इरफ़ान के निधन के बाद, उनकी संगिनी का भावुक ख़त- ‘आप फैन्स नहीं परिवार हैं..’

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अभिनेता इरफ़ान के निधन पर जिस तरह की भावुक शोक अभिव्यक्तियां देश भर में देखी गई, वह देखना अभूतपूर्व था। उनके निधन के तीसरे दिन, उनकी जीवनसाथी सुतपा की ओर से ट्विटर पर उनके आधिकारिक हैंडल से एक संदेश जारी किया गया है। हम उसे हूबहू हिंदी में आपके लिए प्रकाशित कर रहे हैं। नीचे साझा की गई तस्वीर फिलहाल वॉशिंगटन डीसी में रहने वाली पत्रकार-एक्टिविस्ट सरिता पांडे ने बनाई है।

पत्रकार-एक्टिविस्ट सरिता पांडे की बनाया इरफ़ान का स्केच

“मैं इसे एक पारिवारिक बयान की तरह कैसे जारी कर सकती हूं, जब पूरी दुनिया इसे निजी शोक मान रही है। मैं ख़ुद को अकेला मानना कैसे शुरु कर सकती हूं, जब इस समय करोड़ों लोग हमारे साथ दुख में डूबे हुए हैं। मैं सबको यक़ीन दिलाना चाहती हूं कि हमने कुछ गंवाया नहीं, बल्कि हमने हासिल किया है। हमने वो सब हासिल किया है, जो वो हमको सिखा कर गए और अब अंततः हम उसे अपनाना और बेहतर बनना शुरु करेंगे। फिर भी मैं कोशिश करूंगी कि वह बातें सामने रखूं, जो लोग नहीं जानते हैं।

 हालांकि यह हमारे लिए अविश्वसनीय है, लेकिन मैं इरफ़ान के ही शब्दों में कहूं तो ‘ये जादुई है’ कि वो हमारे बीच हैं या नहीं हैं, और वे भी शायद इस परिस्थिति को ऐसे ही पसंद करते क्योंकि उनको कभी भी एकांगी यथार्थ नहीं भाता था। लेकिन जिस एक बात की शिकायत मुझे इरफ़ान से हमेशा रहेगी, वो ये है कि उन्होंने मुझे हमेशा के लिए बिगाड़ दिया। उनकी परफेक्शन की ज़िद, अब मुझे किसी भी साधारण चीज़ पर राज़ी नहीं कर पाती है। उन्होंने हमेशा-हर चीज़ में एक लय देखी, फिर भले ही वह कोलाहल और अराजकता ही क्यों न हो, और इसलिए मैंने अपनी बेसुरी आवाज़ और लड़खड़ाते कदमों के साथ भी इस लय पर गाना और नाचना सीख लिया है। मज़ेदार बात ये है कि हमारा जीवन ही एक्टिंग की मास्टरक्लास था, इसलिए जब जीवन में ‘अनामंत्रित मेहमान’ का आगमन हुआ, तब तक मैं कोलाहल में संगीत सुनना सीख चुकी थी। डॉक्टर्स की रिपोर्ट्स किसी स्क्रिप्ट की तरह थी, जिनको मैं परफेक्ट करना चाहती थी, इसलिए उनकी परफ़ॉर्मेंस के लिए कोई भी हिस्सा मैं कभी भूलती नहीं थी। इस यात्रा में हम कुछ अद्भुत लोगों से मिले, जिनकी सूची अनंत है, लेकिन कुछ लोगों का ज़िक्र मुझे करना ही होगा, हमारे ओंकोलॉजिस्ट डॉ. नितेश रोहतगी (मैक्स हॉस्पिटल, साकेत) जिन्होंने शुरुआत से हमारा हाथ थामे रखा, डॉ. डैन क्रेल (यूके), डॉ. शिद्रवि (यूके), मेरे दिल की थड़कन और अंधेरे में मेरा चिराग़ डॉ. सेवंती लिमये (कोकिलाबेन अस्पताल)।

सुतपा और इरफ़ान की फाइल फोटो

यह समझाना मुश्किल है कि ये यात्रा कितनी अद्भुत, सुंदर, ज़बर्दस्त, तक़लीफ़देह और उत्सुकतापूर्ण रही है। मैं इन ढाई सालों को एक ऐसे मध्यगीत की तरह पाती हूं, जिसका अपना आरंभ, अपना मध्य और अपना अंत है, जिसमें इरफ़ान ऑरकेस्ट्रा निर्देशक हैं और ये हमारे 35 साल के साथ से अलग हिस्सा है – हमारा साथ, शादी नहीं – एकीकरण था। मैं अपने छोटे से परिवार को एक कश्ती में देखती हूं, जिसको मेरे दोनों बेटे – बाबिल और अयान खेते हुए आगे ले जा रहे हैं और उनको रास्ता दिखा रहे हैं, ‘वहां नहीं, यहां से मोड़ो..’ लेकिन चूंकि जीवन सिनेमा नहीं है और यहां रीटेक नहीं होते, मैं गंभीरता से चाहती हूं कि मेरे दोनों बेटे इस नाव को सुरक्षित रह कर, अपने पिता के दिग्दर्शन में चलाएं और तूफ़ानों में एक-दूसरे को थामे रहें। मैंने अपने बच्चों से पूछा कि अगर संभव हो, तो क्या वे अपने पिता के सिखाए उस सबक को संक्षेप में कह सकते हैं – जो उनके लिए अहम रहा हो;    

बाबिल : ‘अनिश्चितता की धुन पर आत्मसमर्पण कर के झूमना सीखो और ब्रह्मांड में अपने यक़ीन पर भरोसा रखो।’ 
अयान : ‘अपने दिमाग को ख़ुद पर नियंत्रण मत करने दो, उस पर नियंत्रण करना सीखो।’ 

जिस जगह वो एक विजयी यात्रा के बाद, आराम कर रहे हैं, हम जब वहां उनका पसंदीदा – रात की रानी का पौधा लगा रहे होंगे, तो निश्चित ही आंसू बहेंगे। वक़्त लगेगा, लेकिन वह फूलेगा और उसकी ख़ुशबू हवा में फैल कर, उन सभी रूहों को छुएगी – जिनको हम फैन नहीं, बल्कि आने वाले सालों तक परिवार कहते रहेंगे।”


(ये संदेश ट्विटर पर, इरफ़ान के आधिकारी हैंडल पर शुक्रवार को जारी किया गया है, इसका हिंदी अनुवाद मयंक सक्सेना ने किया है।)