वो अपने तेलंगाना से अपने घर की ओर पैदल आ रही थी और घर से कुछ ही किलोमीटर पहले वो ज़िंदगी से हार गई और घर नहीं पहुंच सकी। लॉकडाउन के बीच तेलंगाना के कन्नईगुड़ा से चलकर छत्तीसगढ़ के बीजापुर स्थित अपने घर की ओर पैदल ही जा रही 12 वर्षीय बच्ची जमलो मकदम की रास्ते में ही मौत हो गयी। कड़ी धूप में 150 किलोमीटर पैदल चलने के बाद जमलो के शरीर में पानी की कमी हो गयी थी। अपने घर से कुछ पहले बीजापुर के ही भंडारपाल गांव के पास बच्ची की मौत हो गयी।
बताया जा रहा है कि तमाम प्रवासी मजदूरों जैसी ही कहानी इस बच्ची की भी थी। जमलो दो महीने पहले ही अपने गांव से मज़दूरों के एक समूह के साथ तेलंगाना के कन्नईगुड़ा में मिर्ची के खेतों में मज़दूरी करने गयी थी। लॉकडाउन के बाद मज़दूरों के सामने विकट स्थिति पैदा हो गयी थी। काम-काज ठप हो गया था और भोजन की समस्या पैदा होने लगी थी। जब लॉकडाउन को बढ़ा दिया गया तो 12 मज़दूरों के इस समूह ने 15 अप्रैल ने घर जाना तय किया। परिवहन के अन्य कोई साधन उपलब्ध नहीं होने से उन्होंने पैदल ही अपने घर की ओर चलना शुरू कर दिया था।
रास्ते में बिगड़ी तबीयत
लगभग 150 किलोमीटर की यात्रा पूरी होने के बाद अपने गांव से 14 किलोमीटर जमलो ने पेट दर्द की शिकायत की, उसे उल्टी-दस्त होनी शुरू हो गयी। इस बीच वह गश खाकर गिर गयी और उसकी मौत हो गयी। जमलो के शरीर की जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची की मौत इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन की वजह से हुई। डॉक्टरों के अनुसार जमलो कुपोषित भी थी। राज्य सरकार ने जमलो के परिवार को 1 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की घोषणा की है।
They'd gone to Telangana to work in chilli fields. Since there's no mode of transportation they walked from Telangana. Her body was preserved&samples were sent for testing as a precautionary measure. It came negative so further action is being taken after postmortem: CMHO Bijapur https://t.co/UR23YXW71L
— ANI (@ANI) April 21, 2020
एक त्रासदी तो यह है कि एक 12 साल की बच्ची को घर से दूर मज़दूरी करने को मजबूर होना पड़ता है। दूसरी त्रासदी यह कि हमारी व्यवस्था उसे दो जून की रोटी तक मुहैया करा पाती।जमलो मकदम की मृत्यु केंद्र व राज्य सरकारों के उन दावों की पोल खोलती है, जिनमें वे हर भूखे व प्रवासी मज़दूरों का ख़याल रखने और राशन पहुंचाने की बात करते हैं। स्पष्ट है कि सरकारों के ये प्रयास अभी तक तो नाकाफ़ी ही साबित हो रहे हैं। गरीब मज़दूर कभी किसी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल होंगे, फ़िलहाल तो कल्पना करना भी मुश्किल है।
लॉकडाउन के बीच प्रवासी मज़दूरों की इस तरह मौत कोई नयी घटना नहीं है। इससे पहले भी हुए एक मामले में, पैदल दिल्ली से मुरैना अपने घर जा रहे मज़दूर रणवीर सखवार की 200 किलोमीटर चलने के बाद हार्टअटैक से मृत्यु हो गयी थी। जमलो की जान, दरअसल इस व्यवस्था ने ली है – जो एक ओर तो गरीब को और गरीब होते जाने देती है, बच्चे मज़दूरी करने को विवश होते हैं और दूसरी ओर ये ही व्यवस्था बाल श्रम को ग़ैरक़ानूनी भी घोषित कर देती है।