्पणियों को दे रहे हैं ताकि सनद रहे।
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने इसे सीधे-सीधे संविधान और सेक्युलर भारत पर हमला बताया।
सीपीआई महासचिव डी.राजा ने पार्टी की ओर से जारी इसी सिलसिले का एक दो पेजी बयान जारी किया।
— D Raja (@ComradeDRaja) August 6, 2020
सीपीआई एमएल महासिचव दीपांकर भट्टाचार्य इस पर भी कड़ी आपत्ति जाहिर की कि पीएम मोदी ने मंदिर आंदोलन की तुलना आज़ादी के आंदोलन से की है। उन्होंने कहा कि तुलना सिर्फ 6 दिसंबर से हो सकती है।
No, PM Modi, 5 August 2020 cannot be bracketed with 15 August 1947. It stands in brazen contrast to and negation of August 15. 5 August 2020 flows from and can only be bracketed with 6 December 1992 which the Supreme Court in 1994 had characterised as an act of ‘national shame’!
— Dipankar (@Dipankar_cpiml) August 5, 2020
अब ज़रा बाकी पार्टियों का हाल देखें। ज़्यादातर को याद ही नहीं रहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद तोड़ने को एक बड़ा अपराध बताया है। ये भी कहा है कि बाबर ने राम मंदिर तोड़ा है, इसका कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला। कोर्ट के फैसले पर भी तमाम सवाल उठे थे जो पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के राज्यसभा सदस्य बनने के बाद और तेज़ हुए हैं। लेकिन अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करने की इस सरकारी योजना को ये दल चिन्हिंत करने को भी तैयार नहीं हुए। यूपी में कांग्रेस के पुराने दिनों की वापसी के लिए हाथ-पाँव मार रहीं प्रियंका गाँधी की ओर से भी इस पर कोई टिप्पणी नहीं आई। उन्होंने राम की महिमा गान किया और भूमि पूजन को राष्ट्रीय एकता के संदेश से जोड़ने की ख़्वाहिश जतायी।
सरलता, साहस, संयम, त्याग, वचनवद्धता, दीनबंधु राम नाम का सार है। राम सबमें हैं, राम सबके साथ हैं।
भगवान राम और माता सीता के संदेश और उनकी कृपा के साथ रामलला के मंदिर के भूमिपूजन का कार्यक्रम राष्ट्रीय एकता, बंधुत्व और सांस्कृतिक समागम का अवसर बने।
मेरा वक्तव्य pic.twitter.com/ZDT1U6gBnb
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) August 4, 2020
उधर, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के ट्विटर संदेश ने तो उनके गहरे भक्त होने का संकेत दिया। एक साथ इतने देवी-देवताओं को याद कर लिया कि पूछिये मत…
जय महादेव जय सिया-राम
जय राधे-कृष्ण जय हनुमानभगवान शिव के कल्याण, श्रीराम के अभयत्व व श्रीकृष्ण के उन्मुक्त भाव से सब परिपूर्ण रहें!
आशा है वर्तमान व भविष्य की पीढ़ियां भी मर्यादा पुरूषोत्तम के दिखाए मार्ग के अनुरूप सच्चे मन से सबकी भलाई व शांति के लिए मर्यादा का पालन करेंगी.
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) August 5, 2020
उधर, आजकल बीजेपी के खिलाफ खास तरह से चुप्पी धारे मायावती भी मंदिर पर लगी सुप्रीम कोर्ट की मुहर दिखा रही थीं।
कह सकते है कि आज कम से कम उत्तर भारत में उसे वैचारिक चुनौती देने वाला कोई नहीं है। पर बीजेपी जानती है कि जब तक वामपंथी हैं, वह इस मोर्चे पर निश्चिंत नहीं हो सकती। सत्ता की ओर से ‘देशद्रोही’ बताने का अहर्निश अभियान चलाये जाने के बावजूद वे समर्पण करने को तैयार नहीं हैं, इतिहास ने इसे दर्ज कर लिया है।