ग्रेटर नोएडा में इन दिनों अफ़्रीकी देशों से आए छात्रों को लेकर काफ़ी तनाव है। वैसे ये विदेशी कई देशों से हैं, लेकिन आमतौर पर उन्हें नाइजीरियन ही कह दिया जाता है। आबनूसी रंग और घुंघराले काले बालों वालों में कोई फ़र्क़ कर पाना आम लोगों के लिए मुश्किल होता है। उन्हें यह फ़र्क करने की समझ जिन अख़बारों के ज़रिये मिल सकती थी, उनका हाल देखकर सिर पीट लेने का मन होता है।
क्या आप धर्मेंद्र चंदेल को जानते हैंं। कम ही लोग जानते थे, लेकिन India with humanity ने ट्विटर पर जब उनके व्हाट्सएप मैसेज शेयर किए तो काफ़ी लोग जान ही नहीं चौंक भी गए। ज़रा अफ्रीकी देशों के छात्रों के बारे में उनके विचार पढ़िए–
“भाई जी, यह बात मुझे नहीं कहनी चाहिए लेकिन यह कुत्तों तक को खा जाते हैं। यदि इनको अपनी ताक़त का अहसास ना कराया होता तो ये आज ज़िंदा इंसानों को खाने का काम करते रहते.”
ऐसी ही कई व्हाट्सएप मैसेज हैं जो जीबीएन ग्रुप में चले। यह गौतमबुद्ध नगर के तमाम पत्रकारों का व्हाट्सऐप ग्रुप है जो उनकी दिमाग़ी हालत तो बताता ही है, यह भी साफ़ करता है कि अगर पिछले दिनों ग्रेटर नोएडा में विदेशी छात्रों पर हमले हुए, उनके साथ मारपीट हुई तो लोगों को भड़काने में पत्रकारों की भूमिका थी। ख़ुद धर्मेंद्र चंदेल ने लिखा है-“गर इन लोगों को अपनी ताक़त का अहसास न कराया गया होता.”…यानी ताक़त का अहसास कराया गया और इसमें पत्रकारों की भूमिका रही।
ग़ौरतलब है कि करीब हफ्ते भर पहले एक छात्र की ग्रेटर नोएडा में मौत हो गई थी जिसके बाद अफ्रीकी देशों के छात्र निशाने पर हैं। आरोप लगा था कि 12वीं के जिस छात्र की मौत ड्रग्स ओवरडोज़ से हुई थी जो जिसकी सप्लाई अफ़्रीकी छात्र करते हैं।
ये धारणा अब भी क़ायम है जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साफ़ हुआ है कि मृत छात्र के शरीर में ड्रग्स की मौजूदगी नही् पाई गई।
बहरहाल ट्विटर पर यह मसला उछलने के बाद मीडिया विजिल ने 31 मार्च को शाम 4.20 मिनट पर धर्मेंद्र चंदेल से संपर्क किया। धर्मेंद्र आठ साल से दैनिक जागरण में हैं और ग्रेटर नोएडा के ब्यूरो प्रभारी हैं। पहले तो उन्होंने साफ़ इंकार कर दिया,लेकिन जब फोन पर उनका व्हाट्सऐप मैसेज पढ़कर सुनाया गया तो उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ सामान्या बातें लिखी थीं, लेकिन कुत्ता वाली या और दूसरी कड़ी बातें किसी ने साज़िश के तहत जोड़ा है।
बहरहाल, कुछ समय बाद उनका ख़ुद फ़ोन आया और उन्होंने माना कि उनसे ग़लती हो गई। उनका ज़ोर यह बताने पर था कि सिर्फ़ उन्होंने नहीं बल्कि कई और पत्रकारों ने ऐसी बातें लिखीं हैं। ‘कुछ तो अफ्रीकी छात्रों को आदमख़ोर तक लिख रहे थे’-उन्होंने बताया।
उन्होंने यह भी कहा कि “नाइजीरियन की वजह से शहर पीड़ित है। ये लोग बहुत बद्तमीज़ी करते हैं। डेढ़-दो साल पहले मेरे साथ भी की थी। यह हम पर हावी हैं। ये शारीरिक रूप से मजबूत होता हैं। मारपीट करते हैं। इन्हें उन संस्थानों के हॉस्टलों में ही रहने की अनुमति होनी चाहिए, जहाँ ये पढ़ते हैं। शहर से दूर रखना चाहिए। ‘
धर्मेंद्र को यह भी शिकायत है कि पुलिस अफ़्रीकी छात्रों के मसले पर कार्रवाई नहीं करती। इस बार वे यह भी मान रहे थे कि कुत्ता खाने वाली बात उन्होंने लिखी थी और कुछ समय पहले ऐसी ख़बर भी वे जागरण में लिख चुके हैं।
धर्मेद्र चंदेल ने ज़ोर देकर कहा कि उन्होंने 27 मार्च को पिटाई वाली घटना के चार घंटे बाद यह भी लिखा था कि ये लोग शहर में मेहमान हैं। मारपीट नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन व्हाट्सऐप दिखाने वाले यह नहीं दिखा रहे हैं।
शायद चंदेल को डर ये है कि ट्विटर पर उनके मैसेज के साथ जागरण के मालिकों को टैग करके सवाल-जवाब किया गया है। गोकि मालिक इतने ही संवेदनशील होते तो जागरण का यह हाल होता ही क्यों..
बहरहाल, जागरण की रिपोर्टिंग का एक नमूना नीचे है। पता चल जाएगा कि अगर ग्रेटर नोएडा की जनता में आक्रोश है तो उसे हवा देने में अख़बारों की क्या भूमिका रही है..