मोदी सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट में कहा रक्षा मंत्रालय से रफ़ाल डील से जुड़ी अहम फ़ाइल ग़ायब हो गई है। ‘द हिंदू’ अख़बार ने इसी चोरी की फाइल के आधार पर रफ़ाल डील को लेकर खबरें छापी हैं। चोरी के मामले की जाँच की जा रही है।
हिंदू में रफ़ाल डील से जोड़ी ख़ोजी ख़बरें देश के वरिष्ठ पत्रकार और अखबार के पूर्व प्रधान संपादक एन.राम ने छापी थीं। वही एन.राम जिन्होंने कभी बोफोर्स सौदे को लेकर कलम तोड़ी थी। लेकिन तब बीजेपी के दुलारे एन.राम अब उसे दुश्मन सरीखे लग रहे हैं। यही वजह है कि बीजेपी के साइबर योद्धाओं ने उनके ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया गया। सरकार और पार्टी से जुड़े तमाम नेताओं ने ख़बरों को झूठा कहा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के बयान के बाद साफ़ हो गया है कि एन.राम ने जो लिखा है, उसका आधार है।
पर सरकार का रुख देखकर ये भी लग रहा है कि वह रफ़ाल डील के दस्तावेजों के आधार पर ख़बर छापने का साहस करने वाले एन.राम के खिलाफ कार्रवाई की कोशिश करेगी। उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक बताया जाएगा। लेकिन एन.राम ने फिर एक कड़ा स्टैंड लेते हुए कहा है कि वे किसी भी हालत में अपने सूत्र के बारे में नहीं बताएँगे।
एन. राम का बयान –
1. राफेल करार से जुड़े दस्तावेज जनहित में प्रकाशित किए गए। ‘दि हिंदू’ अखबार किसी को भी यह नहीं बताने वाला कि उसे किन गोपनीय सूत्रों से सूचनाएं मिली। हम सूत्रों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि दस्तावेज़ चोरी के हैं या नहीं।
2. दस्तावेजों को इसलिए प्रकाशित किया गया क्योंकि राफेल करार का ब्योरा दबाने-छुपाने की कोशिश हो रही थी।
3. मैं सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। जो कुछ भी प्रकाशित किया गया वो प्रामाणिक दस्तावेजों के आधार पर प्रकाशित किया गया।
4. जनहित के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों और प्रासंगिक सूचनाओं को सामने लाना प्रेस की ड्यूटी है।
युवा पत्रकार प्रियभांशु रंजन ने इसे पत्रकारिता के लिए बेहद खतरनाक बताया है। फेसबुक पर प्रियभांशु ने लिखा है-
राफेल की कोई फाइल चोरी नहीं हुई है।
दरअसल, मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट में साबित करना चाहती है कि रक्षा मंत्रालय से जो फाइलें ‘‘चोरी’’ हुई हैं, उन्हीं का इस्तेमाल वकील प्रशांत भूषण कर रहे हैं। यानी कि परोक्ष रूप से सरकार कहना चाह रही है कि फाइलों की कथित चोरी में प्रशांत भूषण की भूमिका हो सकती है। हो सकता है कि ‘दि हिंदू’ के प्रधान संपादक रहे एन. राम को भी घेरने की कोशिश की जाए। राम ने हालिया दिनों में राफेल मुद्दे पर सरकार को असहज करने वाली कई रिपोर्ट लिखी है।
ये साबित करने की कोशिश का मतलब है कि सरकार प्रशांत भूषण के खिलाफ सरकारी गोपनीयता कानून (ओएसए) के तहत केस दर्ज कर उन्हें घेरने और उनका मुंह बंद कराने का प्रयास करेगी।
लेकिन लॉंग टर्म में देखें तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे।
इस वाकये के जरिए मोदी सरकार एक बार फिर पत्रकारों को संदेश देना चाहती है कि आप जब भी कोई खबर लिखें, तो वो ‘‘सरकारी सूत्रों’’ या ‘‘सरकार द्वारा मुहैया कराए गए दस्तावेजों’’ पर ही आधारित होने चाहिए। वरना आप पर सरकारी गोपनीयता कानून के उल्लंघन का केस ठोंक कर हमेशा के लिए मुंह बंद करा दिया जाएगा।
अगर आपको मेरी बात पर यकीन न हो तो पेट्रोलियम मिनिस्ट्री कवर करने वाले पत्रकार शांतनु सैकिया के केस को गूगल करके पढ़ लें। शांतनु को 2015 में पेट्रोलियम मिनिस्ट्री से ‘‘गोपनीय दस्तावेज’’ की लीक के मामले में गिरफ्तार किया गया था। उस वक्त ऐसा माना जा रहा था कि शांतनु किसी बड़े घोटाले का पर्दाफाश करने वाले थे। लेकिन सरकार ने ऐन मौके पर उनका मुंह बंद करा दिया।
ये वाकया भी मोदी सरकार के शासनकानल में ही हुआ था। इस मामले के बाद मंत्रालयों और सरकारी दफ्तरों में पत्रकारों का आना-जाना बहुत कम हो गया। उन्हें सिर्फ प्रवक्ताओं से मिलने की इजाजत दी गई। दफ्तरों में फोटो कॉपी का भी पूरा हिसाब-किताब रखा जाने लगा, ताकि घोटालों का खुलासा करने वाला कोई दस्तोवज बाहर नहीं जा सके।
इसका एकमात्र मकसद ‘खोजी पत्रकारों’ पर नकेल कसना था।
बहरहाल, इस राम कहानी के बीच दिल्ली के सीजीओ कॉम्प्लेक्स में एक इमारत में लगी आग की खबरों को बारीकी से पढ़ें। जिस इमारत में आग लगी है, उसमें भारतीय वायुसेना का भी एक दफ्तर है। राफेल वायुसेना के लिए ही खरीदा जाना है।
एक तरफ आग लग रही है और दूसरी तरफ राफेल की फाइल चोरी हो रही है।
दोनों का कोई कनेक्शन तो नहीं ?