तो ‘न्यू इंडिया’ में सरकार या उनके चंपू तय करेंगे कि मीडिया किस मुद्दे पर बहस चलाए और कैसे चलाए। यही नहीं, वे ये अधिकार भी चाहते हैं कि टीवी बहसों में किन्हें शामिल किया जाए और किसे नहीं। हालाँकि पिछले कुछ दिनों से मीडिया का जो रुख है, उसे देखते हुए सरकार को इसके लिए कुछ करने की ज़रूरत नहीं रह गई है। मीडिया का हाल “राणा की पुतली फिरी नहीं, तब तक चेतक मुड़ जाता था’ वाला है।
लेकिन कुछ अपवाद अभी बचे हैं, जिनमे राजदीप सरदेसाई भी हैं। राजदीप अपने शो में कुछ उन आवाज़ों को भी जगह देते हैं जिनका बोलना सरकार को बिलकुल भी पसंद नहीं है। इंडिया टुडे के सलाहकार संपादक राजदीप सरदेसाई ने सुकमा में हुए माओवादी हमले के दिन यानी 24 अप्रैल को दिल्ली युनिवर्सिटी की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर को अपने शो में बुलाकर यही ‘ग़लती’ कर दी।
यूँ तो प्रो.नंदिनी सुंदर ने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के प्रश्न पर गंभीर काम किया है। किताबें लिखी हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है, लेकिन मोदी सरकार की नज़र में वे माओवादी समर्थक हैं। यही नहीं, पिछले दिनों छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके ख़िलाफ़ हत्या का मुकदमा भी दर्ज करा दिया था जिसे लेकर काफ़ी चर्चा भी हुई थी।
इसे लेकर लीगल राइट्स आब्ज़र्वेटरी (LRO) नाम के एक ग्रुप ने राजदीप के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करने की धमकी दी क्योंकि उन्होंने अपने शो में नंदिनी सुंदर को बुलाया। इस ग्रुप के संयोजक विनय जोशी ने इंडिया टुडे को लिखे अपने ईमेल में कहा ्कि “मैं इस मेल के ज़रिये आपके संपादक राजदीप सरदेसाई और संपादकीय बोर्ड के दूसरे सदस्यों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की माँग करता हूँ, जिन्होंने ये शर्मनाक हरकत की है। यह एक हिंसक विचारधारा को बढ़ावा देना है। अगर चैनल ने कार्रवाई नहीं की तो हम पुलिस में शिकायत दर्ज कराएँगे।”
राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट पर इसकी जानकारी दी ।
राजदीप ने कहा कि वे कोर्ट मे बुलाए जाने का इंतज़ार करेंगे। कोई यह तय नहीं कर सकता कि किसे शो में बुलाया जाए और किसे नहीं। हम सभी तरह के विचारों को जगह देते हैं। कुछ चैनल ज़रूर एक ही तरह के विचारों को जगह देते हैं, लेकिन वह प्रोपेगैंडा होता है। नंदिनी को पूरा हक है अपनी बात कहने का जैसे कि किसी और को है।
राजदीप के शो में नंदिनी सुंदर ने कहा था कि सरकार अपने लोगों के ख़िलाफ़ युद्ध नहीं छेड़ सकती है। अगर नगा लोगों के साथ बात हो सकता है तो माओवादियों के साथ क्यों नहीं हो सकती।
बहरहाल, मंगलवार सरकार के दुलारे फ़िल्मकार विवेक अग्निहोत्री ने ट्वीट करके बताया कि राजदीप के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कर दी गई है। ख़ुशी से सराबोर विवेक ने ऐलान किया है कि ‘शहीर नक्सलियों’ के साथ अब ऐसे ही निपटा जाएगा।
रणनीति बहुत साफ़ है। जो असहमत हैं या असहमति को जगह देते हैं उन्हें क़ानूनी पचड़ों में फँसाकर थका दो। क़लम और क़िताबों से वास्ता रखने वाली नंदिनी सुंदर के ख़िलाफ़ हत्या का मुक़दमा इसी की बानगी थी। अब पत्रकारों पर भी इसे आज़माया जा रहा है। राजदीप ताज़ा शिकार हैं। अफ़सोस कि पत्रकारों की तमाम संस्थाएँ इस पर चुप हैं। कम से कम एडिटर्स गिल्ड को तो इस पर बोलना ही चाहिए। इंतज़ार है..