अभी एक शूरवीर ने ऐलान किया है कि 31 मार्च के बाद जेएनयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार अगर दिल्ली में दिखे तो वे गोली मार दी जाएगी। पूर्वांचल सेना ने गोली मारने वाले को 11 लाख का इनाम देने का ऐलान किया है। कुछ बाँकुरे कन्हैया की जीभ, कान, नाक काटने के लिए ज़ुबानी उस्तरा तेज़ कर रहे हैं और बाक़ायदा सम्मानित हो रहे हैं।
ये हमारे दौर के ‘रजिस्टर्ड’ राष्ट्रभक्त हैं जो ‘देशद्रोही’ कन्हैया की जान लेने को अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मान चुके हैं। संविधान और क़ानून को ठेंगे पर रखना इन्हें गौरवान्वित कराता है। भारतीय समाज में तेज़ी से पसर रहे इस उन्माद के लिए सीधे तौर पर वे ख़बरिया चैनल ज़िम्मेदार हैं जिन्होंने रात-दिन कन्हैया कुमार को ‘राजद्रोही’ से ज़्यादा ‘देशद्रोही’ बताने का अभियान चलाया। हाँलाकि अब यह साफ़ हो गया है कि न कन्हैया कुमार 9 फरवरी के कार्यक्रम का आयोजक था और न ही उसने कोई आपत्तिजनक नारा ही लगाया था। लेकिन जाली वीडियो के सहारे चैनलों ने जो उन्माद पैदा किया उसका सीधा शिकार कन्हैया कुमार हुआ है। आग में घी डालने के लिए कन्हैया के सेना से जुड़े एक बयान के टुकड़े को भी अनर्थकारी व्याख्या के साथ प्रसारित किया गया।
हद तो यह है कि कोई उन नक़ाबपोशों के बारे में बात करने को तैयार नहीं है जिन्होंने उस दिन सचमुच भारत की बर्बादी का नारा लगाया। चैनलों को पता है कि भारत को ‘बारत’ कहने वाले नारेबाज़ कश्मीरियों की तलाश हुई तो कश्मीर घाटी में बीजेपी की उम्मीदों के पलाश खिलने से पहले ही मुरझा जाएँगे, जिसकी इजाज़त न ‘देशभक्त’ संपादकों को है और न उनके मालिकों को !
पिछले दिनों एक नौजवान जेएनयू के अंदर जाकर कन्हैया पर हमला कर चुका है। अगर इस उन्माद में डूबता-उतराता कोई व्यक्ति सचमुच कन्हैया कुमार की जान ले ले तो ज़िम्मेदार कौन होगा ? यूँ तो https://www.acheterviagrafr24.com/achat-viagra-en-ligne-en-france/ इस अपराध में कम या ज़्यादा कई चैनल शामिल हैं, लेकिन उन तीन चैनलों का नाम तो https://www.acheterviagrafr24.com/achat-viagra-en-ligne-belgique/ साफ़तौर पर लिया जा सकता है जिनके ख़िलाफ़ जाली वीडियो चलाने के मामले में क़ानूनी कार्रवाई की जा रही है। ये चैनल हैं—टाइम्स नाऊ, ज़ी न्यूज़ और इंडिया न्यूज़। सवाल यह है कि कन्हैया की हत्या होती है तो ज़िम्मेदारी अर्णव गोस्वामी की होगी या फिर टाइम्स समूह के मालिक विनीत जैन तक भी छीटें जाएँगे जो अपने संपादक की उन्मादी पत्रकारिता में टीआरपी और उससे जुड़ा आर्थिक फ़ायदा देख रहे हैं। यही सवाल ज़ी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी और मालिक डॉ.सुभाष चंद्रा और इंडिया न्यूज़ के संपादक दीपक चौरसिया और मालिक विनोद शर्मा को लेकर भी पूछा जा सकता है।
वैसे मसला सिर्फ़ कन्हैया तक सीमित नहीं है। जेएनयू की शिक्षक निवेदिता मेनन और विज्ञानी शायर गौहर रज़ा के ख़िलाफ़ भी ऐसा ही टीवीजनित उन्माद देखने को मिल रहा है। ये तो तय है कि अगर कन्हैया की हत्या हुई तो सिर्फ हत्यारा ज़िम्मेदार नहीं होगा जैसे कि गाँधी जी की हत्या के लिए सिर्फ़ नाथूराम गोडसे नहीं आरएसएस भी ज़िम्मेदार था। इस बात को समझने के लिए आपको गाँधी जी की हत्या के बाद संघ से प्रतिबंध हटाने की माँग के जवाब में पटेल का पत्र पढ़ना पड़ेगा। 11 सितंबर 1948 को आरएसएस के सरकार्यवाह गोलवरकर को भेजे पत्र में सरदार पटेल ने लिखा-
‘’संघ के लोगों के भाषण में सांप्रदायिकता का ज़हर भरा होता है। हिंदुओं की रक्षा करने के लिए नफ़रत फैलाने की भला क्या आवश्यकता है ? इसी नफ़रत की लहर के कारण देश ने अपना पिता खो दिया। महात्मा गाँधी की हत्या कर दी गई। सरकार या देश की जनता में संघ के लिए सहानुभूति तक न बची है। इन परिस्थितियों में सरकार के लिए संघ के ख़िलाफ़ निर्णय लेना अनिवार्य हो गया था।”
यानी कन्हैया या जेएनयू प्रकरण से निशाने पर आये किसी भी शख्स की हत्या हुई तो ज़िम्मेदारी उनकी भी होगी जो नफ़रत फैला रहे हैं। जो चैनल उन्माद फैला रहे हैं वे हत्या के लिए उकसा रहे हैं। उन्हें भी हत्यारों की श्रेणी में रखा जाएगा। हो सकता है कि नफ़रत की राजनीति के प्रति सहानुभूति से भरी सरकार उन पर प्रतिबंध न लगा पाये, लेकिन निर्मम इतिहास उन्हें बेझिझक हत्यारों की श्रेणी में रखकर मुक़दमा चलाएगा !