नाम है अंबिकानंद सहाय। वरिष्ठ पत्रकार कहे जाते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया और स्टेट्समैन के अलावा कई टीवी चैनलों में वरिष्ठ पदों पर रहे हैं- उनके ट्विटर अकाउंट से जानकारी मिलती है। हैट लगाना पसंद करते हैं और न्यूज़ चैनल पर हैट के साथ उपस्थित होने वाले देश के शायद इकलौते पत्रकार हैं।
अंबिकानंद सहाय टाइम्स ऑफ इंडिया, लखनऊ संस्करण के संपादक थे जब 2 जून 1995 को गेस्ट हाउस कांड हुआ। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के नज़दीकी कहे जाने वाले सहाय साहब ने इस ख़बर पर ना के बराबर तवज्जो दी। कहीं छोटी सी ख़बर छापकर ख़ानापूरी कर दी गई थी जबकि इस घटना ने राजनीति की दिशा बदल दी थी।
ख़ैर मुख्यमंत्रियों की अदा पर क़ुर्बान जाने की संपादक जी की स्टायल 32 साल बाद भी ज्यों की त्यों है। आज यानी 20 अप्रैल को बीबीसी हिंदी में उनका नज़रिया छपा है-कैसा रहा यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार का एक महीना ? सहाय साहब ने ट्वीट करके इसकी ख़बर दिग्-दिगंत तक फैला दी है।
पर जब आप उनका नज़रिया पढ़ते हैं तो आँखों में योगियाबिंद साफ़ नज़र आता है। लगता है जैसे स्वर्णयुग आ गया यूपी में। हर तरफ़ अमन-ओ-चैन। राहत। ख़ैर बड़े संपादकों की बड़ी बातें। उन्हें हक़ है सब हरा ही हरा देखने का। लेकिन इसी झोंक में वे एक ऐसी ग़लती कर जाते हैं, जो बताता है कि उनके हैट के नीचे असल में है क्या ! लेख ख़त्म करते हुए वे लिखते हैं-
लगता है ‘पूरे राज्य को बदल डालूंगा’ की मुहिम में योगी सरकार जुटी है. महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि पर स्कूल-कॉलेजों में होनेवाली छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं. वहीं प्राइवेट मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में पोस्टग्रेजुएशन एडमिशन में आरक्षण कोटा खत्म कर दिया है.
ज़रा ग़ौर से पढ़िये। बहुत बड़े पत्रकार अंबिकानंद सहाय बता रह हैं कि योगी सरकार ने प्राइवेट मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में पोस्टग्रेजुएशन एडमिशन में आरक्षण कोटा ख़त्म कर दिया। पर क्या वाक़ई ऐसा था। क्या सहाय बाबू बताएँगे कि किस प्राइवेट कॉलेज में एडमीशन में आरक्षण था ? सच्चाई यह है कि हफ़्ते भर पहले (13 अप्रैल को) यह फ़र्ज़ी ख़बर इंडिया टुडे समेत कुछ वेबसाइटों ने छापी थी जिस पर न्यूज़ चैनलों ने भी ख़ूब वाहवाही (?) की थी, लेकिन 14 अप्रैल को यह साबित हो गया था कि ख़बर पत्रकारों के योगी-प्रेम और उनकी आरक्षण विरोधी मानसिकता का नतीजा है !जिस टाइम्स ऑफ इंडिया में कभी अंबिकानंद सहाय ने काम किया था, उसने इस मसले पर सही ख़बर दी थी। यूपी सरकार की ओर से इसका आधिकारिक खंडन हुआ था।
पर हफ़्ते भर बाद अगर अंबिकानंद सहाय एक ग़लत ख़बर के ज़रिये योगी सरकार के कसीदे गढ़ रहे हैं तो बताता है कि मोदी-योगी राज में ‘चारण पत्रकारिता’ किस कदर बाहौसला बुलंद है। अफ़सोस तो यह है कि इसके लिए बीबीसी जैसे प्रतिष्ठित समाचार समूह का इस्तेमाल किया गया। हैरानी की बात है कि बीबीसी में सिद्ध संपादकों के होते ऐसी ग़लती हुई। या फिर अंबिकानंद सहाय का नाम देखकर एक लापरवाह नज़र से काम चला लिया गया। उम्मीद की जानी चाहिए चाटुकारिता की भाँग ऐसे पत्रकारों का ही कुटेव होगा, कि बीबीसी के कुएँ में यह नहीं पड़ी होगी अब तक।
बर्बरीक
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