इंदिरा गांधी ने 1995 में इमरजेंसी क्‍यों लगाई? दीपक शर्मा से पूछिए!

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तक़रीबन एक साल पहले देश की जनता का मीडिया संस्थान बताकर “इंडिया संवाद” न्यूज़ पोर्टल शुरू किया गया था. देश की अवाम ने भी इसे हाथों-हाथ लिया, लेकिन उनके काम को देखकर अब मन ऊब गया है पाठकों का. ताज़ा मामला तो और हैरान करने वाला है.

इंडिया संवाद में कितने ज्ञानी महापुरुष काम कर रहे हैं, इसका अंदाज़ा आप ये पढ़कर लगा सकते हैं कि देश में 1995 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी. जी हाँ, इंडिया संवाद के दावे पर यकीं करे तो इंदिरा गाँधी ने 1995 में देश में इमरजेंसी लगाई थी. इसे इंडिया संवाद के सुनील रावत ने लिखा है. मुमकिन है कि यह मिसटाइप हो गया हो, लेकिन ख़बर को प्रकाशित हुए 24 घंटे से ज्‍यादा बीत गए हैं और अब तक ग़लती को दुरुस्‍त नहीं किया गया है. ऐसा लगता है कि इस वेबसाइट के नियंता खुद अपनी ख़बरें पढ़ना पसंद नहीं करते.

 

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यह तो पाठक को भ्रमित करने जैसी बात हो गई. यह अक्षम्य है. पाठक को गुमराह नहीं करना चाहिए. वेबसाइट के संपादक दीपक शर्मा वेबसाइट के कंटेंट को नहीं पढ़ते हैं क्या? अगर वे नहीं पढ़ते, तो क्‍या उनके यहां कोई नहीं पढ़ता? क्‍या रिपोर्टर ने खुद अपनी ख़बर दोबारा नहीं पढ़ी?  अगर पढ़ते होते तो इस तरह की गलती नही होती. हम इसे टाइपिंग की ग़लती मानकर एकबारगी रियायत दे सकते हैं, लेकिन इसे अब तक दुरुस्‍त न किया जाना संपादकीय लापरवाही का बेजोड़ नमूना है.

इंडिया संवाद में इस तरह की ग़लतियाँ आए दिन देखने को मिल रही हैं. वर्तनी, शब्दों का चयन भी ठीक नहीं रहता है. चाहे अश्वनी श्रीवास्तव का लेख हो, चाहे नवनीत मिश्र का लेख या फिर अमित वाजपेयी का लेख और सुनील रावत का लेख, जिसे आप तस्वीरों में देख ही रहे हैं. लगता है कि गलत हिंदी लिखने पर इन लोगों को कभी टोका नही जाता. लगता है नौकरी पर रखने से पहले इन लोगों का टेस्ट नही लिया गया था. अगर लिया गया होता तो शायद इतनी गलत कॉपी लिखने वाले को नौकरी पर नही रखा जाता.

वेबसाइट की स्‍थापना से ही इसमें जुड़े रहे एक पत्रकार इसका हालचाल पूछने पर मुस्‍करा देते हैं. वे कहते हैं, ”देख ही रहे हैं आप… किसी तरह गाड़ी चल रही है”. ख़बर है कि इस वेबसाइट को जिस ट्रस्‍ट के तहत शुरू किया गया था, उसमें से कुछेक ट्रस्टियों ने खुद को इससे अलग कर लिया है. उनमें एक प्रमुख ट्रस्‍टी मथुरा के स्‍वामी बालेंदु हैं, जो हाल ही में एक नास्तिक सम्‍मेलन आयोजित करवाने के चक्‍कर में सुर्खियों में आए थे.

(मीडियाविजिल को पत्रकारिता के एक छात्र द्वारा भेजी गई चिट्ठी, कुछ संपादकीय संशोधनों के साथ)