कोरोना वायरस की महामारी के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने बीते मंगलवार सुबह 10 बजे लॉकडाउन की मियाद बढ़ाने की घोषणा की। शाम के 4 बजते-बजते मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर हज़ारों प्रवासी मज़दूर इकट्ठा हो गये। उनके बीच यह अफवाह फैल गयी थी कि बांद्रा स्टेशन से ट्रेनों का संचालन होगा और वे अपने गृहनगर लौट पायेंगे। भीड़ की जानकारी मिलने पर पुलिस वहां पहुंची और मज़दूरों पर लाठीचार्ज करके उन्हें वहां से भगा दिया।
Thousands of migrant labourers gather outside Bandra station, they were hoping that trains would start today and they would be able to go to their native place.
This is the direct result of PM's #Lockdown2WithoutPlan. pic.twitter.com/XvQZ5VZ5Xo
— Saral Patel (@SaralPatel) April 14, 2020
इसी बीच गुजरात के सूरत में एक बार फिर प्रवासी मज़दूरों ने घर भेजे जाने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया और वारच्छा इलाके में सड़क जाम कर धरने पर बैठ गये। भूख, महामारी और लॉकडाउन के बीच घर से हज़ारों किमी दूर परदेस में फंसे मज़दूरों की स्पष्ट मांग है कि उन्हें शेल्टर या भोजन देने की जगह उनके गांव भेज दिया जाये। इससे पहले सूरत के ही लसकाणा में चार दिन पहले मज़दूरों ने घर भेजे जाने की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन किया था।
Surat, right now ! https://t.co/XsISzLomfE
— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) April 14, 2020
पहले बांद्रा से ख़बर आयी। ख़बर आने के बाद से मीडिया और समाज का एक बड़ा हिस्सा भीड़ जुटाने का कोई दोषी चेहरा ढूंढ़ने में लग गया और हमेशा की सरकार और उसके मंत्रालयों की कोताहियों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। मज़दूरों के सवाल पर जवाबदेही से मुक्त होने के लिए सत्ता पक्ष के कुछ नेता इसे सांप्रदायिक रंग देने लगे और जिसे मीडिया के एक हिस्से ने भी खूब प्रसारित किया। किसी ने यह सवाल नहीं पूछा कि अव्वल तो सरकार को इन सारी स्थितियों के लिए तैयार रहना चाहिए था, दूसरा जब लॉकडाउन के पहले चरण के शुरुआती समय में चूक हो चुकी थी, तो उससे सबक क्यों नहीं लिया गया। सबक लिया गया होता, तो फिर 21 बाद तक बेहतर तैयारी तो की जा सकती थी। सवाल यह भी है कि लॉकडाउन बढ़ने वाला था तो हालिया हफ़्ते में रेलवे में ऑनलाइन टिकट बिक्री क्यों जारी रखी गयी थी? देश के कई बड़े अख़बारों में यह छपता आ रहा था कि रेलवे कोई विशेष ट्रेनों की व्यवस्था करने वाला है, सरकार की तरफ से इन ख़बरों का खंडन क्यों नहीं किया गया।
मार्क ट्वैन ने कहा था कि “जब तक सच अपने जूते पहन रहा होता है, तब तक अफ़वाह आधी दुनिया का सफ़र तय कर लेती है।” बांद्रा में रेल चलने की अफवाह फैलाने में देश के कई बड़े अख़बार, टीवी चैनल, कई सत्ता पक्ष के छुटभैया नेता तक शामिल हैं। एबीपी न्यूज़ के मराठी चैनल एबीपी मांझा ने तो मंगलवार को ही सुबह 11 बजे यह ख़बर चलायी थी कि लॉकडाउन में फंसे श्रमिकों के लिए विशेष ट्रेन चलायी जा रही है। सबसे ज़्यादा असर एबीपी माझा की ख़बर से ही हुआ और जो शाम को हुआ वह हम सबने देखा।
शाम को बांद्रा की ख़बर सामने आने के बाद एक और वीडियो वायरल हुआ, जिसमें विनय दूबे नामक एक व्यक्ति ने प्रवासी मज़दूरों को उनके घर पहुंचाने को लेकर आंदोलन छेड़ने की बात कही थी और सरकार को 18 अप्रैल तक ट्रेनों की व्यवस्था करने की चेतावनी दी थी। यह वीडियो सामने आने के बाद पुलिस ने विनय दुबे को गिरफ़्तार कर लिया है और एफआईआर भी दर्ज़ की है। इसके बाद से विनय दूबे को ही बांद्रा का दोषी बताया जा रहा है। एबीपी माझा ज़रूर इसके बाद राहत की सांस लेने लगा था कि विवेक दुबे ने उसके दोष को ढंक लिया। इसलिए उसने अपना सारा फोकस विनय दुबे पर डाल दिया। लेकिन, मुंबई पुलिस ने बुधवार को अफवाह फैलाने का मामला दर्ज करके एबीपी माझा के रिपोर्टर राहुल कुलकर्णी को गिरफ्तार कर लिया है। इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने टीवी मीडिया को चेताया भी है कि वह अफवाह न फैलाए, अन्यथा कठोर कार्रवाई के लिए तैयार रहे।
इसके अलावा, अफवाह फैलाने को लेकर गोरखपुर के पिपरौली बाज़ार से प्रतिनिधि एमएलसी प्रेमपाल गुप्त का फेसबुक पोस्ट भी सामने आया है, जिसमें वह लिखते हैं कि
“गोरखपुर के रहने वाले लोग जो दूसरे प्रदेश में कहीं भी (बैंगलोर, त्रिवेंद्रम, दिल्ली, मुंबई आदि) में फंसे हैं वो लेखपाल को अपना या अपने अपने ग्राम प्रधान को फोन करके अपना पता (गांव व जहां फंसे हैं वहां का), मोबाइल नंबर, नाम लिखवा दें। एवं ग्राम सभा पिपरौली के जो भी व्यक्ति उत्तर प्रदेश के बाहर किसी अन्य प्रदेश में फंसे हुए हैं एवं उनके परिवार के सदस्य बाहर फंसे लोगों का जो अपने गांव आना चाहते हो उनका विवरण दें।
लेखपाल पिपरौली ग्राम सभा-अरुण गुप्ता
ग्राम प्रधान पिपरौली-देवी शरण लाल मद्धेशिया
प्रेमपाल गुप्त, प्रतिनिधि एमएलसी (पूज्य महाराज जी), पिपरौली बाज़ार, गोरखपुर”
प्रेमपाल गुप्त का उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी से जुड़ाव है। फेसबुक पेज के अनुसार वे हिंदू युवा वाहिनी के मीडिया प्रभारी भी हैं, जिसके संस्थापक यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ जी रहे हैं। उनके पोस्ट में दी गयी जानकारी को सरकारी मुहर लगाती ख़बर अमर उजाला जैसे अख़बारों में छपी मिली, जिनमें यह भी दावा किया गया था कि रेलवे स्पेशल ट्रेन चला सकता है। अमर उजाला की ख़बर में ज्वाइंट मजिस्ट्रेट का बयान भी उद्धृत मिला था। अख़बार में छपने के बाद इन ख़बरों का व्हाट्सएप आदि माध्यमों से जमकर प्रसार भी हुआ। पोस्ट अभी प्रेमपाल गुप्त के फेसबुक वॉल पर मौजूद है।
जांच में जुटी मुंबई पुलिस ने बांद्रा मामले में तक़रीबन 1000 अज्ञात लोगों पर महामारी कानून का उल्लंघन करने और भीड़ जुटाने के आरोपों में मुकदमा एफआईआर दर्ज़ किया है।
Maharashtra: A case has been registered at Bandra Police station under section 143, 147, 149, 186, 188 of IPC read with Section 3 of Epidemic Act against 800-1000 unidentified people in connection with the incident of gathering in Bandra today.
— ANI (@ANI) April 14, 2020
बांद्रा मामले के सामने के बाद एक बार फिर से सरकार की तरफ़ सवालिया निशान उठने लगे थे, तभी भाजपा नेता कपिल मिश्रा और बीजेपी आईटी सेल हेड अमित मालवीय ने अपना ब्रह्मास्त्र निकाला और इस मामले को सांप्रदायिक रंग देना शुरू कर दिया। इसके बाद, बांद्रा स्टेशन के सामने मौजूद होने के कारण तस्वीरों में दिखायी दे रही जामा मस्जिद का नाम लेकर मामले को हिंदू-मुसलमान बनाने की कोशिश की जाने लगी।
https://twitter.com/KapilMishra_IND/status/1250047728295374849
हमेशा की तरह मीडिया के खिलाड़ियों ने भी इसको लपका और मामले को पलट कर दिखाना शुरू कर दिया।
यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि महाराष्ट्र कोरोना से सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य है और मुंबई खुद इस महामारी का हॉटस्पॉट माना गया है। दूसरी तरफ़ भूख और घर से दूर होने की हताशा ने पूरे देश में जगह-जगह फंसे मज़दूरों को प्रदर्शन करने पर मजबूर कर दिया है। ऐसे में बांद्रा में उनका इतनी बड़ी संख्या में ट्रेन चलने की अफवाह सुनकर पहुंच जाना दोहरी त्रासदी है। इस स्थिति को संभालने के लिए सरकार को और ज़्यादा मानवीय, साथ ही त्वरित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए था तथा मज़दूरों में यह भरोसा कायम करने की ज़मीनी कोशिश करनी चाहिए थी कि सरकार उनका और उनसे दूर गांवों में उनके परिजनों का ख़याल रखेगी। अगर सरकार ऐसा करने में सक्षम नहीं थी, तो उसे लॉकडाउन से पहले मज़दूरों को उनके घर भेजने का प्रबंध करना ही चाहिए था। लेकिन, इवेंटबाजी में फंसी सरकार ने इन मज़दूरों के लिए कुछ भी ठोस नहीं किया।
हम अपने सुरक्षित घरों में बंद हैं और पूरे वक़्त घर में बंद होने के दुख के मारे हैं। लेकिन, गरीब का दुख बहुत एक जैसा होता है। सूरत के वारच्छा में फंसे मज़दूरों का दुख भी कुछ और थोड़ी है। उन्हें भी ऐसे नाज़ुक वक़्त में अपने घर होना है। हर इंसान मुफ़लिसी में अपने घर या गांव की तरफ़ ही भागता है, क्योंकि उसकी जड़ें उसे वहीं बुलाती हैं। ऐसे वक़्त में जब कोरोना संक्रमण और भूख से उनकी जान पर बन आयी है, वे उन शहरों में क्यों रहना चाहेंगे, जहां के मोहल्लों में वे संदिग्ध माने जाते हैं, जहां घरों के दरवाजे पर उनके लिए निषेध लिखा होता है या खिड़कियों से उन्हें हिकारत की नज़रें घूरती हैं और उन्हें इंसान तक नहीं समझती। क्या इन्हें वाकई सुरक्षित उनके घर नहीं छोड़ा जा सकता था?