केरल उच्च न्यायालय ने बुधवार को ‘सूचना का अधिकार कानून (संशोधन) अधिनियम 2019’, को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया. यह मामला न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए रखा गया था.
Kerala HC Issues Notice On Plea Challenging RTI Amendment Act 2019 [Read Petition] https://t.co/e3ZuhrPpzv
— Live Law (@LiveLawIndia) September 5, 2019
वकील और आरटीआई एक्टिविस्ट, डीबी बीनू ने अधिनियम की संशोधित धारा 13, 16 और 27 की संवैधानिकता को चुनौती दी है जिसके तहत केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) और राज्य सूचना आयोग (एसआइसी) की सेवा की अवधि, वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें अब केंद्रीय सरकार द्वारा निर्धारित किये जायेंगे.
संसद के मानसून सत्र में इस अधिनियम के पास होने से पहले केन्द्रीय व राज्य सूचना आयोगों की सेवा की अवधि और वेतन निर्धारित थे. पहले सूचना आयोग की सेवा की अवधि 5 वर्ष और वेतन चुनाव आयोगों के समान थे.
अधिवक्ता बीनू ने अपनी याचिका में कहा है कि सूचना आयुक्तों के निर्धारित कार्यकाल को बदलना और कार्यकारी नियमों के अधीन उनके वेतन और भत्ते को बनाना “अधिकारियों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को” सबसे अलोकतांत्रिक है. यह कानून के नियम का उल्लंघन है.
बता दें कि सूचना का अधिकार संशोधन बिल 2019, बीते 25 जुलाई को संसद से पारित हो गया था. इस संशोधन के जरिए सूचना के अधिकार कानून 2005 में कई बदलाव किए गए हैं. RTI एक्ट 2005 के मुताबिक केंद्र और राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल 5 साल का होता था, वहीं उनका वेतन केंद्र और राज्यों के मुख्य चुनाव आयुक्तों की तरह था.
जबकि संशोधन विधेयक में कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल और कार्यसीमा की परिभाषा केंद्र सरकार ही तय करेगी. साथ ही इसमें ये भी जोड़ा गया है कि दोनों अधिकारियों के वेतन, भत्ते और सेवा से जुड़ी अन्य शर्तें भी केंद्र सरकार ही निर्धारित करेगी.
1 अगस्त को राष्ट्रपति ने नये बिल पर हस्ताक्षर कर दिया था.
JUST IN: The President of India (@rashtrapatibhvn ) gives assent to 'The Right to Information (Amendment) Act, 2019'#RTIAmendmentBill2019 #RTI pic.twitter.com/H8im0nuYRw
— The Leaflet (@TheLeaflet_in) August 1, 2019
याचिका को यहां पढ़ा जा सकता है :
rti