इस ख़बर की मुख्य तस्वीर दैनिक जागरण के झाँसी संस्करण के पेज नंबर 6 पर आज छपी है। यह अख़बार का नेट एडिशन है जो पूरी तरह ब्लर है। ब्लर यानी धुँधला । 21 अप्रैल को शाम पाँच बजे यह ख़बर लिखी जा रही है और पिछले दो घंटे से यह पन्ना ऐसा ही है। यह कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं है, क्योंकि बाकी पूरा अख़बार आप नेट पर आसानी से पढ़ सकते हैं।
या इलाही ये माज़रा क्या है ?
माज़रा है एक ख़बर। यह ख़बर बताती है कि 20 अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बुंदेलखंड दौरे से पहले टाकोरी गाँव के पास रातो-रात एक सूखे तालाब को पानी से लबालब कर दिया गया। यही नहीं उसमें भैंसे भी तैरा दी गईं। योगी ने देखा और प्रसन्न हुए। अधिकारियों की इस चालबाज़ी की ख़बर आप अमर उजाला के झाँसी एडिशन में पढ़ सकते हैं।
साफ़ है कि यह ख़बर दैनिक जागरण के झाँसी एडिशन में भी छपी। वह अपने प्रतिद्वंद्वी अमर उजाला से पीछे कैसे रहता जिसका दावा है कि वह यूपी का नंबर 1 अख़बार हो गया है, लेकिन अफ़सरों को बचाने के लिए नेट एडिशन में इसे अपठनीय बना दिया गया है। जागरण के पेज नंबर 5 और 7 को नेट पर आसानी से पढ़ा जा सकता है, लेकिन 6 नहीं जहाँ यह ख़बर मौजूद है।
बात इतनी ही नहीं है। आमतौर पर दिलचस्प ख़बरों को लेकर संपादक लालायित रहते हैं, लेकिन इस ख़बर को लखनऊ संस्करणों से ग़ायब कर दिया गया, ताकि मुख्यमंत्री तक इस जालसाज़ी की खबर ना पहुँचने पाए। यह सिर्फ़ जागरण ने नहीं बाक़ी अख़बारों ने भी किया..।
जागरण को लखनऊ संस्करण के पेज 16 पर योगी के दौरे की ख़बर छपी है । ‘बुंदेलखंड को एक्सप्रेस वे की सौगात’ हेडलाइन है, लेकिन तालाब भरने वाली ख़बर ग़ायब है।
अमर उजाला के लखनऊ संस्करण में पेज नंबर नौ पर ‘विकास से जुड़ेगा बुंदेलखंड’ और ‘अस्पताल पहुँचे योगी खुश हुए रोगी’ टाइप खबरें छपी हैं, लेकिन रातो रात तालाब भरने वाली अपनी ही ख़बर को अमर उजाला पचा गया।
अब आइये राष्ट्रीय कहे जाने वाले हिंदुस्तान पर। झाँसी एडिशन में कई पन्नों पर योगी का दौरा बिखरा है, लेकिन तालाब वाली ख़बर बहुत कोशिशों के बावजूद नहीं दिखी। लखनऊ संस्करण के पेज नंबर दो पर ‘दिल्ली से सीधा जुड़ेगा बुंदेलखंड’ शीर्षक से ख़बर है। तालाब वाली ख़बर गायब है।
नवभारत टाइम्स का झाँसी संस्करण नहीं है। केवल लखनऊ में छपता है। तालाब वाली ख़बर नहीं है। दौरे से जुड़ी कुछ गुडी-गुडी बातों को पहले पन्ने पर जगह दी गई है।
अफ़सर अपनी ग़लतियाँ छिपाने का स्वाभाविक जतन करते हैं। लेकिन अगर अख़बार इसमें सहयोग दे रहे हों तो संकेत स्पष्ट है। पत्रकारिता ना करने की भी क़ीमत होती है। यह ली जा रही है..दी जा रही है।
बर्बरीक