कभी समाचार संस्थानों में संपादक की राय से नाइत्तेफ़ाक़ी ज़ाहिर करने में कोई बुराई नहीं थी। बल्कि अख़बारों में बहुत कुछ ऐसा छपता था जिससे संपादक भी पूरी तरह सहमत नहीं होता था। लेकिन विविधिता का सम्मान करना इस पेशे की बुनियादी मान्यता थी। लेकिन आजकल संपादक ख़ुद को गैंगलीडर समझते हैं, जिन्हें सिर्फ़ चियरलीडर टाइप के पत्रकार चाहिए ( दिन को अगर रात कहो, रात कहूँगा टाइप)। संपादक चाहता है कि उसके सहयोगी साँस भी उसी के हिसाब से लें। पिछले दिनों मुंबई में एक चैनल संपादक ने इंटरव्यू के लिए बुलाए गए रिपोर्टर को सिर्फ़ इसलिए ख़ारिज कर दिया क्योंकि वह मुंबई के एक आला पुलिस अफ़सर को उस सुर में चोर कहने को तैयार नहीं था, जिस तरह संपादक जी कह रहे थे। पढ़ें यह प्रकरण और अंदाज़ा लगाएँ–
हाल ही में एक चर्चित टीवी रिपोर्टर को एक अंग्रेजी चैनल से नौकरी के लिए फोन आया। हालांकि यह रिपोर्टर मुंबई में एक अच्छे संस्थान में अच्छी नौकरी कर रहा है, लेकिन बेहतर की संभावना को देखते हुए उसने इंटरव्यू में आने के लिए हामी भर दी। इंटरव्यू चैनल के संपादक लेने वाले थे। शुरुआत में फ़ोन पर दो या तीन अलग-अलग राउंड हुए जो इस रिपोर्टर ने आसानी से पास कर लिए। फिर उसे संपादक के साथ फ़ाइनल राउंड के लिए बुलाया गया।
तय वक्त पर रिपोर्टर चैनल के दफ्तर पहुँच गया। लेकिन इससे पहले कि संपादक महोदय ऑफिस आते और फ़ाइनल राउंड का इंटरव्यू होता, अनुभव में शायद ही इस रिपोर्टर से सीनियर एक शख़्स ने ख़ुद इंटरव्यू लेना शुरू कर दिया। यह बात थोड़ी हैरान करने वाली थी लेकिन बाद में सुनने में आया कि यह शख्स संपादक महोदय का बहुत ही क़रीबी है और उसे संपादक का “ब्लू आयड बॉय” के नाम से भी जाना जाता है। शायद यही वजह है कि उसे संस्थान ने उसके अनुभव से बढ़कर काफी ऊंची पोस्ट दी है ! ख़ैर हमेशा स्टूडियो में ही रहने वाले इस शख्स ने रिपोर्टर से यहाँ-वहाँ के कुछ सवाल पूछे और फिर सवालों की सुई सिर्फ एक जगह आकर अटक गई। पता नहीं इसे शीना बोरा मर्डर केस से इतना क्यों लगाव था या फिर यह शायद एकमात्र ऐसी कहानी थी जिस पर इस बंदे ने कुछ काम किया था !
उसने सवाल किया-
1) इंद्राणी मुख़र्जी केस में आपने कौन-कौन सी एक्सक्लूसिव स्टोरी की?
जवाब में रिपोर्टर ने अपनी कुछ स्टोरी बताई और साथ ही उसे यह भी बताया की एक वक्त के बाद यह केस शायद हिंदी चैनलों के लिए उतना अहम नहीं था इसलिए पीटर मुखर्जी की गिरफ्तारी के बाद उसने इस केस को फॉलो करना छोड़ दिया था।
इस पर उत्तेजित होकर बंदे ने रिपोर्टर से बड़ा बेवकूफ़ाना सवाल किया-
2) चैनल ने भले ही फॉलो करना बंद कर दिया हो लेकिन क्या आपको बतौर एक रिपोर्टर यह नहीं लगा कि आपको इस केस को इन्वेस्टिगेट करना चाहिए था और यह पता लगाना चाहिए था कि पीटर वाकई दोषी है या नहीं ?
रिपोर्टर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि वह एक चैनल का पत्रकार है, ना कि कोई डिटेक्टिव एजेंट या प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर! चैनल जिस स्टोरी को अप्प्रूव करता है ,वह उस स्टोरी को कवर करने की नौकरी करता है !
( बाद में रिपोर्टर ने मीडिया विजिल को बताया कि उसने यह सोच रखा है कि वह जब भी अगली बार इस शख्स से मिलेगा तो उसे पूछेगा कि सलमान खान हिट एंड रन केस में उसका क्या ख्याल है ? अगर उस शख्श ने जवाब दिया कि अदालत सलमान खान को बरी कर चुकी है तब वह कहेगा कि भले ही अदालत ने सलमान खान को बरी कर दिया हो लेकिन क्या बतौर पत्रकार उसको इस मामले को आगे इन्वेस्टिगेट करना चाहिए था कि सलमान खान वाकई गाड़ी चला रहे थे या नहीं !)
तीसरा सवाल-
3) अच्छा ठीक है, लेकिन यह बताइए की तत्कालीन मुंबई पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया के बारे में आपका क्या ख्याल है?
रिपोर्टर- मेरी निजी राय के मुताबिक वे एक बेहद इंटेलिजेंट, कनिंग और हाइली डेकोरेटेड ऑफिसर थे। शायद उन्हें एनसीपी पार्टी से नजदीक होने का खामियाजा भुगतना पड़ा। मौजूदा सरकार इस फिराक में थी कि वे कोई गलती करते और ठीक वैसा ही हुआ कि उन्होंने सरकार को एक मौका दे दिया।
यह जवाब सुनते ही इंटरव्यू लेने वाले कथित सीनियर एडिटर के माथे पर शिकन थी और उसने मुंबई के लगभग सभी क्राइम रिपोर्टर पर टिप्पणी करते हुए कहा –
“आप बुरा मत मानना लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मुंबई के पत्रकार खासतौर पर क्राइम रिपोर्टर प्रो-मुंबई पुलिस हैं (यानी हमेशा मुंबई पुलिस के समर्थन में ही लिखते हैं)।”
इस कथित सीनियर एडिटर की यह टिप्पणी किसी आरोप से कम नहीं थी लेकिन अब तक संपादक महोदय पहुंच चुके थे और फाइनल राउंड शुरू ही होने वाला था !
आम तौर पर जब किसी रिपोर्टर को कोई संस्थान खुद बुलाता है तो उम्मीद यही होती है कि कंडीडेट के बारे में पहले ही काफी कुछ पता कर लिया गया होगा काम से संतुष्ट होने पर ही बुलाया जाता है। यही वजह है कि इंटरव्यू के दौरान खबरों के बारे में कम पूछ कर दूसरे सवाल किए जाते हैं, खासतौर पर सैलरी और पद को लेकर। लेकिन यह इंटरव्यू थोड़ा अलग था।
अपनी अदाओं के लिए मशहूर संपादक जी के साथ फाइनल राउंड आखिरकार शुरू हुआ। इस इंटरव्यू के दौरान संपादक की दाहिनी ओर उनका ‘ब्लू आयड ब्वाय’ भी बैठा था। बगल में दो महिलाएं बैठी थीं (जिनमें से एक ने पत्रकार को खुद फोन कर बुलाया था और दूसरी महिला ने फोन पर एक राउंड इंटरव्यू में इस रिपोर्टर को क्लियर किया था) ।
रिपोर्टर ने बायोडाटा में हालांकि अपनी कई बड़ी ख़बरों का जिक्र किया था, बावजूद इसके संपादक महोदय के सबसे पहले सवाल पर रिपोर्टर ने अपनी एक ऐसी स्टोरी के बारे में बताया जिसने खेल जगत में बड़ी सनसनी फैला दी थी। लेकिन संपादक महोदय ने इस पर एक मामूली सी प्रतिक्रिया देते हुए दूसरी बड़ी स्टोरी के बारे में पूछा ! रिपोर्टर ने कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ अपनी कई और इनवेस्टिगेटिव स्टोरीज़ बताईं। इनमें से कुछ को तो संपादक साहब ने मानने से ही इनकार कर दिया कि वे खबरें इसी रिपोर्टर की थीं। अब तक फिर भी शायद सब कुछ ठीक चल रहा था। शायद संपादक महोदय थोड़े संतुष्ट भी नजर आ रहे थे। लेकिन तभी ब्लू आयड बॉय ने IPS अधिकारी राकेश मारिया को लेकर पूछे गए उसके सवाल और रिपोर्टर की राय के बारे में संपादक जी को बताया। यह सुनते ही संपादक जी का रवैया अचानक बदल गया, आवाज थोड़ी ऊंची हुई और चेहरे पर थोड़ा गुस्सा भी नजर आने लगा। रिपोर्टर ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि यह महज उसकी अपनी निजी राय थी और एक कहानी का दूसरा पहलू था, लेकिन संपादक महोदय सुनने कम और सुनाने के मूड में ज्यादा थे।
अब उनकी तरफ से IPS अधिकारी भ्रष्ट है या नहीं, इस पर बहस सी छिड़ चुकी थी। संपादक महोदय रिपोर्टर पर अपनी राय थोपने लगे ,ठीक उसी अंदाज़ में जिसके लिए वह पहचाने जाते हैं। लेकिन वक्त का तकाज़ा समझकर रिपोर्टर ने बहस ना करना ही सही समझा। ( वरना वो कहना चाहता था कि अधिकारी अगर संपादक जी के मुताबिक भ्रष्ट है तो उसे सजा क्यों नहीं दी गई? सज़ा देने के बजाय प्रमोशन देकर ट्रांसफर क्यों किया गया? जांच में जुटी सीबीआई की टीम ने अब तक उस अधिकारी को आरोपी क्यों नहीं बनाया? इसका मतलब तो यही हुआ कि आप जर्नलिज्म के बेसिक प्रिंसिपल्स को ताक पर रखते हुए अदालत का फैसला आने से पहले ही आरोपी को मुजरिम बता रहे हैं।)
खैर माहौल काफी गर्म हो चुका था, संपादक ने इंटरव्यू के आखरी हिस्से में रिपोर्टर से सैलरी को लेकर उसकी अपेक्षाएँ पूछने की फॉर्मेलिटी की और इंटरव्यू में रिजेक्ट होने का इशारा देते हुए “हम आपसे वक्त आने पर संपर्क करेंगे” का घिसा-पिटा जुमला बोल दिया।
रिपोर्यटर का कहना है कि उसका यह इंटरव्यू सभी पत्रकारों के लिए एक सबक है, खास तौर पर उनके लिए जो नौकरी की तलाश में हैं। वे ध्यान रखें कि अपनी निजी राय से संपादक के ईगो को हर्ट ना करें, संपादक की विचारधारा, कॉरपोरेट घरानों से उनके रिश्ते के बारे में होमवर्क कर लें, और इंटरव्यू में हो सके तो वही बोले जो संपादक सुनना चाहे, ताकि उन्हें घिसा पिटा जवाब सुनने के बजाय “वेलकम ऑन बोर्ड” का सुखद जवाब सुनने को मिले।
( रिपोर्टर की गुज़ारिश पर उसका, चैनल और संपादक का नाम गुप्त रखा गया है)